नई दिल्लीः रेपो रेट (Repo Rates) को बनाए रखने के भारतीय रिज़र्व बैंक (The Reserve Bank of India) के निर्णय ने कई विशेषज्ञों और अर्थशास्त्रियों को आश्चर्यचकित (surprised many experts and economists) कर दिया है. उनका मानना है कि इससे पता चलता है कि केंद्रीय बैंक को कोई जल्दी नहीं है. और उनकी प्राथमिकता आर्थिक सुधार की योजनाओं को बल देने के लिए मांग को बढ़ावा देना है.
आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज के मुख्य अर्थशास्त्री प्रसेनजीत के बसु (Prasenjit K Basu, Chief Economist of ICICI) का कहना है कि वैश्विक प्रतिकूलताओं और भारत की सीपीआई मुद्रास्फीति के धीरे-धीरे कम होने की संभावना को देखते हुए, उदार रुख के साथ बने रहना बेहद समझदारी है. बासु ने एक बयान में कहा कि नीतिगत ब्याज दर को ऐतिहासिक निचले स्तर पर लंबे समय तक रखने का एक प्रमुख कारण निजी खपत में अधिक टिकाऊ तेजी को बढ़ावा देना है.
कृषि क्षेत्र में दर्ज की गई मजबूत वृद्धि के बारे में बसु का कहना है कि भारत की सीपीआई मुद्रास्फीति मध्यम होगी क्योंकि रबी की मजबूत फसल अप्रैल-जून में खाद्य आपूर्ति को बढ़ावा देगी. जरूरी है कि विकसित देशों की तुलना में नीतिगत दरों को अधिक समय तक कम रहने दें. बसु ने कहा कि इससे इक्विटी वैल्यूएशन को बढ़ावा मिलेगा और खपत और निवेश में व्यापक आधार पर रिकवरी में मदद मिलेगी.
श्रीराम सिटी यूनियन फाइनेंस लिमिटेड के एमडी और सीईओ वाईएस चक्रवर्ती (YS Chakravarti, MD and CEO of Shriram City Union Finance Ltd) का कहना है कि प्रमुख नीतिगत दरों को अपरिवर्तित रखने के लिए रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति का सर्वसम्मत वोट ऋण वृद्धि के लिए उत्साहजनक है, जो वित्त वर्ष 19 के स्तर पर पिछड़ गया है. उन्होंने ईटीवी भारत को भेजे एक बयान में कहा कि आरबीआई के उदार रुख से आर्थिक गतिविधियों को समर्थन मिलेगा, जो धीरे-धीरे सामान्य हो रही है.