नई दिल्ली : दिल्ली में यूं तो कई खूबसूरत जगह हैं, लेकिन सेंट्रल दिल्ली में रायसिना पहाड़ी के पीछे बना रकाबगंज गुरुद्वारा कुछ अलग है. ये दिल्ली के 10 ऐतिहासिक गुरुद्वारों में एक है और वही जगह है, जहां गुरु तेग बहादुर के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार किया गया था. मौजूदा समय में ये धार्मिक जगह होने के साथ ही सिख राजनीति का सबसे बड़ा केंद्र है.
क्या है इतिहास
दिल्ली में जो दो गुरुद्वारे श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की शहादत के प्रतीक हैं. उनमें एक रकाबगंज तो वहीं दूसरा चांदनी चौक का मशहूर सीसगंज साहिब है. जब तेग बहादुर साहिब जी ने इस्लाम धर्म अपनाने से इनकार कर दिया, तब मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर भरी सभा में गुरु जी का सिर कलम कर दिया गया था. बताया जाता है कि भाई जैता जी गुरु जी का शीश लेकर आनंदपुर रवाना हुए थे, जबकि भाई लक्खी शाह धड़ को अपने घर ले गए. उन्होंने गुरु जी के धड़ का अंतिम संस्कार करने के लिए अपने पूरे घर को आग लगा दी थी. इसी जगह पर आज का गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब बना है.
कैसे पड़ा नाम
गुरुद्वारे के नाम को लेकर भी एक अलग मान्यता है. इसे सिखों के 10वें गुरु के नाम से जोड़ा जाता है. बताया जाता है कि जब श्री गुरु गोबिंद सिंह जी रणभूमि की ओर चले थे तो इसी जगह पर घोड़े की रकाब पर पांव रखते ही वह टूट गई थी. अब तक वह टूटी हुई रकाब उसी प्रकार सुरक्षित रखी हुई है. इसी के बाद गुरुद्वारे का नाम रकाबगंज पड़ा था.
12 साल में बना गुरुद्वारा
गुरुद्वारे का मौजूदा रूप 12 साल में बनकर तैयार हुआ था. इसे 1783 में सिख जेनरल बघेल सिंह ने दिल्ली फ़तह कर बनवाया था. मंदिर की जगह पुराने रायसिना गांव की जगह है जिस पर इतिहास में कई विवाद होने की भी बात है. हालांकि, हर बार गुरुद्वारे के पक्ष में ही फैसला आया.