पटना: बिहार भारत के बड़े राज्यों में से एक है, इसकी जनसंख्या भी अधिक है. वहीं, एक तरफ बिहार में देश के मुकाबले साक्षरता दर कम है. देश के मुकाबले प्रति व्यक्ति आय कम है. बिहार में प्रति एक लाख व्यक्तियों पर अस्पताल में मात्र 6 बेड ही है. इसके बावजूद बिहार में आत्महत्या दर काफी कम है. एनसीआरबी की 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक दूसरे राज्यों की तुलना में बिहार में लोग आत्महत्या काफी कम करते हैं. बिहार में आत्महत्या दर 0.6 है. जबकि राष्ट्रीय औसत 12.4 है. 2021 की बात करें तो बिहार की आत्महत्या दर 0.7 रही जबकि, राष्ट्रीय औसत 12.02 थी.
बिहार में सुसाइड केस कम होने की वजह : बिहार 2021 में बिहार में 827 आत्महत्या के मामले दर्ज किए गए थे. वहीं, 2022 में 702 लोगों ने आत्महत्या की. इन आत्महत्याओं में पारिवारिक समस्या और प्रेम प्रसंग प्रमुख रहे हैं. बिहार में प्रेम प्रसंग की वजह से 43.87 प्रतिशत लोगों ने आत्महत्या की. वहीं, पारिवारिक समस्याओं के कारण 25.78 प्रतिशत लोगों ने अपनी जान दे दी. वही, विवाह संबंधी मामलों में 13.39% लोगों ने आत्महत्या कर ली है. जबकि परीक्षा में फेल होने के बाद 4.3% छात्रों ने आत्महत्या की.
आपस में लड़ जाते हैं बिहारी, अपनी जान नहीं देते :इस मामले को लेकर ईटीवी भारत ने बिहार की जानी-मानी मनोचिकित्सक डॉ बिंदा सिंह से बात की. बिंदा सिंह ने बताया कि बिहार के लिए यह एक सकारात्मक खबर है. यहां के लोग काफी मेहनती और हार्ड वर्किंग होते हैं. बिहार के लोग काफी जुझारू होते हैं. बच्चों से बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं रखते हैं लेकिन, बच्चों को मोटिवेट करके रखते हैं. उन्हें बताते रहते हैं कि उन्हें जिंदगी में क्या कुछ करना है और कैसे करना है. और यह 'करने' वाली आदत ही है जिसके बाद सोचते हैं कि मरना क्यों है करना है.
''यहां के लोग छोटी-छोटी बातों पर लड़ जाते हैं, झगड़ जाते हैं, मारपीट कर लेते हैं लेकिन, आत्महत्या नहीं करते हैं. यहां के लोगों में एक मोटिवेशन है कि लाइफ में कुछ करना है. लोगों को अलग करके दिखाना है. बिहारी में अलग दिखने की एबिलिटी है. खुद को नंबर वन दिखाने में जी तोड़ मेहनत करते हैं. इस दौरान डिप्रेशन भी आता है तो टैकल कर लेते हैं. ऐसा नहीं है कि इनको डिप्रेशन नहीं आया आता है, फ्रस्ट्रेशन नहीं होता है लेकिन, वह अपने आप को संभाल लेते हैं.''-डॉबिंदा सिंह, प्रख्यात मनोचिकित्सक
परिवार में होती है बांडिंग :बिन्दा सिंह कहती हैं कि यहां के पेरेंट्स भी ऐसे होते हैं जो, अपने बच्चों को कुछ कर गुजरने के लिए मोटिवेट करते हैं. बिहार के संदर्भ में यह आंकड़ा काफी बेहतर आया है. इससे लोगों को मोटिवेट होना चाहिए. डॉ बिन्दा सिंह ने आगे बताया कि बिहार के लोग पारिवारिक होते हैं. परिवार से जुड़े हुए होते हैं. ऐसी कोई समस्या होती है तो, एक दूसरे से शेयर करके उसका समाधान निकाल लेते हैं. यहां परिवार के बीच की बॉन्डिंग बहुत स्ट्रॉन्ग होती है.