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विमान यात्रा : सुरक्षा को लेकर क्यों उठ रहे हैं सवाल ?

पिछले कुछ दिनों से कॉमर्शियल विमानों में लगातार तकनीकी गड़बड़ियों की शिकायतें सुर्खियां बटोरती रहीं हैं. कई बार इन विमानों की इमरजेंसी लैंडिंग करानी पड़ी. ऐसे में यात्रियों की सुरक्षा को लेकर महत्वपूर्ण सवाल खड़े हो रहे हैं. विशेषज्ञों के अनुसार इनकी कई वजहें हैं. इनमें पायलटों की कमी, गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण, सैलरी, विमानों का रखरखाव और कुछ तकनीकी वजहें शामिल हैं. आइए इन्हें विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं. (Safety of air travel)

विमान सुरक्षा
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Published : Jul 18, 2022, 9:09 PM IST

Updated : Aug 2, 2022, 6:27 PM IST

हैदराबाद : अंतरराष्ट्रीय एयरलाइनों की तीन उड़ानों ने पिछले 72 घंटों में देश के विभिन्न हवाई अड्डों पर आपातकालीन लैंडिंग की. नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) ने सभी घटनाओं की विस्तृत जांच के आदेश दिए हैं. केंद्रीय नागर विमानन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भारतीय एयरलाइन कंपनियों के प्रमुखों के साथ सोमवार को बैठकें की और उनसे सुरक्षा निगरानी बढ़ाने को कहा. सूत्रों के मुताबिक, सिंधिया ने एयरलाइन कंपनियों से कहा कि सुरक्षा निगरानी बढ़ाने के लिए वे हर जरूरी कदम उठाएं. (Safety of air travel).

सिंधिया ने एक दिन पहले भी नियामक नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ सुरक्षा मुद्दों पर बैठक की थी. इसमें उन्होंने अधिकारियों से बीते एक महीने की घटनाओं के बारे में विस्तृत रिपेार्ट मांगी और कहा कि यात्रियों की सुरक्षा को लेकर किसी तरह का समझौता नहीं किया जाना चाहिए. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर विमानों की सुरक्षा में खामियों की मुख्य वजहें क्या हैं, और क्या सरकार ने इसके लिए जो दिशा-निर्देश बनाए हैं, उनका किस हद तक पालन होता है.

कुछ अहम जानकारियां- आपको बता दें कि करीब एक साल पहले डीजीसीए ने भारत में कॉमर्शियल विमानों की संख्या 716 बताई थी. 2020 में यह आंकड़ा 695 था. 'स्टैटिस्टा' के अनुसार बोइंग और एयरबस जैसे बड़े विमानों की आयु लगभग 40 साल होती है. हालांकि, इस दौरान अगर उनका रख-रखाव ठीक से नहीं किया गया, तो विमान को लंबे समय तक रखा नहीं जा सकता है. उनके अनुसार इसकी समय-समय पर वॉयलिंग और स्पेयर पार्ट्स का रिप्लेसमेंट जरूरी है.

कितनी होती है प्लेन की आयु- दरअसल, कोई भी प्लेन अपनी क्षमता का 65 से 85 प्रतिशत तक का उपयोग करते हैं. जबकि ऑटोमोबाइल मात्र 25 फीसदी क्षमता का उपयोग कर अपनी सेवा देते हैं. जाहिर है, विमानों की आयु इससे प्रभावित होगी ही. हर उड़ान के दौरान मेन बॉडी और विंग्स को प्रेसराइज्ड किया जाता है, इससे प्लेन की बॉडी प्रभावित होती है. कहा जाता है कि एक प्लेन में एक लाख से अधिक छोटे-बड़े कंपोनेंट्स का उपयोग किया जाता है. इसलिए रिटायर होने के बाद भी ऐसे विमान से कमाई की जा सकती है.

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एविएशन में भारत का स्थान- एविएशन के क्षेत्र में भारत दुनिया का तीसरा बड़ा मार्केट है. पहले स्थान पर यूके और फिर चीन का नंबर आता है. 2040 तक भारत में पैसेंजर ट्रैफिक 6.2 प्रतिशत सालाना दर से बढ़ने का अनुमान लगाया गया है.

कोविड ने बढ़ाई चुनौती- कोविड के दौरान विमान क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हो गया. लोगों के मूवमेंट बंद होने से कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया. अब जबकि कोविड के बाद से स्थिति धीरे-धीरे पटरी पर लौटने लगी है, तो इनके सामने प्रमुख रूप से दो चुनौतियां हैं. पहली चुनौती आपसी प्रतियोगिता की है और दूसरी बड़ी चुनौती है यात्रियों की सुरक्षा का.

