नई दिल्ली :इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (IGIMS) पटना की प्रथम वर्ष की मेडिकल छात्रा ने परिसर के अंदर लगातार रैगिंग की शिकायत राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग से करके एक बार फिर से रैगिंग के जिन्न को बाहर निकाल दिया है. छात्रा की शिकायत के अनुसार, उसके सीनियर्स पिछले कुछ दिनों से नियमित रूप से उसे रात में बुलाकर सबके सामने डांस करने के लिए मजबूर करते हैं. उसने यह भी आरोप लगाया कि अगर वह मना करती है तो वे उसके साथ दुर्व्यवहार करते हैं. आयोग ने मामले का संज्ञान लेते हुए इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान के प्रशासकों को पत्र लिखकर 72 घंटे में जवाब मांगकर खलबली मचा दी है. इसी के कारण संस्थान के अधिकारी फिलहाल इस मामले पर चुप्पी साधे हुए हैं और कैंपस के अंदर अवैध गतिविधियों पर नजर रखने के लिए एंटी रैगिंग सेल को सक्रिय कर दिया है.
ऐसे हैं पिछले कुछ सालों के आंकड़े (Ragging Cases with Medical Students)
कहा जाता है कि भारतीय चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र में रैगिंग की शिकायतें जरुरत से ज्यादा ही मिलती हैं. जैसा कि हाल ही में एक आधिकारिक आंकड़ों की विज्ञप्ति से स्पष्ट है, जिसमें पता चला है कि शीर्ष चिकित्सा परिषद (एमसीआई) को वर्ष 2015-16 से अब तक 73 से अधिक रैगिंग की शिकायतें मिली हैं. इन आंकड़ों को देखकर यह समझा जा सकता है कि ये वे शिकायतें हैं जो सीधे एमसीआई के एंटी-रैगिंग सेल के माध्यम से पहुंचीं और इसमें वो घटनाएं नहीं शामिल हैं, जिन्हें पुलिस और मेडिकल कॉलेज के अधिकारियों द्वारा मौके पर ही दबा दिया जाता है.
एमसीआई के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2015-16 से 2019-20 बैच तक अब तक मेडिकल काउंसिल के अधिकारियों को कुल 73 शिकायतें मिली थीं. शीर्ष चिकित्सा नियामक को 2018-19 में ऐसी 13 शिकायतें मिली थीं और वर्ष 2017-18 में सबसे अधिक मामले सामने आए हैं. इन घटनाओं की 25 शिकायतों में सीनियर्स पर रैगिंग का आरोप लगाया गया था, जिनमें 3 मौत के भी मामले थे. 73 में से रैगिंग की सबसे अधिक 17 शिकायतें यूपी स्थित मेडिकल कॉलेजों से प्राप्त हुयीं थीं.
2017-18 के आंकड़ों के अनुसार यह भी बताया जाता है कि उत्तर प्रदेश के रूरल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च, सैफई, इटावा से 2016 से आज तक हर शैक्षणिक वर्ष में रैगिंग की घटनाएं सामने आती रही हैं. वहीं श्रीराम मूर्ति स्मारक आयुर्विज्ञान संस्थान, बरेली से रैगिंग की 3 शिकायतें आई थीं। रैगिंग की घटनाओं के वर्ष 2015-16 में केवल एक मामला सामने आया था. वर्ष 2016-17 में दो मामले सामने आए थे. 2017-18 में केवल एक मामला सामने आया था, जबकि 2018-19 में कोई मामला सामने नहीं आया था. साल 2019-20 में कर्नाटक के मेडिकल कॉलेजों से दो मामले सामने आए थे. अब ताजा मामला पटना में प्रकाश में आया है.
इन आंकड़ों को भी देख सकते हैं कि किस तरह से 2018 से 2021 के बीच इसकी शिकायतों पर कार्रवाइयां भी हुयीं हैं. कई संस्थाओं ने इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों पर कड़ा एक्शन लेकर अपने संस्थान की छवि सुधारने की पहल की है....
इस घटना के बाद से एक बार फिर से पुरानी घटनाओं की याद ताजा कर दी है, जिनको पढ़ते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं. आइए डालते हैं इन घटनाओं पर एक नजर (Ragging Cases in India)....
