नई दिल्ली : रथ यात्रा मेले को जगन्नाथ रथ यात्रा के नाम से जाना जाता है. इस मेले की शुरुआत के बारे में कहा जाता है कि इस की शुरुआत 12वीं सदी में हुयी थी. इस यात्रा का विस्तृत विवरण हिंदू धर्म के तमाम ग्रंथों और पुराणों में मिला करता है. प्रसिद्ध पुराणों की मानें तो पद्म पुराण, ब्रह्म पुराण और स्कंद पुराण में रथयात्रा का वर्णन पाया जाता है.
रथ यात्रा के पीछे कई पौराणिक व धार्मिक कहानियां बतायी जाती हैं, जिनमें जगन्नाथ रथ यात्रा की 2 कथाएं अधिक प्रचलित हैं. पहली मान्यता ये है कि रथ यात्रा के दौरान जगन्नाथ जी 9 दिनों के लिए अपनी मौसी के घर गुंडिचा माता मंदिर जाया करते हैं. वहीं दूसरी मान्यता व कथा पद्म पुराण में मिलती है, जिसके अनुसार भगवान जगन्नाथ की बहन ने एक बार नगर देखने की इच्छा जाहिर की थी तो जगन्नाथ जी और बलभद्र अपनी बहन सुभद्रा को रथ पर बैठाकर नगर दिखाने की इच्चा से निकल पड़े थे. इसके बाद सभी लोग अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर भी गए थे और वहां पर तीनों लोग 9 दिनों तक रुके थे.
इसीलिए हर साल आषाढ़ माह में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकालकर उस परंपरा को निभाया जाता है. कहते हैं कि जगत के स्वामी यानी भगवान जगन्नाथ श्रीकृष्ण का ही एक स्वरूप हैं. पुरी रथ यात्रा आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से शुरू हुआ करती है और पूरे 10 दिनों तक चला करती है. ओडिशा के पुरी में रथ यात्रा का उत्सव पूरे 10 दिनों तक काफी धूमधाम से मनाया जाता है.