नई दिल्ली : कुटुम्ब न्यायालय (संशोधन) विधेयक को बृहस्पतिवार को संसद की मंजूरी मिल गई. विपक्षी सदस्यों के हंगामे के बीच राज्यसभा ने आज इस विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया. लोकसभा में यह विधेयक पहले ही पारित हो चुका है. विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए विधि एवं न्याय मंत्री किरेन रीजीजू (Union Minister Kiren Rijuju) ने हर राज्य में और हर जिले में परिवार अदालतों की स्थापना को समय की मांग बताया और कहा कि वर्तमान में इन अदालतों में 11 लाख से अधिक मामले लंबित हैं जिन्हें समय पर निस्तारण जरूरी है.
उन्होंने कहा कि कुटुंब न्यायालय प्रत्येक जिले में खुले इसके लिए वह राज्य सरकारों से बात करेंगे. कुटुम्ब न्यायालय (संशोधन) विधेयक, 2022 पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए विधि एवं न्याय मंत्री ने कहा कि सरकार की योजनाएं तब ही सार्थक होंगी जब परिवार सुखी होगा और उसे उन योजनाओं का लाभ मिलेगा. उन्होंने कहा कि यह विधेयक लंबित मामलों के समाधान में मददगार होगा. विपक्षी सदसयों के हंगामे के बीच रीजीजू ने कहा कि बहुत जल्दी वे कुटुम्ब अदालतों के विषय की समीक्षा करने वाले हैं. उन्होंने कहा कि 30 जुलाई को जिला न्यायाधीशों का एक सम्मेलन बुलाया गया जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत के प्रधान न्यायाधीश शामिल हुए.
उन्होंने बताया कि इस सम्मेलन में परिवार अदालतों से जुड़े विषय रखे गए. 'मैंने कहा कि परिवार अदालतों को प्राथमिकता दी जाए. कानूनी प्रक्रिया लंबी चलने पर बच्चे परेशान होते हैं.' रीजीजू ने कहा कि देश में 715 परिवार अदालतें हैं और इस साल मई महीने तक इनमें 11.43 लाख मामले लंबित थे. उन्होंने कहा कि परिवार अदालतों के मामलो को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, ताकि मामलों का निपटारा समय पर हो सके और सरकार अवसंरचना के लिए हरसंभव मदद कर रही है.
रीजीजू ने कहा कि हर जिले में परिवार अदालत स्थापित की जानी चाहिए और लंबित मामलों का जल्द निपटारा होना चाहिए ताकि मानसिक तकलीफ से बचा जा सके. मंत्री के जवाब के बाद सदन ने ध्वनिमत से विधेयक को मंजूरी दे दी. लोकसभा पहले ही इस विधेयक को मंजूरी दे चुकी है. विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों के अनुसार, हिमाचल प्रदेश और नगालैंड राज्यों मे कुटुंब अदालत अपनी स्थापना की तारीख से ही कार्य कर रही हैं तथा राज्य सरकार के साथ कुटुंब अदालतों की कार्रवाई को विधिमान्य करना अपेक्षित है, इसलिए इस अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव किया गया है. इसके माध्यम से इन दोनों राज्यों में कुटुंब अदालतों के अधीन की गई सभी कार्रवाइयों को पूर्व प्रभाव से विधिमान्य किया जा सकेगा.
इससे पहले विधेयक पर चर्चा के दौरान भारतीय जनता पार्टी की सरोज पांडेय ने कहा कि परिवार अदालतों का गठन एक अधिसूचना जारी कर किया जाता हें लेकिन हिमाचल प्रदेश ओर नगालैंड राज्य में ऐसी अधिसूचना जारी किए बिना ही परिवार अदालतों का गठन कर दिया गया. सरोज ने कहा कि संयुक्त परिवारों और एकल परिवारों की अलग-अलग समस्याएं हैं. ऐसे हालात बने कि परिवार टूटने लगे. उन्होंने अधिक से अधिक परिवार अदालतों की स्थापना की मांग की. उन्होने कुटुम्ब अदालतों में 11.4 लाख मामले लंबित होने पर चिंता व्यक्त की और इनके तीव्र निपटारे की जरूरत बतायी और कहा कि ऐसा होने पर परिवार मानसिक संताप से बच सकेंगे.