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बिल्डिंग पर बमबारी, ट्रेन में चढ़ने से रोका, घंटों का संघर्ष और...कुछ यूं पूरा हुआ सफर

यूक्रेन पर रूसी हमलों के बीच भारतीय छात्रों का वहां से लौटने का क्रम जारी है. बिगड़ते हालातों के बीच भारत की ओर से पड़ोसी देशों के जरिए छात्रों को एयरलिफ्ट कराया (Rajasthani Students Return From Ukraine) जा रहा है. ऑपरेशन गंगा के तहत ही कुछ स्टूडेंन्ट्स जोधपुर एयरपोर्ट पहुंची. ये छात्राएं खुद को खुशनसीब मान रही हैं लेकिन ये भी मानती हैं कि यूक्रेन का वो मंजर लम्बे समय तक इनके दिलो दिमाग पर छाया रहेगा.

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Published : Mar 5, 2022, 3:05 PM IST

जोधपुर:यूक्रेन के युद्ध ग्रस्त (Russia Ukraine Conflict) इलाकों से भारतीय छात्रों का ऑपरेशन गंगा के तहत निकलना (Operation Ganga For Indian Students) जारी है. इस कड़ी में आज सुबह जोधपुर की कुछ छात्राएं दिल्ली से जोधपुर पहुंची. इनके पहुंचने के साथ ही सूर्यनगरी के कुल 25 छात्र लौट आए हैं.

इन छात्रों से ईटीवी भारत ने बात की तो पता चला की उस मंजर को भूलना अब आसान नहीं ( Girls From Jodhpur says Will never ever forget Kiev Crisis ) काफी मुश्किल होगा. कहते हैं जिंदगी भर उन लम्हों को भुला नहीं पाएंगे. बताया कि हमारे आसपास लगातार बम धमाके हो रहे थे. अब उनकी गूंज हमें हमेशा सुनाई देगी. वायुसेना के C17 प्लेन से छात्र दिल्ली पहुंचे. वहीं से आज इंडिगो फ्लाइट के जरिए सुबह 8:30 बजे जोधपुर एयरपोर्ट पर पहुंचे. इन स्टूडेन्ट्स में बुलबुल चौधरी, भूमिका, नेहा भाटी, अनीशा चौधरी, सुरभि श्रीवास्तव शामिल हैं.

जोधपुर लौटी छात्राओं ने बताए वो खौफनाक पल

जोधपुर लौटी छात्रा ने बताया कि उनका हॉस्टल यूक्रेन की राजधानी (Rajasthani Students Return From Ukraine) में था. हॉस्टल क्योंकि एयरपोर्ट के पास था उसे पहले रशियन ने टारगेट बनाया. वहां हर दिन धमाके हो रहे थे. हमारा बाहर निकलना भी नामुमकिन था. बड़ी मुश्किल से खाने पीने का सामान जुटा पाते थे. छात्रों ने बताया कि बिरोल से बॉर्डर तक आने में काफी परेशानियां हुई. इन छात्रों को हॉस्टल से निकलकर ट्रेन पकड़नी थी. लेकिन यूक्रेनी लोगों ने ट्रेन में चढ़ने नहीं दिया. कुछ जगह चढ़ गए तो उतार दिया. कड़े संघर्ष और घंटों इंतजार के बाद ट्रेन में बैठने दिया गया.

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इन छात्रों के मुताबिक ये अकल्पनीय था क्योंकि इससे पहले कभी यूक्रेन में किसी भी नागरिक ने इनसे ऐसा व्यवहार नहीं किया था. साथ में ये भी कहते हैं कि हम समझ सकते हैं उनकी तकलीफ. युद्ध के हालात में सभी को शायद अपनी जान बचाने की चिंता थी. कठिन हालातों के बाद इन्हें सुकून के पल तब मिले जब बॉर्डर पर भारतीय एंबेसी के लोगों ने इनकी मदद में हाथ बढ़ाया. कहते हैं- हमें मेडिकल एड दी गई, खाना पीना भी मुहैया कराया गया और उसके बाद घर तक पहुंचाने का काम किया.

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