देहरादून :उत्तराखंड के जोशीमठ के रैणी गांव में आई आपदा के बाद से ही लगातार राहत बचाव कार्य जारी है. वहीं आपदा आने की असल वजह को वैज्ञानिकों ने ढूंढ लिया है. वैज्ञानिकों के अनुसार, मृगथूनी चोटी से एक चट्टान गिरी थी क्योंकि बर्फ गिरने, उसके पिघलने और फिर जमने से सतह दलदली बन जाती है और फिर चट्टानें कमजोर हो जाती हैं. जिसके चलते रॉक मास गिर गया और उसके ऊपर मौजूद ग्लेशियर हैंगिंग हो गया था. इस वजह चलते ग्लेशियर भी टूटकर नीचे आ गया.
ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक डॉ. कालाचंद साईं ने बताया कि ग्लेशियर ऐसे ही नहीं टूटते, बल्कि ग्लेशियर के टूटने के कई कारण होते हैं. लिहाजा जोशीमठ के रैणी गांव में आई आपदा ग्लेशियर टूटने की वजह से ही हुई है. लेकिन रैणी गांव के ऊपर मौजूद पहाड़ी चोटी से रॉक मास गिरने की वजह से ही ग्लेशियर टूटा है, क्योंकि गुरुत्वाकर्षण बल के कारण रॉक मास गिरने के बाद ग्लेशियर ज्यादा देर तक हैंगिंग पोजीशन में नहीं रह सका. ग्लेशियर भी रॉक मास के साथ ही नीचे आ गया.
ग्लेशियर के नीचे दलदली चट्टान
कालाचंद के अनुसार, ग्लेशियर के नीचे की दलदली पुरानी चट्टान भारी मात्रा में मिट्टी, मलबे और पानी के साथ तेजी से लुढ़की. जहां शुरुआत हुई, वहां तीव्र ढलान होने से बहुत सारा पानी, बर्फ के बड़े टुकड़े तेजी से बहने लगे और रौगर्थी गदेरा मलबे से भर गया. उच्च हिमालय में 5600 मीटर की ऊंचाई पर इस घटना से ही फ्लैश फ्लड की स्थिति बनी. कुछ देर के लिए यहां अस्थायी झील बनी, फिर ढलान पर निचले इलाकों में निकासी की सीमित जगह होने से मलबे का प्रेशर ज्यादा हो गया.