जयपुर. 30 मार्च यानी आज राजस्थान स्थापना दिवस (Rajasthan Day on 30th March) है. प्रदेश की छोटी-बड़ी 36 रियासतों का एकीकरण कर 30 मार्च, 1949 को राजस्थान बना. राजस्थान का मतलब राजाओं का स्थान होता है. इसका तात्पर्य तत्कालीन सामाजिक परिवेश से था. क्योंकि जिन रियासतों का विलय किया गया था वे सभी राजाओं के अधीन रह चुकी थीं. हालांकि यह सब आसान नहीं था, लेकिन लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल के अथक प्रयासों से यह संभव हुआ. जानिए क्या है राजस्थान की स्थापना की कहानी और इससे जुड़े कुछ विशेष किस्से इतिहास के जानकार जितेंद्र सिंह शेखावत से.
राजशाही से लोकतंत्र की ओर : जितेंद्र सिंह शेखावत बताते हैं कि आजादी के बाद सबसे बड़ा काम था अलग-अलग रियासतों में बटे राजपुताना का एकीकरण. लेकिन सरदार पटेल की सूझबूझ से 30 मार्च, 1949 को वृहद राजस्थान की स्थापना हुई. सबसे पहले जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर रियासतों का राजस्थान संघ बनाया गया. जिसे बाद में राजस्थान कहा गया. आजाद भारत के राजस्थान राज्य के पहले मनोनीत मुख्यमंत्री हीरा लाल शास्त्री बने. उसके बाद से राजा-रानी के वारिस से नहीं बल्कि लोकतंत्र की मतपेटियों से सरकार बनने लगी. अब राजशाही से हम लोकतंत्र में आधुनिक राजस्थान की ओर बढ़ने लगे थे.
इन सात चरणों में हुआ राजस्थान का गठन:
- 18 मार्च, 1948 को अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली रियासतों का विलय होकर 'मत्स्य संघ' बना. धौलपुर के तत्कालीन महाराजा उदयसिंह राजप्रमुख और अलवर राजधानी बनी.
- 25 मार्च, 1948 को कोटा, बूंदी, झालावाड़, टोंक, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, किशनगढ़ और शाहपुरा का विलय होकर राजस्थान संघ बना.
- 18 अप्रैल, 1948 को उदयपुर रियासत का विलय. नया नाम 'संयुक्त राजस्थान संघ' रखा गया. उदयपुर के तत्कालीन महाराणा भूपाल सिंह राजप्रमुख बने.
- 30 मार्च, 1949 को जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर रियासतों का विलय होकर 'वृहत्तर राजस्थान संघ' बना था. यही राजस्थान की स्थापना का दिन माना जाता है.
- 15 अप्रेल, 1949 को 'मत्स्य संघ' का वृहत्तर राजस्थान संघ में विलय हो गया.
- 26 जनवरी, 1950 को सिरोही रियासत को भी वृहत्तर राजस्थान संघ में मिलाया गया.
- 1 नवंबर, 1956 को आबू, देलवाड़ा तहसील का भी राजस्थान में विलय हुआ, मध्य प्रदेश में शामिल सुनेल टप्पा का भी विलय हुआ.
पहली बार दरबार में खुले सिर पहुंचे थे:शेखावत कहते हैं कि जब सभी रियासतों का विलय हो गया और पहली बार मनोनीत मुख्यमंत्री हीरा लाल शास्त्री का शपथ ग्रहण समारोह सिटी पैलेस के भव्य दरबार में रखा गया. उस वक्त पहली बार कोई राजा के दरबार में खुले सिर पहुंचा था. तो वो थे सरदार पटेल और उनके साथ तमाम कांग्रेस के बड़े नेता थे. इससे पहले कभी ऐसा नहीं था कि राजा के दरबार में कोई टोपी या पगड़ी पहने बगैर पहुंचता हो. उस दिन लोगों को देश और प्रदेश के स्वतंत्र होने का अहसास हुआ था.
पटेल को लिफ्ट लेकर आना पड़ा: इतिहास के जानकार शेखावत बताते हैं कि यह उस वक्त का बड़ा चर्चित किस्सा है कि राजस्थान के पहले मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह में सरदार वल्लभभाई पटेल को आकाशवाणी की गाड़ी में लिफ्ट लेकर आना पड़ा हो. दरअसल हुआ यूं कि 30 मार्च, 1949 को सिटी पैलेस में शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने के लिए सरदार पटेल 29 मार्च को दिल्ली से हवाई जहाज से रवाना हुए. यहां सबको इंतजार था कि सरदार पटेल अभी थोड़ी देर में आने वाले हैं. उनका विमान दिल्ली 2 बजे रवाना भी हो गया लेकिन पटेल का विमान बीच में खराब हो गया, जिसकी वजह से शाहपुरा के पास एक सूखी नदी में उनके विमान को उतारा गया. उसके बाद सरदार पटेल ओर उनके साथी सड़क पर आकर खड़े हो गए. कुछ देर इंतजार के बाद दिल्ली से शपथ ग्रहण समारोह की न्यूज कवर करने के लिए आकाशवाणी की कार आती हुई दिखाई दी. उस कार में बैठकर सरदार पटेल जयपुर आए.
अफवाह फेल गई थी पटेल नहीं आएंगे: जब पटेल का हवाई जहाज खराब हुआ और उनके आने में देरी हुई तो यह अफवाह फैल गई थी कि सरदार पटेल नहीं आ रहे हैं, क्योंकि कांग्रेस का जो दूसरा गुट था उसने सरदार पटेल को आने से मना कर दिया था. लेकिन सरदार पटेल जयपुर रामबाग होटल में पहुंचे और वहां पर रुके. रात को ही हीरालाल शास्त्री ने पटेल से मुलाकात की तब जाकर उनको सांत्वना हुई कि हां अब कल शपथ ग्रह समारोह होगा.
राजा के दरबार में बैठने की व्यवस्था से नाराज हो गया एक गुट: शेखावत बताते हैं कि शपथ ग्रहण समारोह बड़ा आयोजन था. उस समय समारोह में एक गुट के लोग नाराज हो गए थे. जयनारायण व्यास जो कि कांग्रेस के बड़े नेता थे. माणिक लाल वर्मा, मोहनलाल सुखाड़िया, मथुरा दास जैसे दिग्गज नेता शपथ होने लगी तो उससे पहले उठकर चले गए. हीरा लाल शास्त्री पीछे भागे और पूछा कि आप कैसे नाराज हो गए तो उन्होंने कहा कि हमारे बैठने की व्यवस्था नहीं है?.