जयपुर : 15 अगस्त 2021 को हम भारत की आजादी की 75वीं वर्षगांठ मनाने जा रहे हैं. नहीं भूलना चाहिए कि इस आजादी को हमने यूं ही नहीं हासिल किया. बल्कि अमर शहीदों के खून ने इसे सींचा. कई पड़ाव आए. 1857 की क्रांति, जलियांवाला बाग नरसंहार, काकोरी कांड, चौरी-चौरा कांड, असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन और भी कई. इन पड़ावों की अहम तारीख है 8 अगस्त 1942. टर्निंग पाइंट. जिसने अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर आखिरकार मजबूर कर दिया. जी हां, 08 अगस्त, 1942 ही वो तारीख थी जब देश को स्वतंत्रता दिलाने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ 'भारत छोड़ो आंदोलन' की शुरुआत हुई. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का मील का पत्थर, जिसके पांच साल बाद अंग्रेजों को हमारे देश से विदा होना पड़ा.
गांधी जी का- करो या मरो का नारा देकर अंग्रेजी शासन के विरुद्ध जन जागृति लाने में कामयाब रहा. लोगों को विश्वास हुआ कि अब आजादी का सूरज देश में उगेगा और उसके लिए सबने अपने स्तर पर कमर कस ली. भारत छोड़ो आंदोलन ने देश के छोटे से छोटे गाँव से लेकर बड़े शहरों तक ब्रिटिश सरकार की चूले हिला दी.
आखिर 'भारत छोड़ो आंदोलन' की टाइमिंग क्यों अहम थी?
'भारत छोड़ो आंदोलन' द्वितीय विश्वयुद्ध के समय 8 अगस्त, 1942 को आरम्भ किया गया. काफी योजनाबद्ध तरीके से इसे रचा गया. जिसका मकसद भारत मां को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराना था. टाइमिंग बहुत अहम थी. पता था कि अंग्रेज परेशान हैं और भारतीयों की इस मांग से मुंह नहीं मोड़ पाएंगे. ये आंदोलन देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की ओर से चलाया गया था. बापू ने इस आंदोलन की शुरूआत अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के मुम्बई अधिवेशन से की थी. इस मौके पर महात्मा गाधी ने ऐतिहासिक गोवालिया टैंक मैदान (अब अगस्त क्रांति मैदान) से देश को 'करो या मरो' का नारा दिया था.
चूले हिला दी
वैसे तो भारत में 1857 से ही स्वतंत्रता संग्राम शुरू हो गया था लेकिन इस लड़ाई में गांधी जी के आने के बाद विरोध अहिंसात्मक और शांतिपूर्ण होने लगे. इस बीच महात्मा गांधी ने कई तरह के आंदोलनों की शुरुआत की जिसने अंग्रेजी हुकूमत को ब्रिटेन तक हिलाकर रख दिया. द्वितीय विश्वयुद्ध के समय क्रिप्स मिशन के विफल होने के बाद महात्मा गांधी ने एक और बड़ा आन्दोलन प्रारम्भ करने का निश्चय लिया. जिसे 'भारत छोड़ो आन्दोलन' का नाम दिया गया. इस आंदोलन में देशभर से लाखों की संख्या में लोगों ने हिस्सा लिया था.
940 हुए शहीद, 1630 घायल
'भारत छोड़ो आन्दोलन' के शुरुआत की खबर से ही अंग्रेजों की नींद उड़ गई थी. गांधी जी और उनके समर्थकों ने स्पष्ट कर दिया कि वह युद्ध के प्रयासों का समर्थन तब तक नहीं देंगे जब तक कि भारत को आजादी न दे दी जाए. उन्होंने स्पष्ट किया कि इस बार यह आंदोलन बंद नहीं होगा. उन्होंने सभी कांग्रेसियों और भारतीयों को अहिंसा के साथ 'करो या मरो' के जरिए अंतिम आजादी के लिए अनुशासन बनाए रखने को कहा. लेकिन जैसे ही इस आंदोलन की शुरूआत हुई, 9 अगस्त 1942 को दिन निकलने से पहले ही कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सभी सदस्य गिरफ्तार हो चुके थे और कांग्रेस को गैरकानूनी संस्था घोषित कर दिया गया था, यही नहीं अंग्रेजों ने गांधी जी को अहमदनगर किले में नजरबंद कर दिया. सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस जनान्दोलन में 940 लोग मारे गए थे और 1630 घायल हुए थे जबकि 60229 लोगों ने गिरफ्तारी दी थी.
गांधी जी का उपवास
इसके बाद तो जैसे जन सैलाब उमड़ पड़ा लोग ब्रिटिश शासन के प्रतीकों के खिलाफ प्रदर्शन करने सड़कों पर निकल पड़े और उन्होंने सरकारी इमारतों पर कांग्रेस के झंडे फहराने शुरू कर दिये. लोगों ने गिरफ्तारियां देना और सामान्य सरकारी कामकाज में व्यवधान उत्पन्न करना शुरू कर दिया. छात्र और कामगार हड़ताल पर चले गए। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ही डॉ. राम मनोहर लोहिया, जय प्रकाश नारायण और अरुणा आसफ अली जैसे नेता उभर कर सामने आए। भारत छोड़ो आंदोलन को अपने उद्देश्य में आशिंक सफलता ही मिली थी लेकिन इस आंदोलन ने 1943 के अंत तक भारत को संगठित कर दिया. इसी वर्ष 10 फरवरी को महात्मा गांधी ने 21 दिन का उपवास शुरू किया था. उपवास के 13वें दिन गांधी जी हालत बेहद खराब होने लगी थी.
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आंदोलन की विशालता को देखते हुए अंग्रेजों को यकीन हो गया कि अब भारत में उनका समय पूरा हो चुका है. ब्रिटिश सरकार ने संकेत दे दिया था कि संत्ता का हस्तांतरण कर उसे भारतीयों के हाथ में सौंप दिया जाएगा. इस समय गांधी जी ने आंदोलन को बंद कर दिया जिससे कांग्रेसी नेताओं सहित लगभग 100,000 राजनैतिक बंदियों को रिहा कर दिया गया. ''भारत छोड़ो आंदेालन'' सबसे विशाल और सबसे तीव्र आंदोलन साबित हुआ. आंदोलन का ऐलान करते वक्त गांधी जी ने कहा था मैंने कांग्रेस को बाजी पर लगा दिया. यह जो लड़ाई छिड़ रही है वह एक सामूहिक लड़ाई है. सन् 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन भारत के इतिहास में 'अगस्त क्रांति' के नाम से भी जाना जाता रहा.