पायलट की कमी - फरवरी में नागर विमानन राज्य मंत्री वीके सिंह ने लोकसभा में बताया था कि भारत को औसतन 1000 कॉमर्शियल पायलट की सालाना जरूरत है. और फिलहाल हम 200-300 पायलट की ही पूर्ति कर पा रहे हैं. 2020 में हरदरीप सिंह पुरी ने राज्यसभा में बताया था कि हमें अगले पांच सालों में 9488 पायलटों की जरूरत पड़ेगी. उन्होंने यह भी जानकारी दी थी कि डीजीसीए अभी एक साल में 700-800 कॉमर्शियल पायलट लाइसेंस जारी करता है. इसे सीपीएल कहते हैं. इनमें से करीब एक तिहाई या तीस फीसदी पायलट विदेशी ट्रेनिंग संस्थानों से ट्रेंड होकर आ रहे हैं. डीजीसीए वेबसाइट के मुताबिक देश में अभी 9002 पायलट हैं.

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कैसे पूरी होगी कमी- पायलट की कमी कैसे पूरी हो, इसके बारे में डीजीसीए ने एयरक्राफ्ट मैंटनेंस इंजीनियर्स और फ्लाइंग क्रू कैंडिडेट के लिए ऑनलाइन ऑन डिमांड एक्जामिनेशन (ओएलओडीई)) की नवंबर 2021 से शुरुआत की थी. इसमें यह भी सुविधा है कि कैंडिडेट अपनी सुविधानुसार उपलब्ध स्लॉट में से परीक्षा की तिथि और जगह चुन सकता है. फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर को एफटीओ में फ्लाईट ऑपरेशन को अधिकृत करने का अधिकार है. यह अब तक केवल चीफ फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर (सीएफआई) या डिप्टी सीएफआई तक ही सीमित था.

मंत्रालय के अनुसार एयरपोर्ट्स ऑथोरिटी ऑफ इंडिया ने इसके लिए उदार एफटीओ नीति लाई है. इसमें हवाई अड्डा रॉयल्टी की अवधारणा को ही खत्म कर दिया गया है, इसकी जगह पर लैंड रेंटल को काफी हद तक युक्तिसंगत बनाया गया है. इसके बावजूद विशेषज्ञ मानते हैं कि पायलट की कमी इससे पूरी नहीं होगी.

क्वालिटी पायलट की समस्या - एफटीओ नीति की वजह से पायलट की संख्या तो जरूर बढ़ेगी, लेकिन इनकी गुणवत्ता को कौन सुनिश्चित करेगा. ऐसा नहीं है कि देश में पायलट नहीं हैं, बल्कि प्रशिक्षण प्राप्त पायलटों की संख्या काफी है. दूसरी ओर हमें क्वालिटी युक्त पायलट नहीं मिल रहे हैं. इसलिए समस्या संख्या और गुणवत्ता के बीच बैलेंस बनाने की है. कुछ विशेषज्ञ ये भी मानते हैं कि भारत में पायलट का प्रशिक्षण काफी महंगा है. इसलिए बहुत सारे युवक या युवतियां प्रशिक्षण नहीं ले पाते हैं. पायलट के लिए एक साल के कोर्स की फीस 40-50 लाख के आसपास रहती है.

अपर्याप्त ट्रेनिंग- इसी साल डीजीसीए ने स्पाइस जेट के 90 पायलटों को अधूरे प्रशिक्षण के लिए शो कॉज नोटिस जारी कर दिया था. विशेषज्ञ मानते हैं कि कॉमर्शियल पायलटों के लिए 500 से 1000 घंटों तक का प्रशिक्षण अनिवार्य है. अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और यूरोप के दूसरे देशों में प्रशिक्षण स्थल से हटकर पायलट दूर दराज इलाके में प्लेन उड़ाकर अपनी ट्रेनिंग को बेहतर करते हैं. लेकिन भारत में यह सुविधा नहीं है. भारत में उड़ान के बेहतर प्रशिक्षण केंद्र एक या दो जगहों पर हैं, जबकि कम से कम ऐसे पांच स्थल जरूर होने चाहिए.

