Butterfly Luna Moth: एमपी के बुंदेलखंड में नजर आई दुर्लभ प्रजाति की तितली लूना मॉथ, जैव विविधता के लिहाज से सुखद संकेत
जापान और अमेरिका में पाई जाने वाली यह दुर्लभ तितली एमपी के सागर जिले में देखने मिली है. इस तितली को लूना मॉथ कहते हैं. सागर से संवाददाता कपिल तिवारी कि इस रिपोर्ट में पढ़िए इस दुर्लभ प्रजाति की तितली से जुड़ी बातें.
सागर।वैसे तो बगीचों और हरियाली में तितली का नजर आना एक अलग बात है और तितलियों का रंग बिरंगा संसार हमें आकर्षित भी करता है, लेकिन बुंदेलखंड के जैसीनगर अंचल में एक अजीबोगरीब तितली आकर्षण का विषय बनी है. जो एक किसान के घर पर पत्तों पर बैठी नजर आयी है. इसे वैसे तो लूना मॉथ कहा जाता है. प्रमुख रूप से ये जापान और अमेरिका में पायी जाती है, लेकिन कभी उत्तराखंड में भी भारी संख्या में पाई जाती थी, लेकिन अब ये कम नजर आती है. ऐसे में विशेषज्ञों को मानना है कि बुंदेलखंड अंचल में लूना मॉथ का नजर आना जैवविविधता के लिहाज से सुखद संकेत है और यहां पर लूना मॉथ के लिहाज से अनुकूल वातावरण मिल रहा है.
कहां नजर आई अजीबोगरीब तितली: जिले के जैसीनगर विकासखंड के मोचल गांव में देखी गयी दुर्लभ तितली आकर्षण का केंद्र बनी हुई है. दरअसल यहां के ग्राम पंचायत सचिव नरेन्द्र सिंह ठाकुर के बगीचे में ये तितली नजर आयी है. सामान्य तितलियों से हटकर दिखने वाली ये तितली आकर्षण का केंद्र बनी हुई है. इसके पंख सामान्य तितली से अलग होते हैं और उसका रंग ज्यादातर हरा होता है. किसी भी पेड़ की पत्तियों में ये अगर बैठ जाए, तो कई बार लोग इसे पहचान भी नहीं पाते हैं और पत्ता ही समझते हैं. इसके पंख में चंद्रमा की तरह धब्बे होने के कारण से लूना मून मॉथ का नाम दिया गया है. जैसीनगर में नजर आई लूना मॉथ जापानीज लूना मॉथ है.
भारत में क्यों है दुर्लभ:जहां तक इस तितली की बात करें तो ये भारत में अब दुर्लभ प्रजातियों में गिनी जाती है. भारत में वैसे तो करीब 1300 किस्म की तितलियां पाई जाती है. जिनमें से सबसे ज्यादा 500 किस्म की तितलियां उत्तराखंड में पायी जाती है. पहले ये दुर्लभ तितली उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में पाई जाती थी, लेकिन अब ये उधर भी कम ही नजर आती है. ऐसे में इसे भारत देश में दुर्लभ माना गया है. ऐसी स्थिति में बुंदेलखंड में नजर आना जैवविविधता के लिहाज से काफी अच्छा संकेत माना जा रहा है. इसकी खासियत ये है कि रात में ज्यादा सक्रिय रहती है. यह प्रमुख रूप से जापान और अमेरिका में ज्यादा पाई जाती है. इसके अलावा नेपाल में भी इसे देखा गया है. इसके पंखों पर आंख की तरह नजर आने वाले धब्बों के कारण इसे मून मॉथ का नाम दिया गया है.
लूना मॉथ तितली
क्या खासियत है मोचल गांव में दिखी लूना मोथ की:सागर विश्वविद्यालय की प्राणी विज्ञान विभाग की शोध छात्रा रोशनी राजपूत बताती है कि प्राणीविज्ञान के आधार पर देखें, तो ये आर्थोपोडा समुदाय की कीट प्रजाति की लेपिडोपटेरा समूह के अंतर्गत आती है. इसका वैज्ञानिक नाम एक्टीयस आर्टिनस है. यह सामान्य रंग बिरंगी तितली से हटकर होती है. सामान्य रंग बिरंगी तितलियां जब कहीं भी बैठती है, तो अपने पंख बंद कर लेती है, लेकिन जापानीज लूना मॉथ हमेशा अपने पंख खुले रखती है.
लूना मॉथ के ऊपर के पंख में आंख की तरह आकृति पायी जाती है, जो दुश्मन या हमलावर जीव जंतु से इसका बचाव करती है. खुले पंख और आंख की तरह आकृति के कारण ऐसा लगता है कि कोई बड़ा जीव देख रहा है. लूना मोथ प्रमुख रूप से जापान और अमेरिका में पायी जाती है. जापान की लूना मॉथ के पंख छोटे और हल्के रंग के होते हैं. जबकि अमेरिकन लूना मॉथ के पंख बडे़ और गहरे रंग के होते हैं. लूना मॉथ की बात करें तो अपने जीवन चक्र में ये सबसे ज्यादा लार्वा अवस्था में पेड़ पौधे और फसलों को नुकसान पहुंचाती है. व्यस्क अवस्था में इसका जीवन 7 से 8 दिन का होता है.
क्या कहते हैं जानकार: सागर सेंट्रल यूनिवर्सटी की प्राणीविज्ञान विभाग की शोध छात्रा रोशनी राजपूत ने बताया कि उसका साइंटिफिक नाम जापानीज लूना मॉथ या मून मॉथ बोलते हैं. भारत में ये दुर्लभ है और इसे बहुत लंबे समय के बाद देखा गया है. मूल रूप से ये अमेरिका और जापान में पायी जाती है. भारत में ये पहले पायी जाती थी, लेकिन फिलहाल लंबे समय के बाद देखी गयी है. तो ये जैव विविधता के नजरिए से ये अच्छा संकेत है कि यहां का वातावरण और पर्यावरण इसके लिहाज से अनुकूल हो रहा है. यह सामान्य तितली से थोड़ी हटकर होती है. इसके बैठने पर इसके पंख हमेशा खुले रहते हैं, जबकि तितली अपने पंख बंद कर लेती है. इसके पंख पर आंखों की तरह आकृति होती है, जो इसकी उन प्राणियों से रक्षा में मददगार है, जो इसको खा सकते हैं या नुकसान पहुंचा सकते हैं. इसका एंटीना की संरचना कंघी की तरह होती है. इसका मतलब ये है कि ये बहुत दुर्लभ और विशेष है और इसका यहां देखा जाना कि ये बुंदेलखंड और यहां के पर्यावरण के लिए बहुत अच्छे संकेत है. इसके बारे में हम और अध्ययन करेंगे और पता लगाने की कोशिश करेंगे कि भारत में जो देखी जा रही है, ये कौन सी प्रजाति की है.