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Raipur latest news: छत्तीसगढ़ में 19 बाघों पर 3 साल में लगभग 184 करोड़ रुपये खर्च, सवालों के घेरे में वन विभाग

छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा पिछले 3 सालों में 19 बाघों के संरक्षण के लिए लगभग 184 करोड़ की राशि खर्च की गई है. बावजूद इसके प्रदेश में बाघों की संख्या में बढ़ोतरी नहीं हुई है. ऐसे में हर साल एक बाघ पर करोड़ों रुपये का खर्च आ रहा है. क्या 19 बाघों पर 3 साल में 184 करोड़ खर्च किए जा सकते हैं. अब लोग इस मामले पर सवाल उठा रहे हैं. Questions on amount spent conservation of tigers

Irregularities in expenditure of tiger
छत्तीसगढ़ वन विभाग

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Published : Mar 17, 2023, 10:42 PM IST

बाघ संरक्षण की राशि में घपला !

रायपुर: छत्तीसगढ़ वन विभाग की तरफ से बाघों के संरक्षण के लिए 3 साल में 183.77 करोड़ रुपये खर्च किए जाने की बात सामने आ रही है. प्रदेश में कुल 3 टाइगर रिजर्व हैं. सीतानदी उदंती, इंद्रावती और अचानकमार. तीनों का क्षेत्रफल 5555.627 वर्ग किलोमीटर है. पिछले 3 सालों 2019-20, 2020-21 और 2021-22 में प्रदेश में बाघों के संरक्षण के लिए 183.77 करोड़ खर्च किए गए हैं. अखिल भारतीय बाघ गणना 2018 के अनुसार, प्रदेश में कुल बाघों की संख्या 19 थी. वहीं साल 2020 से दिसंबर 2022 तक दो बाघों की मौत हुई है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या 3 साल में 19 बाघों के लिए एक लगभग ₹184 खर्च किए जा सकते हैं.

सवालों के घेरे में छत्तीसगढ़ वन विभाग: इन सवालों के जवाब के लिए ईटीवी भारत ने वन्य जीव प्रेमी नितिन सिंघवी से खास बातचीत की. इस दौरान सिंघवी ने बताया कि "3 सालों में 19 बाघों पर इतनी राशि खर्च करना संभव ही नहीं है. इन 3 सालों में दो बाघों की मौत होना, खुद वन विभाग बता रहा है. इसके अलावा 6 बाघों की खाल बरामद हुई है. यदि 2 और 6 बाघों को जोड़ दिया जाए, तो 19 में से 8 बाघ कम हो गए. इस तरह कुल 11 बाघ प्रदेश में होंगे. और उसके बाद इतनी बड़ी राशि खर्च करना, कई सवाल खड़े करता है."



यह रहे प्रदेश में बाघों के आंकड़े: इंद्रावती टाइगर रिजर्व में 2014 में 12, 2018 में 3 और 2022 में 3 बाघ हैं. वहीं उदंती सीतानदी रिजर्व में 2014 में 4, 2018 में 1 और
2022 में 1 बाघ होने का अंदेशा है. अचानकमार रिजर्व की बात करें तो 2014 में 12, 2018 में 5 और 2022 में 2 बाघों की मौजूदगी देखी गई है.



नितिन सिंघवी ने कहा कि "यह आंकड़े काफी चौंकाने वाले हैं. यदि इसे विस्तार से देखेंगे तो हर साल ₹60 करोड़ बाघ पर खर्च किए जा रहे हैं. यानी कि 1 माह में 5 करोड़ की राशि बाघों पर खर्च किए जा रहे हैं. देश में प्रति बाघ हर साल एक करोड़ रुपए खर्च करने का अनुमान है. यदि इस अनुमान को मानें तो प्रदेश में ₹60 करोड़ खर्च हो रहे हैं. तो यहां 60 बाघ होने चाहिए. 2018 में हमारे पास 19 बाघ थे. उसके बाद दो बाघों की मौत बताई गई है. आंकड़े बड़े चौंकाने वाले हैं.

नितिन सिंघवी ने कहा कि "मेरी वन विभाग से मांग है कि वह खुद से किए गए इन खर्चों को पब्लिक डोमेन में डालें, जिससे पता चल सके कि यह राशि कहां और किस मद में खर्च की गई है. इसे वन विभाग के प्रति लोगों की विश्वसनीयता बढ़ेगी. जल्द बाघों के आंकड़े आने वाले हैं. जिसमें बाघों की संख्या बढ़ने की संभावना जताई जा रही है. लेकिन इतनी संख्या नहीं बढ़ेगी कि बाघों की संख्या 60 हो जाये."

