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Jaipur Bomb Blast: आरोपियों का आपराधिक षड़यंत्र नहीं हुआ साबित-हाईकोर्ट - अभियोजन के पास नहीं था कोई सुराग

राजस्थान की राजधानी पिंक सिटी 13 मई, 2008 को बम धमाकों से दहल गई थी. इन धमाकों के आरोपियों के खिलाफ आपराधिक षड़यंत्र को अभियोजन साबित करने में नाकाम रहा. इसीलिए हाईकोर्ट ने सभी को बरी कर दिया.

jaipur bomb blast
आरोपियों का आपराधिक षड़यंत्र नहीं हुआ साबित-हाईकोर्ट

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Published : Mar 30, 2023, 9:02 PM IST

जयपुर.राजस्थान हाईकोर्ट ने 13 मई, 2008 को शहर में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के मामले में अभियुक्तों को बरी करते हुए कहा है कि अभियोजन की ओर से ऐसा कोई भी साक्ष्य नहीं दिया है, जिससे यह साबित हो सके कि मोहम्मद सैफ, सैफुर्रहमान, सलमान व सरवर आजमी ने शहर में बम ब्लास्ट की कोई साजिश रची हो. ऐसे में अभियोजन आरोपियों के खिलाफ जयपुर बम ब्लास्ट करने के आपराधिक षड़यंत्र को साबित करने में नाकाम रहा है.

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अभियोजन के पास नहीं था कोई सुरागः अदालत ने माना की राज्य सरकार ने मामले में सह आरोपी मोहम्मद सैफ के डिसक्लोजर स्टेटमेंट के आधार पर ही अपनी कहानी को आगे बढ़ाया था. यह डिसक्लोजर स्टेटमेंट ही जयपुर बम ब्लास्ट के कई महीनों बाद दर्ज किया है. मोहम्मद सैफ की गिरफ्तारी से पहले अभियोजन के पास जयपुर बम ब्लास्ट केस के खुलासे का कोई भी सुराग नहीं था. इसके अलावा मामले में ऐसा कोई भी सिंगल लिंक नहीं है, जो आरोपियों के बीच जयपुर बम ब्लास्ट करने के आपराधिक षड़यंत्र को साबित करता हो.

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महत्वपूर्ण लोगों के नहीं दर्ज कराए बयानः आरोपियों ने 13 मई को जयपुर में बम ब्लास्ट के बाद इसकी जिम्मेदारी लेने वाला ईमेल 14 मई 2008 को इंडिया टीवी व आज तक को भेजा था. इन मीडिया हाउस ने उस ईमेल की जानकारी तत्कालीन एडीजी एके जैन को दी थी. निचली कोर्ट में न तो अभियोजन पक्ष मीडिया हाउस के प्रकाश टंडन के बयान दर्ज करा पाया और न ही उन्होंने इस मामले में एडीजी जैन को गवाह बनाया. इतना ही नहीं मीडिया हाउस को भेजे गए बम ब्लास्ट की जिम्मेदारी लेने वाले ईमेल की ओरिजनल कॉपी भी पेश नहीं की.

ATS ने भी बरती लापरवाहीःहाईकोर्ट ने साक्ष्य अधिनियम के तहत इसे अभियोजन पक्ष की खामी माना. इसके अलावा ATS की डिसक्लोजर रिपोर्ट में चारों आरोपियों को दिल्ली से नाम बदलकर डीलक्स बस के जरिए जयपुर आना बताया है. एटीएस ने डीलक्स बस के रिजर्वेशन एवं दिल्ली और जयपुर के बस स्टैंडों के सीसीटीवी कैमरों की जांच नहीं की. निचली अदालत में ट्रायल के दौरान कोई बस टिकट ही पेश नहीं किया गया. ऐसे में अभियोजन की कहानी आरोपियों के खिलाफ किए गए अपराध की चेन व लिंक को साबित नहीं कर पाई है.

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