नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि रजिस्ट्री अधिकारियों को शीर्ष अदालत के नियमों के बारे में भली-भांति जानकारी होनी चाहिए. साथ ही, न्यायालय ने रजिस्ट्रार (न्यायिक) को अधिकारियों के लिए यह निर्देश जारी करने के लिए कहा कि अदालत के समक्ष जिस आदेश को चुनौती दी गई है. यदि वह केवल जमानत रद्द किए जाने से संबंधित है, तो आत्मसमर्पण करने से छूट मांगने के लिए आवेदन दाखिल करने की कोई आवश्यकता नहीं है.
जस्टिस पी एस नरसिम्हा ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के नियमानुसार, यह आवश्यकता केवल उन आपराधिक अपीलों और विशेष अनुमति याचिकाओं (SLP) के लिए है, जिनमें याचिकाकर्ता को 'कारावास की सजा' दी गई हो. शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी धोखाधड़ी के एक मामले में समर्पण से छूट के आवेदन को बहाल करने और देरी को माफ करने संबंधी आवेदनों पर विचार करते हुए की.
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री ने आत्मसमर्पण से छूट देने का अनुरोध करने वाली अर्जी दाखिल करने पर जोर दिया, जबकि अदालत में जिस आदेश को चुनौती दी गई है, वह जमानत को रद्द करने से जुड़ा है. न्यायालय ने वकील को सूचित किया कि यह नियम केवल उन मामलों में आपराधिक अपील और विशेष अनुमति याचिकाओं (SLP) पर लागू होता है, जिनमें याचिकाकर्ता को कारावास की सजा दी गई है और यह नियम जमानत रद्द किए जाने के खिलाफ SLP पर लागू नहीं होता. इसके बाद कुछ वकीलों ने कहा कि वे रजिस्ट्री से बहस करने के बजाय इस प्रकार की अर्जियां दाखिल कर देते हैं.
न्यायालय ने कहा कि रजिस्ट्री के अधिकारियों को उच्चतम न्यायालय के नियमों से भली प्रकार अवगत होना चाहिए. आदेश 22 नियम पांच केवल उन मामलों में लागू होता है, जिनमें याचिकाकर्ता को कारावास की सजा दी गई है और जमानत रद्द करने के सामान्य आदेश के साथ इसे लेकर भ्रमित नहीं हुआ जा सकता.