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टाइगर प्रोटेक्शन की राशि पर उठ रहे सवाल: नितिन सिंघवी ने कहा कि "हम यह राशि बाघों को खाना खिलाने के लिए नहीं खर्च कर सकते. उनके कन्वर्जन के लिए नहीं खर्च कर सकते हैं. अधिकतम जो खर्चा होता है, वह टाइगर के पीछे जाने में पेट्रोलिंग पर खर्च होता है. टाइगर रिजर्व में दूसरे टूरिज्म के भी खर्चे किए जाते हैं. उसके लिए अलग से राशि खर्च की जाती है. टूरिज्म का खर्चा टाइगर प्रोटेक्शन में नहीं जोड़ा जा सकता. ऐसे में यह समझ नहीं आ रहा कि इतनी बड़ी राशि कहां खर्च की गई."



बाघों के आंकड़ों में भी गड़बड़ी की संभावना: नितिन सिंघवी ने कहा कि "2014 में 46 बाघ थे और उसके बाद अचानक से इनकी संख्या घटकर 2018 में 19 हो गई. एक आंकड़ा एनटीसीएल के वेबसाइट में उपलब्ध है, जिसमें 2012 से 2022 के बीच विभिन्न कारणों से 16 बाघों की मौत हुई है. उसमें से दो बाघों की मौत जो बताई गई है, उसे कम कर दें तो 14 बाघों की मौत हुई है. ऐसे में हमारे पास जो 46 बाघ 2014 में थे, उसमें से 14 गए, तो 32 बाघ 2018 की स्थिति में होने थे. लेकिन 2018 की स्थिति में 19 बाघ बताए जा रहे हैं. ऐसे में बाकी के बाघ कहां गए. यह जो आकड़ों का जाल बुना हुआ है, वह आम आदमी को समझ ही नहीं आ सकता है.

सिंघवी ने कहा कि "बाघों की संख्या के लिए पिछले 3 सालों की बात की जाए, तो 6 बाघों की खाल बरामद हुई है. मेरा कहना है कि यह खाल मिली है, तो उन बाघों का शिकार हुआ होगा. क्योंकि बाघों की यदि प्राकृतिक मौत होती, तो उनकी बॉडी 1 दिन में डीकंपोज हो जाती. जब तक वन विभाग को पता लगता, वह खाल बिकने लायक नहीं रह पाती. यह वह खाल बरामद की गई है, जो बाजार में बेचने के लिए लाई गई थी. इनको भी शिकार में जोड़ा जाना चाहिए. यदि 2014 से बाघों के खाल के आंकड़े की बात की जाए, तो यह बहुत बड़ा निकलेगा."



पड़ोसी राज्यों से आये बाघों के चलते बढ़ी है संख्या: नितिन सिंघवी ने बताया कि "मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र में बाघों की संख्या बहुत ज्यादा बड़ी है. उनके यहां टेरिटरी की प्रॉब्लम होने लगी है. ऐसे में वहां के बाघ हमारे तरफ शिफ्ट हो रहे हैं. बाघ संजय दुबरी से गुरु घासीदास की तरफ आ रहे हैं. कान्हा से अचानकमार की तरफ आ रहे हैं और भोरमदेव भी आ रहे हैं. जो कानन पेंडारी में चोट की वजह से बाघिन मरी थी, उसके लिए बताया गया कि वह बांधवगढ़ से आई हुई थी. ऐसे में यदि बाघ की संख्या बढ़ाए जाने की बात की जाए, तो वह वन विभाग के संरक्षण के कारण नहीं बढ़ी है. और ना ही यहां रहने वाले पुराने बाघ के कारण बढ़ी है. यह संख्या जो बढ़ी है, पड़ोसी राज्यों से आने वाले बाघ हैं, उसके कारण बढ़ी है."

नितिन सिंघवी ने बताया कि "सबसे ज्यादा टाइगर इंद्रावती रिजर्व में होने का दावा किया जाता है. लेकिन वहां जाने की किसी की हिम्मत नहीं है. क्योंकि वह नक्सल प्रभावित क्षेत्र है. वहां पर गिनती का कार्य बड़ा डिफिकल्ट जाता है. पिछली बार भी जो टाइगर देखे गए हैं, उसके लिए ट्रैक कैमरा लगाने में भी उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा. एटीआर में ही हमारे पास बाघ हैं और कुछ बाघ जो हैं गुरु घासीदास में भी मूवमेंट करते हैं. हाल फिलहाल की बात की जाए, तो बलरामपुर में एक मोमेंट चल रहा है. उदंती सीतानदी में एक टाइगर बचा हुआ है. उसकी भी कुछ महीनों से जानकारी नहीं है.

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