नई दिल्ली : राज्य सभा ने बुधवार को राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) विधेयक 2021 को विपक्ष के भारी विरोध के बीच मंजूरी प्रदान कर दी जिसमें दिल्ली के उपराज्यपाल की कुछ भूमिकाओं और अधिकारों को परिभाषित किया गया है.
उच्च सदन में विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी ने कहा कि संविधान के अनुसार सीमित अधिकारों वाली दिल्ली विधानसभा से युक्त एक केंद्रशासित राज्य है. उच्चतम न्यायालय ने भी अपने फैसले में कहा है कि यह केंद्रशासित राज्य है. सभी संशोधन न्यायालय के निर्णय के अनुरूप हैं.
रेड्डी ने कहा कि संविधान के 239 ए अनुच्छेद के तहत राष्ट्रपति दिल्ली के लिए उपराज्यपाल की नियुक्ति करते हैं. उन्होंने कहा कि उपराज्यपाल और दिल्ली की चुनी हुई सरकार के बीच किसी विषय को लेकर विचारों में अंतर होता है तो उपराज्यपाल इसके बारे में राष्ट्रपति को सूचित करते हैं.
उन्होंने कहा कि वह दिल्ली की जनता को यह आश्वासन देना चाहते हैं कि दिल्ली सरकार के किसी अधिकार को कम नहीं किया गया है. उन्होंने कहा कि दिल्ली विधानसभा के पास सीमित विधायी अधिकार हैं.
मंत्री के जवाब के बाद सदन ने ध्वनिमत से राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) विधेयक 2021 (एनसीटी विधेयक) को मंजूरी प्रदान कर दी. इस दौरान, कांग्रेस, बीजद, सपा, वाईएसआर सहित कई विपक्षी दलों ने सदन से वाकआउट किया.
नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि वह इस विधेयक के बारे में सरकार के जवाब से संतुष्ट नहीं है इसलिए उनकी पार्टी सदन से बर्हिगमन कर रही है.
गृह राज्य मंत्री ने कहा कि दिल्ली विधानसभा जन व्यवस्था, पुलिस और भूमि को छोड़कर राज्य एवं समवर्ती सूची के हर विषय पर कानून बना सकती है.
उन्होंने कहा कि संविधान के तहत दिल्ली सरकार को जो अधिकार प्राप्त हैं, नरेंद्र मोदी सरकार उनमें से एक भी अधिकार (इस विधेयक के जरिये) नहीं ले रही है.
रेड्डी ने कहा कि इस संशोधन का मकसद मूल विधेयक में जो अस्पष्टता है उसे दूर करना ताकि इसे लेकर विभिन्न अदालतों में कानून को चुनौती नहीं दी जा सके.
उन्होंने उच्चतम न्यायालय के 2018 के एक आदेश का हवाला दिया जिसमें कहा गया है कि उपराज्यपाल को सभी निर्णयों, प्रस्तावों और एजेंडा की जानकारी देनी होगी. यदि उपराज्यपाल और मंत्री परिषद के बीच किसी मामले पर विचारों में भिन्नता है तो उपराज्यपाल उस मामले को राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं.
उन्होंने चर्चा के दौरान कांग्रेस के कुछ सदस्यों द्वारा इस विधेयक को लोकतंत्र की हत्या बताने का विरोध करते हुए कहा कि 1975 में आपातकाल लगाना देश का सबसे काला इतिहास है. उन्होंने कहा कि आपातकाल के दौरान लोकनायक जयप्रकाश नारायण सहित करीब एक लाख लोगों को मीसा के तहत जेल में बंद किया गया.
हमें प्रजातंत्र के बारे में मत सिखाइये : रेड्डी
रेड्डी ने कहा कि आप हमें प्रजातंत्र के बारे में मत सिखाइये. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पिछले सात साल के शासन में एक बार भी अनुच्छेद 356 का प्रयोग नहीं किया गया. पूर्व में इस अनुच्छेद का प्रयोग कर कई लोकप्रिय सरकारों को गिराया गया.
उन्होंने सभी दलों से इस विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि इसे किसी राजनीतिक दृष्टिकोण से नहीं लाया गया है और इसे पूरी तरह से तकनीकी आधार पर लाया गया है.
रेड्डी ने कहा कि दिल्ली विधानसभा के साथ एक केंद्र शासित प्रदेश है. यह सभी लोगों को समझना चाहिए कि इसकी सीमित शक्तियां हैं. इसकी तुलना किसी अन्य राज्य से नहीं की जा सकती है.
विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों के अनुसार, इस विधेयक में दिल्ली विधानसभा में पारित विधान के परिप्रेक्ष्य में ‘सरकार' का आशय राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के उपराज्यपाल से होगा.
इसमें कहा गया है कि विधेयक में यह भी सुनिश्चित करने का प्रस्ताव किया गया है कि उपराज्यपाल को आवश्यक रूप से संविधान के अनुच्छेद 239क के खंड 4 के अधीन सौंपी गई शक्ति का उपयोग करने का अवसर मामलों में चयनित प्रवर्ग में दिया जा सके.
लोकतंत्र के लिए दुखद दिन : केजरीवाल
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि यह लोकतंत्र के लिए 'दुखद दिन' है. उन्होंने ट्वीट किया, 'राज्यसभा ने जीएनसीटीडी विधेयक पारित किया. भारतीय लोकतंत्र के लिए दुखद दिन. लोगों को सत्ता दोबारा सौंपने के लिए संघर्ष करते रहेंगे. जो भी अड़चने आएंगी हम अच्छा काम करते रहेंगे. काम न रुकेगा, न धीमा होगा.'
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दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने इसे लोकतंत्र के लिए काला दिवस बताया. उन्होंने ट्वीट किया, 'आज का दिन लोकतंत्र के लिए काला दिन है. दिल्ली की जनता द्वारा चुनी गई सरकार के अधिकारों को छीन कर एलजी के हाथ में सौंप दिया गया. विडंबना देखिये कि लोकतंत्र की हत्या के लिए संसद को चुना गया जो हमारे लोकतंत्र का मंदिर है. दिल्ली की जनता इस तानाशाही के खिलाफ लड़ेगी.'