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एसीबी का बड़ा फैसला: राजस्थान में भ्रष्टाचारियों के नाम और फोटो अब नहीं होंगे उजागर - Rajasthan hindi news

राजस्थान में एसीबी ने बड़ा निर्णय (Rajasthan ACB decision) लिया है. अब एसीबी की कार्रवाई में आरोपी का नाम और फोटो सार्वजिक नहीं की जाएगी. एडीजी ने निर्देश जारी किया है कि जब तक कोर्ट से दोष सिद्ध नहीं हो जाता आरोपी की पहचान गोपनीय रखी जाएगी.

Rajasthan ACB decision, names and photos of corrupt will remain secret
एसीबी का बड़ा फैसला.

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Published : Jan 4, 2023, 9:13 PM IST

जयपुर.बीएल सोनी के एसीबी डीजी के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद एडीजी हेमंत प्रियदर्शी को अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया है. एडीजी हेमंत प्रियदर्शी ने बुधवार को एक आदेश जारी किया है जिसमें कहा गया है कि एसीबी की ओर से ट्रैप किए जाने वाले आरोपी का नाम और फोटो सार्वजनिक करने पर पाबंदी लगा (Acb will not disclose name and photo of corrupt) दी गई है. एसीबी मुख्यालय से प्रदेश के तमाम एसीबी यूनिट प्रभारी और चौकी प्रभारियों को इस आदेश की सख्ती से पालना करने के निर्देश दिए गए हैं.

एसीबी मुख्यालय से जारी (Rajasthan ACB decision) किए गए इस आदेश के बाद से ही एसबी टीम ने अब आरोपी की फोटो और नाम प्रेस नोट में देना बंद कर दिया है. इस आदेश को लेकर पुलिस महकमे में चर्चा काफी तेज हो गई है. न्यायालय की ओर से दोषी साबित नहीं होने तक पहचान गोपनीय रहेगी. एडीजी हेमंत प्रियदर्शी ने जो आदेश जारी किया है उसमें इस बात का जिक्र किया है कि एसीबी टीम की ओर से किसी भी व्यक्ति को ट्रैप करने के बाद जब तक न्यायालय उस व्यक्ति को दोषी साबित नहीं कर देता तब तक उस व्यक्ति की पहचान को पूरी तरह से गोपनीय रखा जाएगा.

एसीबी की ओर से जारी आदेश.

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उस व्यक्ति की फोटो और नाम किसी व्यक्ति या विभाग में सार्वजनिक नहीं किया जाएगा. आरोपी जिस विभाग में कार्यरत है उस विभाग का नाम और व्यक्ति के पदनाम के बारे में मीडिया को जानकारी दी जाएगी. एसीबी की कस्टडी में जो भी आरोप या संदिग्ध व्यक्ति होगा उसकी सुरक्षा और मानवाधिकार की रक्षा की जिम्मेदारी ट्रैप करने वाले अधिकारी या अनुसंधान अधिकारी की होगी.

वसुंधरा राजे के काले कानून से की जा रही आदेश की तुलना
एसीबी एडीजी हेमंत प्रियदर्शी की ओर से जारी किए गए आदेश की तुलना वसुंधरा राजे के काले कानून से की जा रही है. गौरतलब है कि वसुंधरा सरकार अक्टूबर 2017 में एक ऐसा अध्यादेश लेकर आई थी जिसके सदन से पास होने के बाद नौकरशाहों और जजों के खिलाफ बिना सरकारी अनुमति के एफआईआर तक दर्ज करने पर मनाही थी. इसके साथ ही ऐसे मामलों की रिपोर्टिंग करने को लेकर मनाही थी. अगर कोई उसकी रिपोर्टिंग करता तो उसे दो साल तक की कैद हो सकती थी. क्रिमिनल लॉ राजस्थान अमेंडमेंट ऑर्डिनेंस 2017 के इस संशोधन का विपक्षी दलों ने काफी विरोध किया था और इसे काला कानून करार दिया था. विपक्ष द्वारा किए गए भारी विरोध के चलते वसुंधरा राजे सरकार को फरवरी 2018 में यह काला कानून वापस लेना पड़ा था.

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