कोंडागांव: देश में युवाओं की आबादी तकरीबन 50 करोड़ है और देश की आबादी भी करीब 140 करोड़ पार कर चुकी है. खेती के लिए जमीन सीमित है और खाद्यान्न की मांग बढ़ती जा रही है. दूसरी ओर युवाओं से सामने भी रोजगार का संकट है. 50 करोड़ युवाओं के लिए न तो सरकारी नौकरी है और न ही प्राइवेट जाॅब. ऐसे में नक्सलगढ़ के किसान ने युवाओं को नई राह दिखाई है. 400 आदिवासियों को साथ लेकर आर्गेनिक फार्मिंग करने वाले कोंडागांव के किसान राजाराम त्रिपाठी ने खेती की कमाई से हेलीकाॅप्टर खरीद लिया है. इस हेलीकाॅप्टर का इस्तेमाल भी वो खेती में ही करेंगे. राजाराम सालाना 1 करोड़ से ज्यादा कमाई केवल खेती से ही करते हैं. सरकारी नौकरी न मिलने से निराश होने की बजाय अगर युवा उन्नत खेती की ओर मुड़े तो न केवल वो अपने ख्वाब पूरे कर सकता है, बल्कि देश को खाद्यान्न संकट से भी बाहर निकाल सकता है. ईटीवी भारत की टीम ने खेती के तौर तरीकों और हेलीकाप्टर के इस्तेमाल के पीछे की वजहों पर राजाराम त्रिपाठी से बातचीत की.
सवाल : किस तरह का हेलीकाॅप्टर खरीदा जा रहा है और इससे कैसे खेती की जाएगी?
जवाब : हमारे बड़े पेड़ हैं काली मिर्च के, जो 100-100 फीट तक ऊंचे हैं. इनमें सिंचाई करने, दवा छिड़कने में काफी दिक्कतें होती हैं. हमने ड्रोन से प्रयास किया तो ड्रोन में जो प्रेशर था वो पर्याप्त नहीं था. ऊपर से निचे तक जो सिंचाई होनी चाहिए वो नहीं हो पाती. मैंने यूरोप, अमेरिका और कई बाहर के देशों में देखा था कि जो प्रेशर से जो सिंचाई हो रही है चाहे वो फर्टिलाइजर हो, ग्रोथ प्रमोटर हो, उसके लिए चाॅपर बड़ा ही मददगार है. फिर क्या हमने भी सबसे सस्ता चाॅपर खरीदने का सोचा और रोबिंसन कंपनी का 4 सीटर लिया.
सवाल : समूह में कितने लोग हैं, उनके साथ मिलकर किस तरह की रणनीति बनाई गई. चाॅपर खरीदने को लेकर समूह की क्या राय रही?
जवाब : बस्तर में लगभग 400 आदिवासी परिवार हमारे समूह से जुड़े हुए हैं. क्योंकि लाभदायक खेती में मार्केटिंग और प्रोडक्शन दोनों हम देख रहे हैं तो दोनों को देखते हुए हमें लगा कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में हमें अपनी धमक बनानी है तो हम ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन लेना होगा. वर्ष 1997 में हमने इस फॉर्म हाउस का ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन लिया और देश का यह पहला फार्म है जिसे सन 2000 में ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन मिला था जो कि एक्सपोर्टेशन के लिए बेहद जरूरी है. इसके बाद हमने नई नई फसलें लीं- जैसे सफेद मूसली, काली मिर्च, स्टेविया आदि. हमने घाटा भी उठाया. मुंह के बल गिरे, पर फिर उठे. एक समय ऐसा भी आया कि हमारी जमीन नीलाम होने की कगार पर आई. लेकिन हमने खेती करना नहीं छोड़ा. आज हम केवल सफेद मुसली की खेती ही नहीं कर रहे हैं बल्कि उसके कैप्सूल्स भी बना रहे हैं और वह भी प्योर ऑर्गेनिक. क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में गुणवत्ता चाहिए और जो कैप्सूल बनाए जाते हैं वह मेथी के स्टार्च से बनाए जाते हैं. उनकी पैकेजिंग भी बायोडिग्रेडेबल होते हैं.
सवाल : कितनी कीमत का यह हेलीकाॅप्टर है और कहां से खरीदा जा रहा है?
जवाब : हेलीकॉप्टर लगभग साढे चार करोड रुपए का है पर उसकी लाइसेंस परमिशन और ट्रांसपोर्टिंग को मिलाकर यह लगभग 7 करोड़ का पड़ रहा है. इसे कैलिफोर्निया से भारत मंगाने और हेलीकॉप्टर की सर्विस 1000 घंटे और 2 साल तक के लिए सर्विस मिलता है. लेकिन इसे हम 7 साल के सर्विस के हिसाब से मंगवा रहे हैं. उदाहरण के तौर पर यह देखा जाए कि 100 किसानों की खेती की जा रही है और उसमें यदि 99 किसानों ने ही सिंचाई की या फर्टिलाइजर डालकर फसलों को सुरक्षित किया और एक किसान ने नहीं किया तो सभी 100 किसानों की फसल प्रभावित होगी और इस तकनीक से हम ज्यादा से ज्यादा फसल का उत्पादन ले पाएंगे. इससे पूरे क्षेत्र में दवा या फर्टिलाइजर का न सिर्फ छिड़काव होगा, बल्कि समय की भी बचत होगी. हेलीकाॅप्टर से कई महीनों या दिनों का काम घंटों में हो जाता है.