1984 में टीके चिदंबरम राजू अय्यर केस
खबरों के अनुसार 13-14 सितंबर 1984 की रात में 22 वर्षीय टीके चिदंबरम राजू अय्यर की उनके सीनियर्स ने इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी, गाजियाबाद में हत्या कर दी थी. 4 सीनियर स्टूडेंट्स ने उनकी रैगिंग की थी और उसके बाद उसकी मौत की खबर आयी थी.
1996 का Pon Navarasu केस
पोन नवरासु तमिलनाडु के मुथैया मेडिकल कॉलेज ( Muthaiah Medical College in Tamil Nadu) में वर्ष 1996 में मेडिकल प्रथम वर्ष का छात्र था. जिसकी रैगिंग के बाद हत्या के मामले को सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं. बताया जाता है कि जब नवरासु ने एक सीनियर के चप्पल के तलवों को चाटने से इनकार कर दिया, तो उसी कॉलेज के द्वितीय वर्ष के छात्र और मद्रास विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति के बेटे जॉन डेविड ने कराटे के जरिए उसकी हत्या कर दी. साथ ही उसके शरीर को कई टुकड़ों में काटकर राज्य के विभिन्न हिस्सों में फेंक दिया था. इस चर्चित मामले के बाद तमिलनाडु में पहले रैगिंग विरोधी कानून ( First Anti Ragging Law) को पारित किया गया था.
2002 का अनूप कुमार केस
कानपुर के Institute of Engineering and Technology के मामले में अनूप कुमार को रैगिंग के नाम पर यौन उत्पीड़न का शिकार ( Sexual Harassment in IET Kanpur) होना पड़ा था. इसके साथ ही उसको कई तरह के अपमानजनक कृत्य करने के लिए मजबूर होना पड़ा था. इसके बाद उसने अपने पंखे से लटककर आत्महत्या कर ली थी. इस मामले की भी खूब चर्चा हुयी थी और मामले में कॉलेज के ही फाइनल इयर के छात्र विष्णु कुमार सिंह पर आरोप लगा था.
2004 का मोहन कार्तिक त्रिपाठी केस
2004 में मोहन कार्तिक त्रिपाठी ने तमिलनाडु के तांबरम में एसकेआर इंजीनियरिंग कॉलेज में अपने छात्रावास के कमरे में छत के पंखे से फांसी लगा ली थी. कहा जा रहा था कि रैगिंग की शिकायतों को अनसुना किए जाने के बाद उसने जान दे दी थी. कहा गया था कि उसे मजबूरन अपने ही पेशाब में नहलाकर बेइज्जत करने की कोशिश की गयी थी.
2004 का सुशील कुमार पांडे केस
इसी साल एक और मामले में 18 वर्षीय सुशील कुमार पांडे ने मदन मोहन मालवीय इंजीनियरिंग कॉलेज, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में अपने सीनियर्स के द्वारा निर्वस्त्र परेड कराए जाने के बाद हुए अपमान को सहन न कर पाया और फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी.
इसे भी देखें :MP: इंदौर, रतलाम के बाद अब जबलपुर में रैंगिंग का मामला, छात्र को निर्वस्त्र कर घुमाया
2005 का सी. अब्राहम केस
इंजीनियरिंग फर्स्ट ईयर के स्टूडेंट सी अब्राहम ने हैदराबाद स्थित अपने घर पर फांसी लगाकर जान दे दी थी और अपने सुसाइड नोट में उसने लिखा है कि उसकी पढ़ाई में कोई दिलचस्पी नहीं रह गयी है. उसके माता-पिता को संदेह था कि उसकी आत्महत्या रैगिंग के कारण हुयी है, क्योंकि वह वहां जाने के पहले ऐसा नहीं सोचता था.
2005 का श्रीधर केस
5 दिसंबर को 18 वर्षीय श्रीधर ने चेन्नई में अपने हॉस्टल के कमरे में छत के पंखे से लटककर आत्महत्या कर ली. इस मामले में भी रैगिंग की संभावना जतायी गयी थी.
2005 का अमित सहाय केस
11 अक्टूबर को अमित सहाय ने जालंधर में आ रही ट्रेन के आगे कूदकर आत्महत्या कर ली थी. वह एनआईटी जालंधर, पंजाब का छात्र था. सुसाइड नोट में उन्होंने जालंधर के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के नौ सीनियर स्टूडेंट्स पर बेरहमी से रैगिंग करने का आरोप लगाया था.