पटना:बिहार को विकसित राज्यों की श्रेणी में लाने के लिए विकास का कौन सा मॉडल बेहतर होगा, इसे लेकर लंबे समय से बहस चल रही है. बिहार के राजनीतिक दल स्पेशल स्टेटस (Special Status for Bihar) को मजबूत विकल्प मानते रहे हैं. बिहार विधानसभा से दो बार स्पेशल स्टेटस को लेकर प्रस्ताव भी पारित किए जा चुके हैं. प्रस्ताव को बाकायदा केंद्र के पास भी भेजा गया. केंद्र में बनी अब तक की सरकारें स्पेशल स्टेटस को लेकर असमर्थता जाहिर करती रही हैं.
नीति आयोग की रिपोर्ट में बिहार (NITI Aayog Report Bihar) एक बार फिर पिछले पायदान पर आया तो बिहार के विकास को लेकर नए सिरे से बहस छिड़ गई. जेडीयू ने स्पेशल स्टेटस के मुद्दे को एक बार फिर जोर शोर से उठाना शुरू कर दिया.
जेडीयू नेताओं ने कहा कि बिहार अगर सबसे निचले पायदान पर है तो केंद्र को स्पेशल स्टेटस देने पर विचार करना चाहिए. दरअसल, बिहार के तमाम राजनीतिक दल यह चाहते हैं कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिले, लेकिन केंद्र की सरकार के लिए बिहार को स्पेशल स्टेटस देना चुनौतीपूर्ण एजेंडा है.
बता दें कि विशेष राज्य का दर्जा अब तक पर्वतीय राज्य दुर्गम क्षेत्र, सीमावर्ती इलाके और गरीब राज्यों को मिलने का प्रावधान था. लेकिन, रघुराम राजन कमिटी की रिपोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि सिर्फ पर्वतीय राज्य को ही स्पेशल स्टेटस दिया जा सकता है.
बिहार की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित और तकरीबन 96% जोत सीमांत और छोटे किसानों की है. राज्य के लगभग 32% परिवारों के पास जमीन नहीं है. राज्य के 15 जिले बाढ़ से प्रभावित हैं, वहीं 18 से 20 जिले सूखे से प्रभावित हैं. बिहार के पिछड़ेपन को लेकर स्पेशल स्टेटस को प्रसांगिक बताया जा रहा है. ऐसी कई वजह हैं जिसके चलते बिहार स्पेशल स्टेटस का हकदार है.
''स्पेशल स्टेटस के बगैर बिहार जैसे पिछड़े राज्यों का सर्वांगीण विकास संभव नहीं है. हमने जीडीपी के मामले में बेहतर परफॉर्म किया है और बिहार विधानमंडल की सर्व सम्मत मांग है. सरकार को स्पेशल स्टेटस के मसले पर पुनर्विचार करना चाहिए.''-नीरज कुमार, मुख्य प्रवक्ता, जनता दल यूनाइटेड