नई दिल्ली: अर्थशास्त्रियों ने उच्च मुद्रास्फीति के जोखिम के बावजूद एक सतत आर्थिक विकास (Sustainable Economic Growth) का समर्थन करने के लिए रेपो रेट (Repo Rat) और समायोज्य राजकोषीय नीति (Accommodative Fiscal Policy) पर यथास्थिति बनाए रखने के रिजर्व बैंक के फैसले (Reserve Bank’s decision to maintain the status quo) की सराहना करते हुए कहा कि यह दर्शाता है कि केंद्रीय बैंक एक अलग रास्ते का अनुसरण करने में सक्षम है.
फिच ग्रुप की सॉवरेन रेटिंग एजेंसी, इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च के प्रधान अर्थशास्त्री सुनील कुमार सिन्हा (Sunil Kumar Sinha, Principal Economist, India Ratings and Research) का कहना है कि उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के केंद्रीय बैंकों द्वारा नीतिगत दरों में अपेक्षित वृद्धि के साथ घरेलू मुद्रास्फीति में वृद्धि के कारण यह व्यापक रूप से उम्मीद की गई थी कि आरबीआई अपनी मौद्रिक नीति में 10 फरवरी 2022 को समीक्षा, समायोजन नीति के रुख को समाप्त करने के संकेत दे सकती है.
उनका कहना है कि एजेंसी का यह विचार कि आरबीआई समायोजन के रुख (Accommodative Stance Of RBI) के साथ जारी रह सकता है, सच हो गया है क्योंकि आर्थिक सुधार स्पष्ट रूप से अभी तक व्यापक नहीं है और कुछ उच्च आवृत्ति संकेतक जनवरी 2022 में मांग के कमजोर होने का संकेत दे रहे हैं.
घरेलू कीमतों के लिए खतरा पैदा करने वाले अंतरराष्ट्रीय मुद्रास्फीति के जोखिम पर प्रकाश डालते हुए सिन्हा कहते हैं कि मुद्रास्फीति के मोर्चे पर खतरा विशेष रूप से तब बना रहता है जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें ऊंची (International Crude Oil Prices Remain Elevated) रहती हैं.
अपने मौद्रिक नीति (RBI Monetary Policy) संबोधन में, आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास (RBI governor Shaktikant Das) ने मार्च 2023 में समाप्त होने वाले अगले वित्त वर्ष में खुदरा मुद्रास्फीति को मध्यम से 4.5% तक कम करने का अनुमान लगाया है, जो केंद्रीय बैंक के 2% के ऊपरी और निचले मार्जिन के साथ इसे 4% पर बनाए रखने के अनुरूप है. वित्त वर्ष 2022-23 के लिए मुद्रास्फीति का अनुमान (Inflation Projection) चालू वित्त वर्ष के लिए आरबीआई के मुद्रास्फीति अनुमान से लगभग 80 आधार अंक (5.3%) कम है.