नई दिल्ली :सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी से संबंधित विभिन्न क्लीनिक की निगरानी और उनके नियमन तथा इस प्रक्रिया के व्यावसायिक दुरूपयोग पर नियंत्रण के लिए कानूनी प्रावधान के उद्देश्य से लाए गए जननीय प्रौद्योगिकी (विनियमन) विधेयक को बुधवार को संसद की मंजूरी मिल गई.
उच्च सदन में आज ध्वनिमत से पारित हुआ यह विधेयक एक दिसंबर को लोकसभा में पारित हो चुका है.
उच्च सदन में सरोगेसी (विनियमन) विधेयक को भी ध्वनिमत से मंजूरी दे दी गई. लोकसभा में यह विधेयक पहले ही पारित हो चुका था. लेकिन राज्यसभा में आने के बाद इसे प्रवर समिति को भेज दिया गया था. इसलिए राज्यसभा में पारित होने के बाद यह विधेयक मंजूरी के लिए पुन: लोकसभा में लाया जाएगा.
दोनों विधेयकों पर चर्चा साथ-साथ हुई. चर्चा का जवाब देते हुए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री मनसुख मांडविया ने कहा कि सरोगेसी विधेयक पर प्रवर समिति की ज्यादातर सिफारिशों को स्वीकार कर लिया गया है. उन्होंने कहा कि दोनों विधेयकों में लिंग चयन, सरोगेट माताओं का शोषण, सरोगेसी से जन्मे बच्चे को कोई विकार होने पर छोड़ देने जैसी अनैतिकताओं पर रोक लगाने का प्रावधान है. इनमें नियमों का उल्लंघन करने पर आर्थिक दंड और जेल की सजा की भी व्यवस्था है.
मांडविया ने कहा कि दोनों ही विधेयकों का उद्देश्य जन्म देने में समस्याओं का सामना करने वाली महिलाओं का सम्मान, उनकी गरिमा और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना है. उन्होंने बताया कि सरोगेसी विधेयक में राष्ट्रीय सरोगेसी बोर्ड, राज्यों में सरोगेसी बोर्ड का गठन करने और सरोगेसी प्रक्रिया के नियमन के लिए समुचित प्राधिकारियों की नियुक्ति करने की व्यवस्था की गई है.
मंत्री ने बताया कि जननीय प्रौद्योगिकी (विनियमन) विधेयक का उद्देश्य सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी क्लीनिक एवं सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी बैंकों का नियमन एवं निगरानी तथा इस तकनीक का दुरुपयोग रोकना है.
उन्होंने कहा कि देश में ऐसे कई क्लीनिक चल रहे हैं जो कृत्रिम गर्भाधान (आईवीएफ) सहित सहायक प्रजनन तकनीक और सरोगेसी का उपयोग कर रहे हैं और इनके लिये कोई नियमन नहीं है और अगर इसका नियमन नहीं किया गया तब यह मददगार प्रौद्योगिकी उद्योग का रूप ले सकती है. दुरूपयोग रोकने के लिए सरोगेसी और कृत्रिम गर्भाधान सहित सहायक प्रजनन तकनीक (एआरटी) का नियमन जरूरी था.