हैदराबाद : कोरोना की दूसरी लहर के साथ ही कोरोना संक्रमितों की संख्या में लगातार हो रही बढ़ोत्तरी ने चिंता में डाल दिया है. वहीं कोरोना संक्रमण को रोकने में सबसे अधिक कारगर रेमडेसिविर की कमी होने की बात महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश आदि ने की है. इसीक्रम में रविवार को वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के विदेश व्यापार निदेशालय ने एक आदेश जारी कर अगले आदेश तक रेमडेसिविर और जरूरी दवा सामग्री (एपीआई) के निर्यात पर रोक लगा दी.
भारत में कोविड-19 के मरीजों को जल्दी फायदा पहुंचाने के लिए एंटी-वायरल दवा दी जाती है. वहीं फूड एण्ड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने डॉक्टरों को केवल मामूली रूप से बीमार रोगियों को रेमडेसिविर नहीं देने के लिए कहा है.
जानिए क्या है रेमडेसिविर और कैसे इसका इस्तेमाल कोविड-19 के मामलों में किया जा रहा है?
रेमडेसिविर एक ऐसा इंजेक्शन है, जिसको लगाकर कोरोना वायरस को फैलने से रोका जा सकता है. इसका निर्माण 2014 में इबोला के इलाज के लिए किया गया था और तब से इसका उपयोग सार्स वायरस और मर्स कोरोना वायरस के इलाज के लिए किया जाता रहा है. लेकिन इसे 2020 में कोविड के उपचार के लिए पुनर्निर्मित किया गया था.
इसके बारे में अभी तक के अनुभवों से पता चला है कि यह हल्के बीमार रोगियों और अस्पताल में मरीज के भर्ती होने के शुरुआती दौर में सबसे बेहतर काम करता है. देर से उपयोग करने पर इसका प्रभाव काफी कम हो जाता है.
अलग-अलग कंपनियों द्वारा अलग-अलग नाम से लांच किया
भारत में केवल कैडिला, सिप्ला, माइलान, हेटेरो, जुबिलेंट लाइफसाइंसेस और डॉ रेड्डीज लेबोरेटरीज जैसी कुछ कंपनियों को दवाओं को बेचने के लिए लाइसेंस दिया है. इन कंपनियों की बनाई दवा की कीमत 4,500 से 5,000 रुपये के बीच है, लेकिन हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने दवा निर्माताओं से इसकी कीमत 1,100 से 1,400 रुपये प्रति खुराक के बीच रखने के लिए कहा है.
- हैदराबाद स्थित हेट्रो हेल्थकेयर कोविफोर के नाम से रेमडेसिविर बाजार में लांच करने वाली पहली दवा कंपनी है.
- मुंबई स्थित सिप्ला ने अपने ब्रांड नाम सिप्रेमी के तहत रेमडेसिविर लांच करने की घोषणा की है.
- अहमदाबाद स्थित जाइडस कैडिला जिसने ब्रांड नाम रेमडैक के तहत रेमेडिसविर लांच किया है, जिसके 100 मिलीग्राम लीजोफाइड इंजेक्शन की कीमत 2800 रुपये है.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
पिछले साल नवंबर में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO ) डब्ल्यूएचओ ने कोविड-19 के इलाज के लिए दवा के उपयोग की सिफारिश की थी. लेकिन संगठन के विकास समूह ने आधिकारिक बयान में अस्पताल में भर्ती कोरोना मरीजों के लिए एंटी वायरल ड्रग रेमेडिसविर लगाने का सुझाव नहीं दिया है, भले ही वे कितने गंभीर रूप से बीमार क्यों न हों. क्योंकि वर्तमान में ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि इससे जीवित रहने या वेंटिलेशन की आवश्यकता में सुधार होता है.
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अनुसार मामूली रूप से बीमार रोगियों और ऐसे मामलों में जहां किसी व्यक्ति का ऑक्सीजन स्तर 93-92 प्रतिशत से नीचे गिरना शुरू हो जाता है उन्हें रेमेडिसविर का इंजेक्शन लगाना चाहिए.
क्या हैं रेमडेसिविर की कमी के कारण?
