नई दिल्ली: कतर की एक अदालत द्वारा कथित तौर पर जासूसी के आरोप में आठ पूर्व भारतीय नौसेना अधिकारियों को मौत की सजा सुनाए जाने के साथ भारत को इस बार पश्चिम में अपने विस्तारित पड़ोस में एक नई राजनयिक चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. पिछले महीने ही जी20 शिखर सम्मेलन की सफलतापूर्वक मेजबानी करने के बाद भारत को जिन नई कूटनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, उनमें यह नवीनतम है. शिखर सम्मेलन के तुरंत बाद कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो द्वारा आरोप लगाए जाने के बाद भारत और कनाडा के बीच एक बड़ा राजनयिक विवाद पैदा हो गया. कनाडा में खालिस्तानी आतंकवादी की हत्या का आरोप भारत पर लगाया गया.
इसके तुरंत बाद भारत समर्थित आर्मेनिया ने अजरबैजान के खिलाफ युद्ध में नागोर्नो-काराबाख का विवादित क्षेत्र खो दिया. तीसरी कूटनीतिक चुनौती भारत के निकटतम पड़ोस में तब पैदा हुई जब चीन समर्थक विपक्षी उम्मीदवार ने मालदीव के राष्ट्रपति चुनाव में भारत समर्थक सत्ताधारी को हराकर जीत हासिल की. कतर में प्रथम दृष्टया न्यायालय द्वारा गुरुवार को आठ पूर्व भारतीय नौसेना अधिकारियों के खिलाफ फैसला सुनाए जाने के तुरंत बाद भारत ने आश्चर्य व्यक्त किया और कहा कि वह विस्तृत फैसले की प्रतीक्षा कर रहा है.
विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, 'हम इस मामले को बहुत महत्व देते हैं और इस पर करीब से नजर रख रहे हैं. हम सभी कांसुलर और कानूनी सहायता देना जारी रखेंगे. हम फैसले को कतर के अधिकारियों के समक्ष भी उठाएंगे. सभी आठ दोषी पूर्व भारतीय नौसेना अधिकारी अल दहरा ग्लोबल टेक्नोलॉजीज एंड कंसल्टेंसी सर्विसेज के कर्मचारी थे.
ये सभी एक पूर्व-ओमान वायु सेना अधिकारी के स्वामित्व वाली एक निजी कंपनी थी जो कतर के सशस्त्र बलों और सुरक्षा एजेंसियों को प्रशिक्षण और अन्य सेवाएं प्रदान करती थी. वे कथित तौर पर इतालवी प्रौद्योगिकी-आधारित पनडुब्बियों से संबंधित एक संवेदनशील प्रयास में शामिल थे. हालाँकि, दिलचस्प बात यह है कि जहां भारतीय कर्मचारियों पर आरोप लगाए गए और उन्हें दोषी ठहराया गया, वहीं कंपनी के ओमानी मालिक को निर्दोष छोड़ दिया गया.
इराक और जॉर्डन में पूर्व भारतीय राजदूत आर दयाकर ने इस संबंध में ईटीवी भारत को जानकारी दी. राजदूत आर दयाकर विदेश मंत्रालय के पश्चिम एशिया डेस्क और कतर में भारतीय दूतावास में भी काम किया है. उन्होंने कहा, 'अदालत का फैसला बहुत आश्चर्यजनक है. अजीब बात यह है कि जबकि भारतीय कर्मचारियों को दोषी ठहराया गया था तब कंपनी के ओमानी मालिक के खिलाफ कोई आरोप तय नहीं किया गया. उन्हें अपने देश लौटने की अनुमति दी गई थी.
यह नया विकास इसलिए आश्चर्यचकित करने वाला है क्योंकि भारत और कतर के बीच द्विपक्षीय संबंध काफी हद तक सहयोग और साझा हितों पर आधारित रहे हैं. 2008 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की कतर यात्रा एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई, जिसके बाद कतर के अमीर और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पारस्परिक यात्राएँ हुईं.
प्राकृतिक गैस का भरोसेमंद स्रोत होने के नाते कतर भारत की ऊर्जा सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. भारत और कतर के बीच 15 अरब डॉलर मूल्य के द्विपक्षीय व्यापार में मुख्य रूप से कतर से भारत को एलएनजी और एलपीजी निर्यात शामिल है. रक्षा सहयोग भारत-कतर संबंधों का एक प्रमुख घटक है, जिसमें भारत-कतर रक्षा सहयोग समझौता एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा.