नई दिल्ली :CJI एन वी रमना ने कहा कि न्याय देना न केवल एक संवैधानिक कर्तव्य है, बल्कि एक सामाजिक दायित्व भी है, इसलिए जजों के लिए सामाज की वास्तविकताओं से अवगत होना जरूरी है. साथ ही उन्हें बदलती सामाजिक जरूरतों और उम्मीदों पर ध्यान देना चाहिए. मद्रास हाई कोर्ट की ओर से आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि दुनिया बहुत तेजी से आगे बढ़ रही है और हम जीवन के हर क्षेत्र में इस बदलाव को देख रहे हैं. इस दौर में हम पांच दिवसीय टेस्ट मैच से 20-20 फॉर्मेट में चले गए हैं. हम 3 घंटे की लंबी फिल्म की तुलना में कम अवधि के मनोरंजन को प्रॉयरिटी दे रहे हैं. जमाना फिल्टर कॉफी से इंस्टेंट कॉफी की ओर बढ़ गया है. इंस्टेंट नूडल्स के इस दौर में लोग तुरंत इंसाफ की उम्मीद करते हैं, लेकिन उन्हें इस बात का एहसास नहीं है कि अगर हम तत्काल न्याय के लिए प्रयास करते हैं तो रियल जस्टिस का नुकसान होगा.
अपने भाषण में चीफ जस्टिस ने अपने एक साल के कार्यकाल के अनुभवों को साझा किया. CJI एन वी रमना ने कहा कि अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने भारत के कानून व्यवस्था को प्रभावित करने वाले मुद्दों को हाईलाइट किया है. आज न्यायपालिका के सामने जनता के बीच संवैधानिक संस्था और अदालतों के प्रति विश्वास सुनिश्चित करने की चुनौती है. मुख्य न्यायाधीश ने संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने और लागू करने के लिए न्यायपालिका के कर्तव्य पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को कानून का शासन बनाए रखने, संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने और लागू करने की जिम्मेदारी सौपी गई है. आज के समय में यह एक भारी बोझ है, लेकिन हमने इस दायित्व को उस दिन ही खुशी से चुन लिया था, जब हमने अपनी संवैधानिक पद की शपथ ली थी. उन्होंने आगाह किया कि लोकतंत्र के लिए कानून का शासन और न्यायपालिका को मजबूत करना अनिवार्य है.
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने कहा कि न्याय देना न केवल एक संवैधानिक कर्तव्य है, बल्कि एक सामाजिक कर्तव्य भी है. किसी भी समाज में सिस्टम बनाए रखने के लिए संघर्ष का समाधान करना जरूरी है. मगर समाधान देना कोई टेक्निकल जॉब नहीं है. खासकर भारत जैसे देश में जज नियम-कानून पर आंख बद कर फैसला नहीं दे सकते हैं. उन्होंने जजों को सलाह दी कि फैसला सुनाने से पहले मापदंडों पर गौर करें. जजों को अपने फैसले से पहले सामाजिक-आर्थिक कारणों और उसके प्रभाव को तौलना पड़ता है.