कोविड-19 के मामलों के तेजी से बढ़ने और मरीजों के अस्पताल में भर्ती होने से दवा की मांग में वृद्धि हुई है, क्योंकि इसका उपयोग गंभीर रोगियों के इलाज के लिए किया जाता है.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि 11 अप्रैल तक भारत में 11.08 लाख से अधिक सक्रिय मामले थे और वे लगातार बढ़ रहे हैं. इस वजह से कोविड रोगियों के उपचार में प्रयोग किए जाने वाले रेमेडिसविर इंजेक्शन की मांग में अचानक उछाल आ गया है.
मध्य प्रदेश में सागर, उज्जैन और खरगोन के सरकारी अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी के कारण कोविड रोगियों की मौतों के बारे में खबरें थीं, हालांकि राज्य सरकार ने इससे इनकार किया था. हालांकि रेमडेसिविर के रूप में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को अप्रैल के अंत तक अपने राज्य में 90,000 से 1 लाख शीशियों की मांग होने का अनुमान है, जबकि वहां मौजूदा स्टॉक 50,000 से 60,000 शीशियों का है.
गुजरात के अहमदबाद जैसे शहरों में रेमडेसिविर इंजेक्शन की आपूर्ति कम होने से इसे लेने के लिए लोगों को मेडिकल स्टोर के सामने लाइन में खड़ा होना पड़ा. वहीं मध्य प्रदेश के इंदौर और भोपाल में भी रेमडेसिविर की कमी होने की जानकारी दी गई. इसके अलावा कई राज्यों में रेमडेसिविर की कमी होने की वजह इसकी कालाबाजारी होना भी है.
इसके अलावा अस्पताल के कर्मचारियों और मेडिकल शॉप के मालिकों सहित कई लोगों को पिछले कुछ दिनों में रेमडेसिविर इंजेक्शन को अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) से काफी अधिक कीमत पर बेचने पर गिरफ्तार भी किया जा चुका है.
सरकार द्वारा उठाए जाते हैं कदम
- रेमडेसिविर के निर्यात को प्रतिबंधित करने के अलावा, सरकार ने ड्रग्स इंस्पेक्टर और अन्य अधिकारियों को स्टॉक को सत्यापित करने, खराबी की जांच करने और कालाबाजारी को रोकने के लिए अन्य प्रभावी कार्रवाई करने के लिए भी कहा है.
- फार्मास्युटिकल विभाग ने मांग के अनुसार आपूर्ति करने के लिए दवा के उत्पादन में तेजी लाने के लिए घरेलू निर्माताओं से संपर्क किया है.
- कोविड-19 के कारण सबसे प्रभावित राज्य महाराष्ट्र में सरकार ने रेमडेसिविर इंजेक्शन की सुचारू आपूर्ति सुनिश्चित करने और दवा की जमाखोरी और कालाबाजारी को रोकने के लिए जिला स्तरीय नियंत्रण कक्ष स्थापित किए हैं.
- केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार सात भारतीय कंपनियां स्वेच्छिक लाइसेंसिंग समझौते के तहत इंजेक्शन का उत्पादन कर रही हैं. इसमें यूएसए के मेसर्स गिलाद साइंसेज के पास प्रति माह लगभग 38.80 लाख इकाइयों की उत्पादन क्षमता है.
- गिलियड ने रेमडेसिविर के निर्माण के लिए सिप्ला, डॉ रेड्डीज लेबोरेटरीज, हेट्रो लैब्स, जुबिलेंट लाइफ साइंसेज, माइलान, सिंजेन और जाइडस कैडिला के साथ लाइसेंसिंग सौदों पर हस्ताक्षर किए हैं.
- हिट्रो 10.50 लाख, सिप्ला 6.20 लाख, जाइडस कैडिला 5 लाख और माइलेन 4 लाख शीशियों का उत्पादन कर सकती हैं. वहीं हेट्रो वर्तमान में एक या दो दिन में 35,000 शीशियों का उत्पादन कर रहा है. जबकि जाइडस कैडिला एक दिन में 12 लाख शीशियों तक पैमाना बनाने की योजना बना रहा है. इसने 100 मिलीग्राम की शीशी की कीमत 2,800 रुपये से घटाकर 899 रुपये कर दी है जो किसी भी निर्माता से सबसे सस्ती है.
- इसी प्रकार सिप्ला ने 4,000 रुपये, हेट्रो 5,400 रुपये, डॉ रेड्डीज लैब 5,400 रुपये, माइलान 4,800 रुपये और जुबिलेंट ने 4,700 रुपये मूल्य निर्धारित किया है.