नई दिल्ली : मानहानि मामले में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को दो साल की सजा मिली है. हालांकि, उनकी सजा एक महीने के निलंबित कर दी गई है. इस दौरान वह ऊपरी अदालत में अपील कर सकते हैं. अगर ऊपरी अदालत ने उनकी सजा पर रोक लगा दी, तो राहुल गांधी को राहत मिल जाएगी. लेकिन कोर्ट ने उन्हें राहत नहीं प्रदान की, तो उनकी संसद सदस्यता खतरे में पड़ जाएगी.
ईटीवी भारत ने इस मुद्दे पर संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप से बातचीत की.उन्होंने कहा, 'अभी सजा लागू नही हुई. फैसला अभी सस्पेंडेड है. दोषी करार दिया गया है, लेकिन सज़ा लागू नहीं हुई है, क्योंकि कोर्ट ने राहुल गांधी को तीस दिन का टाइम दिया गया है, जिसमें वे ऊपर की अदालतों में अपील कर सकते हैं. हाइकोर्ट के बाद वे सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं. जब तक अपील के लिए ऊपरी अदालतों में जाते रहेंगे, सज़ा सस्पेंडेड रहेगी. जब सुप्रीम कोर्ट फैसला सुना देगा और निचली अदालत के फैसले पर मुहर लगा देगा, तब सज़ा लागू होगी. दो साल की कैद की सज़ा खत्म होने के 6 साल बाद तक राहुल गांधी कोई चुनाव नहीं लड़ सकते. सब कुछ सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निर्भर करेगा.' उन्होंने आगे कहा, 'अगर ज़मानत नहीं मिलती, तो कोर्ट स्पीकर को सूचना देती और फिर स्पीकर उन को अयोग्य करार देने का एलान कर देते. पीपुल्स रिप्रेजेंटेशन एक्ट में प्रावधान है कि दो साल या उससे अधिक सज़ा अगर किसी सांसद या विधायक को मिलती है, तो उसे किसी भी सदन की सदस्यता के अयोग्य माना जाएगा.'
इसी फैसले पर ईटीवी भारत ने कानूनी विशेषज्ञ अश्विनी दुबे से भी बातचीत की. उन्होंने कहा, 'राहुल गांधी संसद की कार्यवाही में हिस्सा ले सकते हैं, जब तक कि लोक सभा के स्पीकर के द्वारा उनकी सदस्यता समाप्त करने का आदेश नहीं पारित किया जाता. स्पीकर एक फैसला ले सकते हैं, जैसे आजम खां के केस में उन्होंने किया. सदन का कोई सदस्य कोर्ट के इस फैसले को पटल पर रखता है और कहता है कि वायनाड के सांसद राहुल गांधी के इस मामले में कोर्ट ने ये फैसला दिया है. लिहाजा आप इस पर ली थॉमस के केस के जजमेंट में लॉ ऑफ द लैंड के मुताबिक कार्रवाई करते हुए उनको सदस्यता से निष्कासित करिए. स्पीकर उस पर कोई भी फैसला करने के लिए बाध्य होता है.'
उन्होंने कहा, 'फिलहाल तीस दिन तक सजा पर स्थगन है. कनविक्शन पर स्थगन नहीं है. वह विश्ष्ट आदेश के तहत होता है. उसके लिए एक विशेष ऑर्डर पास किया जाता है कि इन परिस्थितियों में अपील के लंबित रहने तक इनकी सजा पर स्थगन का आदेश पारित किया जा रहा है. जब वो स्थगन आदेश आता है, तब सदस्यता बची रहती है. मान लीजिए कि सिर्फ सजा पर स्टे है, तो वो सदस्यता चली जाती है. इस केस में दो साल या तीन साल की सजा में बेल एक नियम है.'
दुबे ने कहा, 'सजा आज हुई है तो पीरियड आज से गिना जाएगा, मतलब आज से 6 साल तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. लेकिन अगर सुप्रीम कोर्ट तक इनको स्टे मिलता चला जाता है, और मान लीजिए 6 साल का पीरियड पहले ही खत्म हो जाता है, तो चुनाव लड़ने के काबिल वो दो साल की सज़ा खत्म करने के बाद ही होंगे. लेकिन इस बीच सजा में बदलाव हुआ तो उनकी सदस्यता बच जाएगी. आज से वो चुनाव लड़ने के अयोग्य हो ही गए.'
क्या है लिली थॉमस मामला - थॉमस के केस में 2013 में जस्टिस ए के पटनायक और जस्टिस मुखोपाध्याय ने कहा था कि धारा 8 की उप धारा 4 अल्ट्रा वायर्स या असंवैधानिक है, क्योंकि दो साल से ज्यादा की सजा अगर किसी को हो जाती है तो उसकी सदस्यता चली जानी चाहिए. ये भी कहा कि अपील में जाने से सदस्यता का न जाना गलत है.