कोलकाता : वर्ष 1928 में लाहौर में साइमन कमीशन का विरोध कर रहे लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह, सुखदेव एवं राजगुरु ने कसम खाई. उन्होंने ब्रिटिश पुलिस के अफसर जॉन सांडर्स को गोली से उड़ा दिया और वे भागकर पश्चिम बंगाल के अविभाजित बर्दवान जिले के खंडघोष पहुंच गए. खंडघोष वह स्थान है जिसका आज के वक्त में महत्व केवल क्रांतिकारी शहीद-ए-आजम भगतसिंह के अन्य सहयोगी बटुकेश्वर दत्त के कारण है.
खंडघोष के उयारी गांव में बटुकेश्वर का पैतृक आवास था. सांडर्स की हत्या से बौखलाए अंग्रेजों से भगतसिंह और उनके साथियों को बचाने के लिए बटुकेश्वर ने उन्हें अपने पैतृक आवास में ठहराया. लेकिन जब सांडर्स के हत्यारों को पकड़ने के लिए पुलिस की गतिविधियां तेज हो गईं, तब बटुकेश्वर ने भगतसिंह और उनके साथियों को अपने पड़ोसी घोष के मकान के तहखाने में छिपाया. यहां वे 15 दिनों तक रहे और फिर संसद पर हमले की रणनीति बनाई. अंत में 'इंकलाब जिंदाबाद' का नारा लगाते हुए संसद में बम फेंका. इस हमले के बाद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया गया था.
बर्दवान रेलवे स्टेशन से करीब 18 किमी दूर स्थित उयारी गांव का यह तहखाना आज जर्जर अवस्था में है. हालांकि, घर का पुराना हिस्सा रहने योग्य है. इसकी स्थापत्य शैली भी लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचती है. घोष परिवार के सदस्य पुराने मकाने से सटे अब अन्य एक नए मकान में रहते हैं. पुरानी इमारत के प्रवेश द्वार के ठीक बाद एक बालकनी है, जहां लकड़ी के दरवाजों के साथ दो शोकेस हैं. बहरहाल, शोकेस में कॉस्मेटिक्स आइटम रखे गए हैं, लेकिन वास्तव में, यह शोकेस तहखाने तक जाने का रास्ता हुआ करता था. तहखाने में कम से कम चार से पांच लोग आसानी से छिप सकते हैं.
मकान के संरक्षण की मांग