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लोक सेवक के खिलाफ प्राथमिकी के दर्ज होने में एक सामाजिक कलंक भी जुड़ा होता है: न्यायालय

लोक सेवक के खिलाफ प्राथमिकी के दर्ज होने में एक सामाजिक कलंक भी जुड़ा होता है. यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने की. कोर्ट ने सीबीआई से पूछा कि क्या एक आईआरएस अधिकारी और उनके पति ए. सुरेश, जो वर्तमान में आंध्र प्रदेश के शिक्षा मंत्री हैं, के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति (डीए) का मामला दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच (पीई) की गई थी.

उच्चतम न्यायालय
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Published : Sep 2, 2021, 6:39 AM IST

नई दिल्ली :उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि 'लोक सेवक के खिलाफ प्राथमिकी के दर्ज होने में एक सामाजिक कलंक भी जुड़ा होता है.' न्यायालय ने यह टिप्पणी केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को इस संबंध में अपना जवाब दाखिल करने के लिए निर्देश देते हुए की कि क्या एक आईआरएस अधिकारी और उनके पति ए. सुरेश, जो वर्तमान में आंध्र प्रदेश के शिक्षा मंत्री हैं, के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति (डीए) का मामला दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच (पीई) की गई थी.

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने सीबीआई की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी की इस दलील से सहमति जताई कि उच्च न्यायालय ने आरोपी के खिलाफ प्राथमिकी को रद्द करने के अनुरोध वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए मामले की योग्यता (मेरिट) पर विचार किया है.

पीठ ने कहा, 'हम उच्च न्यायालय के निष्कर्ष को देखते हैं कि इसने मामले में वस्तुतः एक परीक्षण किया है. हम उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर देंगे और प्राथमिकी को रद्द कर देंगे, बशर्ते आप यह बताएं कि आपने प्रारंभिक जांच नहीं की है. फिर आप पीई का संचालन कर सकते हैं और एक नया मामला दर्ज कर सकते हैं.' पीठ ने कहा, 'आपको पता होना चाहिए कि लोक सेवक के खिलाफ एफआईआर के दर्ज किए जाने में सामाजिक कलंक जुड़ा होता है. इसलिए, आपको ललिता कुमारी के फैसले के अनुसार प्राथमिकी दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच (पीई) करनी चाहिए.'

भाटी ने कहा कि 2016 में सीबीआई द्वारा कई आईआरएस अधिकारियों के खिलाफ छापेमारी और जब्ती अभियान चलाया गया था और उस दौरान एजेंसी को आरोपियों की आय से अधिक संपत्ति के बारे में पता चला है.

पीठ ने कहा, 'आप इन तथ्यों को हलफनामे में क्यों नहीं बताते और इस मामले में जवाब दाखिल क्यों नहीं करते हैं कि एजेंसी को प्रारंभिक जांच की आवश्यकता क्यों नहीं महसूस हुई.'

पीठ ने मामले को अगली सुनवाई के लिए दो सप्ताह के बाद सूचीबद्ध किया. आरोपी आईआरएस अधिकारी टीएन विजयलक्ष्मी और उनके पति की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने कहा कि एजेंसी द्वारा कोई पीई नहीं की गई थी और स्रोत की जानकारी के आधार पर प्राथमिकी दर्ज की गई थी लेकिन उन्होंने कभी स्रोत का खुलासा नहीं किया.

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उन्होंने कहा कि यह सिर्फ उत्पीड़न है और उच्च न्यायालय प्राथमिकी को रद्द करने में सही था क्योंकि यह शीर्ष अदालत के फैसले के अनुरूप नहीं था. दवे ने सीबीआई द्वारा जांच पर रोक लगाने का अनुरोध करते हुए कहा कि उन्हें एजेंसी द्वारा अनावश्यक रूप से तलब किया जा रहा है.उच्चतम न्यायालय ने 26 फरवरी को तेलंगाना उच्च न्यायालय के 11 फरवरी के उस आदेश पर रोक लगा दी थी जिसमें उसने दंपति के खिलाफ सीबीआई की प्राथमिकी रद्द कर दी थी. सीबीआई ने दावा किया है कि दंपति ने आय से अधिक संपत्ति अर्जित की है.

(पीटीआई-भाषा)

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