शिमला: पहाड़ी राज्य होने के दर्द अलग हैं. मानसून सीजन किसी को राहत देता है तो कहीं ये आफत बनकर आता है. हर साल हिमाचल को बारिश का सीजन गहरे जख्म देता है. हिमाचल प्रदेश में मानसून ने 24 जून को दस्तक दे दी और मानसून की पहली बारिश में ही कई जगह मानो तबाही मचा दी है. कई जगह बाढ़ जैसे हालात हैं तो कई जगह भूस्खलन के कारण जनजीवन अस्त व्यस्त है. उफनते नदी नाले जान-माल के नुकसान को और भी बढ़ा रहे हैं.
4 दिन में 15 लोगों की मौत- हिमाचल प्रदेश डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी के मुताबिक 24 से 27 जून के बीच चार दिन में ही बरसात ने अच्छा खासा नुकसान पहुंचाया है. बीते 4 दिनों में 15 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि 27 लोग घायल और 3 लोग लापता है. बारिश के कारण 312 पशुधन का नुकसान भी हुआ है, इसी दौरान लगभग 40 कच्चे या पक्के मकान या तो पूरी तरह बर्बाद हो गए या उन्हें भारी नुकसान हुआ है. 300 से ज्यादा सड़कें बंद हैं और एक हजार से ज्यादा पेयजल, सिंचाइ परियोजनाओं पर असर पड़ा है. कई जगह बिजली भी ठप है. कुल मिलाकर पहली बारिश में लोक निर्माण विभाग से लेकर आईपीएच विभाग तक को करोड़ों का नुकसान हो चुका है. लेकिन अभी तो मानसून शुरू हुआ है. ऐसे में शुरुआती दिनों में हुआ ये नुकसान आने वाले दिनों के लिए खतरे की घंटी बजा रहा है क्योंकि हिमाचल में बारिश गहरे जख्म देकर जाती है.
हर साल कहर बरपाता है मानसून- पांच साल में हिमाचल में मानसून सीजन के दौरान विभिन्न हादसों में 1561 लोगों की मौत हुई है. इस दौरान 6700 करोड़ रुपए से अधिक की संपत्ति का नुकसान हुआ है. पशुधन की मौत और गौशालाओं सहित कच्चे घरों के ध्वस्त होने का नुकसान अलग से है. साल 2021 में जब दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही थी, उस साल मानसून सीजन में तो हिमाचल को पांच साल में सबसे अधिक जनहानि का दुख झेलना पड़ा. साल 2021 में हिमाचल में बरसात के कारण पेश आए हादसों में 476 लोगों की मौत हुई. वहीं, पांच साल के आंकड़ों को देखा जाए तो पिछले साल यानी 2022 के मानसून सीजन में सबसे अधिक संपत्ति का नुकसान भी झेलना पड़ा. पिछले साल 1981 करोड़ रुपए से अधिक संपत्ति का नुकसान हुआ. इस तरह हिमाचल को औसतन हर साल 300 से अधिक जनहानि और औसतन 1300 करोड़ रुपए से अधिक की संपत्ति का नुकसान होता है. बरसात में लैंड स्लाइड और सडक़ धंसने के अलावा फिसलन भरे रास्तों में वाहनों की दुर्घटना का डर भी बना रहता है.
हिमाचल में बरसात के दौरान होने वाले हादसों का जिक्र करें तो मंडी के कोटरूपी हादसे की पीड़ादायक यादें है. अगस्त 2017 में मंडी के कोटरोपी में पहाड़ धंसने से एचआरटीसी की बस दब गई थी. उस हादसे में 47 लोगों की जान चली गई थी. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजास्टर मैनेजमेंट ने कोटरूपी हादसे की विस्तृत जांच के साथ हादसे के कारणों और परिणाम पर रिपोर्ट भी प्रकाशित की थी. कोटरूपी में जिस जगह हादसा हुआ था, वहां सबसे पहले 1977 में भूस्खलन हुआ था. हैरत की बात है कि हर दो दशक में यानी बीस साल में कोटरूपी में भूस्खलन हुआ है. वर्ष 1977 के 1997 और फिर 2017 में यहां हादसा हुआ, लेकिन वर्ष 2017 का हादसा कभी न भूलने वाले जख्म दे गया. हादसे में मारे गए लोगों को राज्य सरकार ने चार लाख रुपए व केंद्र सरकार ने दो लाख रुपए का मुआवजा दिया था.
जब जिंदा मलबे में दब गए 65 लोग- हिमाचल के इतिहास में अब तक जो बड़े और भयावह भूस्खलन हुए हैं, उनके बारे में भी जिक्र करना जरूरी है. 28 साल पहले कुल्लू के लुगड़भट्टी में 65 जिंदगियां मलबे के ढेर में दब गई थीं. कुल्लू जिला मुख्यालय से तीन किलोमीटर दूर छरूड़ू के पास लुगड़भट्टी में 12 सितंबर 1995 को भयावह भूस्खलन हुआ. यहां मलबे के नीचे दबने से 65 लोगों की मौत हो गई थी. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजास्टर मैनेजमेंट ने अपनी रिपोर्ट में 65 लोगों के जिंदा मलबे में दबने की रिपोर्ट दी है. यहां कच्चे मकान थे और श्रमिक रहते थे. भूस्खलन में पूरी पहाड़ी धंस गई थी. कुछ लोगों का मानना है कि हादसे में सौ से अधिक लोग मारे गए थे. इसके अलावा 2017 का कोटरूपी हादसा गहरे जख्म दे गया था। तब 47 लोगों की मौत हुई थी। वर्ष 2015 में मानसून सीजन में मणिकर्ण में चट्टानें गिरने से 10 श्रद्धालु मारे गए.