डीजीसीए से मान्यता प्राप्त 34 एफटीओ हैं. मई 2020 से मई 2021 के बीच एयरपोर्ट ऑथरिटी ऑफ इंडिया ने नौ एयरपोर्ट पर एफटीओ को मंजूरी दे दी है. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय उड़ान अकादमी, देश का सबसे बड़ा पायलट प्रशिक्षण केंद्र है. इसे गोंदिया और कलबुर्गी में भी केंद्र चलाने की अनुमति दे दी गई है.

इस क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि कैप्टन और को-पायलट के बीच उम्र का फासला कम होना चाहिए. डीजीसीए ने इस बाबत दिशा निर्देश भी जारी किए हैं. अधिकांश दुर्घटनाओं की यह एक प्रमुख वजह मानी जाती है. मीडिया रिपोर्ट में ऐसी कई खबरें आईं हैं, जहां पर सीनियर पायलट, जूनियर पायलट की शिकायत करते हैं, उनके अनुसार नए पायलट सीखने को इच्छुक नहीं रहते हैं. इसलिए उम्र का फासला अगर कम होगा, तो उनके बीच तालमेल बेहतर हो सकेगा.

छंटनी- कोविड की वजह से अप्रैल 2020 और दिसंबर 2021 के बीच लगभग 1.9 लाख कर्मियों में कम से कम 19,200 कर्मियों की छंटनी की गई है. इनमें ग्राउंड स्टाफ, कार्गो सेक्टर, एयरपोर्ट, एयरलाइंस सभी शामिल हैं. आज की स्थिति पर भी बात कर लीजिए, तो कम से कम 15800 ग्राउंड स्टाफ और 1350 कैबिन क्रू की कमी है.

सैलरी-सुविधाओं में कटौती - हाल ही में इंडिगो की फ्लाइट्स की उड़ान में देरी हुई थी. इसकी वजह कैबिन क्रू की कमी ही थी. वे कम सैलरी की वजह से नाराज हैं. आपने सुना होगा कि इंडिगो के कर्मी एयर इंडिया की बहाली में शामिल होने के लिए छुट्टी ले ली. इससे भी उड़ान प्रभावित हुआ. कर्मचारियों को कम वेतन के साथ-साथ मिल रहीं सुविधाओं से भी समस्या है. एक रिपोर्ट के अनुसार अलाउंस में 35 फीसदी तक की कटौती कर दी गई है. कैबिन क्रू की सुविधाओं में भी 20 फीसदी की कमी की गई है.

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार एयर इंडिया के कर्मचारियों को 25 हजार रुपये से भी कम सैलरी दी जा रही है. एयर इंडिया एक्सप्रेस के पायलट की सैलरी और सुविधाओं में भी कमी की गई. जैसे डोमेस्टिक लेयर अलाउंस, क्विक रिटर्न अलाउंस, इंस्ट्रक्टर अलाउंस वैगरह.

शराब का सेवन - जनवरी 2021 और मार्च 2022 के बीच 42 एयरपोर्ट के 84 कर्मियों पर ड्यूटी के दौरान शराब पीने का आरोप लगा है. यह रिपोर्ट डीजीसीए ने दी है. एक जनवरी से 30 अप्रैल 2022 के बीच डीजीसीए की टेस्टिंग में नौ पायलट और 32 क्रू मेंबर को प्री-फ्लाइट ब्रेथ एनलाइजर में पास नहीं हुए. बीए टेस्ट पास करना सभी के लिए आवश्यक है.

साइबर अटैक बड़ी समस्या- रैनसमवेयर वायरस का अटैक. हाल ही में स्पाइस जेट ने इसकी शिकायत की थी. उनके सिस्टम पर इस वायरस का कब्जा हो गया था. इसकी वजह से उन्हें फ्लाइट डिपार्चर डिले करना पड़ा. पिछले साल फरवरी में 45 लाख एयर इंडिया के यात्रियों का डाटा लीक हो गया था. क्योंकि इन्हें मैनेज करने वाले सीटा(एसआईटीए) पर वायरस का अटैक हुआ था. एविएशन सेक्टर में तकनीक का बड़ा रोल होता है. और अब हर काम ऑनलाइन हो रहा है. बुकिंग से लेकर चेकिंग तक. एयर ट्रैफिक कंट्रोल से लेकर मैनेजमेंट का हर काम. ऐसे में तकनीकी रूप से इसे सुरक्षित नहीं बनाया जाएगा, तो उड़ानें प्रभावित होंगी ही.

Last Updated : Aug 2, 2022, 6:27 PM IST

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