चंडीगढ़: देश में वंशवाद की बहस दशकों से चल रही है. पंजाब में ही नहीं पूरे देश में वंशवाद का बोलबाला है. बड़े राजवंशों का प्रभुत्व है जबकि छोटे राजवंशों का राजनीति में आना-जाना रहा है. पंजाब की राजनीति (politics of punjab) कुछ राजनीतिक घरानों के इर्द-गिर्द घूमती रही है. बादल परिवार हो या पटियाला का शाही परिवार, मजीठिया परिवार हो या सराय नागा का बराड़ परिवार, कैरों परिवार हो या जाखड़ परिवार सभी की पंजाब में अच्छी राजनैतिक पकड़ है. कुछ परिवार ऐसे भी हैं जिनके आपस में संबंध हैं और सभी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. सत्ता एक परिवार के हाथ से जाती है तो दूसरे परिवार के हाथ में आती है. लेकिन रिश्तेदारी सभी की बरकरार है. कुछ परिवार ऐसे भी हैं जिनके नाम ब्रांड थे लेकिन अब समय बीतने के साथ वे हाशिए पर चले गए हैं.
बादल परिवार
दस बार के विधायक और पांच बार मुख्यमंत्री रहे 94 वर्षीय प्रकाश सिंह बादल इस राजनीतिक परिवार के मुखिया हैं. प्रकाश सिंह बादल ने शिरोमणि अकाली दल (SAD) की स्थापना की और सिख राजनीति के प्रमुख हैं. उन्हें पूरे देश में मृदुभाषी सिख नेता के रूप में जाना जाता है. अब उनके बेटे सुखबीर सिंह बादल अकाली दल के अध्यक्ष हैं. बादल के कई परिवारों से राजनीतिक संबंध रहे हैं. मजीठिया परिवार से उनके घनिष्ठ संबंध हैं. मजीठिया राजघराने से आने वाली हरसिमरत कौर प्रकाश सिंह बादल की बहू और सुखबीर सिंह बादल की पत्नी हैं. मजीठिया परिवार स्वयं सिख शासक महाराजा रणजीत सिंह के मजीठिया सेनापति अत्तर सिंह मजीठिया के वंशज हैं.
हरसिमरत बादल ने 2009 में अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत की थी. उन्होंने बठिंडा सीट से पटियाला शाही परिवार के उत्तराधिकारी और पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह के बेटे रनिंदर सिंह को हराया था. इन दिनों पंजाब की राजनीति में मशहूर बिक्रम सिंह मजीठिया उनके भाई हैं. हाल ही में पंजाब की चरणजीत सिंह चन्नी सरकार ने बिक्रम सिंह मजीठिया के खिलाफ ड्रग्स रैकेट मामले में प्राथमिकी दर्ज की गई. प्रकाश सिंह बादल के भाई गुरदास बादल खुद सांसद और विधायक रहे. उनके बेटे मनप्रीत बादल ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत अकाली दल से की लेकिन बाद में उनका अपने चचेरे भाई सुखबीर सिंह बादल से अनबन हो गई. उन्होंने अकाली दल को छोड़कर अपनी पार्टी बनाई, जिसका बाद में कांग्रेस में विलय हो गया. वह निवर्तमान वित्त मंत्री और बठिंडा अर्बन से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं.
पटियाला का शाही परिवार
पटियाला लंबे समय से पंजाब की राजनीति का केंद्र रहा है. पटियाला ने पंजाब को अपनी राजनीतिक स्थिति और प्रभाव से प्रभावित किया है. पटियाला राजपरिवार का कांग्रेस से पुराना नाता रहा. हालांकि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अब कांग्रेस छोड़ दी है और उनकी पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस बीजेपी की सहयोगी है. लेकिन 2002 में जब कैप्टन अमरिंदर सिंह प्रकाश सिंह बादल को हराकर पहली बार सीएम बने तो उन्होंने कांग्रेस का झंडा फहराया था. कैप्टन अमरिंदर के पिता यादविंदर सिंह और मां मोहिंदर कौर दोनों ही कांग्रेस से जुड़ी हुई थीं. मोहिंदर कौर पहले कांग्रेस से राज्यसभा गईं, फिर चौथी लोकसभा (1967-71) में कांग्रेस के टिकट पर पटियाला से सांसद बनीं.
उनके इंदिरा गांधी के साथ घनिष्ठ संबंध थे. कैप्टन अमरिंदर के पिता यदविंदर सिंह की हेग में मृत्यु हो गई थी, जब वह नीदरलैंड में भारत के राजदूत के रूप में सेवा दे रहे थे. राजीव गांधी उन्हें राजनीति में लाये. स्कूल के दिनों से ही राजीव उनके दोस्त थे. 1980 में कैप्टन अमरिंदर ने पटियाला सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. 1984 के बाद अमरिंदर अकाली दल में चले गए और फिर कांग्रेस में लौट आए. परनीत कौर कैप्टन अमरिंदर की पत्नी हैं. परनीत कौर खुद तीन बार सांसद रह चुकी हैं. वह मनमोहन सिंह सरकार (यूपीए-2) में राज्य मंत्री भी थीं. परनीत और अमरिंदर के बेटे रनिंदर सिंह भी राजनीति में हैं. अपने पिता की तरह उन्होंने भी अपनी राजनीति की शुरुआत कांग्रेस से की थी. 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने हरसिमरत कौर के खिलाफ बठिंडा से चुनाव लड़ा था. यह चुनाव राजनीतिक परिवारों का राजनीतिक अखाड़ा बन गया था लेकिन वे इस चुनाव में हार गए.
सराय नागा का बराड़ वंश
बराड़ परिवार दक्षिण-पश्चिम पंजाब का एक और शक्तिशाली परिवार है. यह परिवार सरपंच से लेकर पंजाब के सीएम तक का सफर तय कर चुका है. 1919 में एक जाट परिवार में पैदा हुए हरचरण सिंह बराड़ 1995 में कांग्रेस की ओर से पंजाब के मुख्यमंत्री बने. बेअंत सिंह के आतंकवादी हमले में मारे जाने पर उन्हें पंजाब की कुर्सी मिली. हरचरण सिंह बराड़ का जन्म सराय नागा गांव में हुआ था. हरचरण सिंह बराड़ का वैवाहिक संबंध भी एक राजनीतिक परिवार में हुआ. उन्होंने पंजाब के पूर्व सीएम प्रताप सिंह कैरों की भतीजी गुरबिंदर कौर से शादी की थी. हरचरण सिंह बराड़ और गुरबिंदर कौर के दो बच्चे हैं. कंवरजीत सिंह बराड़ और कमलजीत बराड़ उर्फ बबली. कंवरजीत सिंह बराड़ दो बार विधायक बने.
पहली बार 1977 में और दूसरी बार 2007 में. कंवरजीत सिंह बराड़ का निजी जीवन भी राजनीति से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका. उन्होंने करण कौर बराड़ से शादी की है. करण कौर बराड़ की बहन हरिप्रिया की शादी कैप्टन अमरिंदर के छोटे भाई मलविंदर से हुई है. करण कौर बराड़ ने 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में खुद को कैप्टन अमरिंदर सिंह की भाभी के रूप में पेश किया था. कंवरजीत सिंह बराड़ कांग्रेस में कई पदों पर रहे. वह पंजाब कांग्रेस के उपाध्यक्ष थे. कंवरजीत सिंह बराड़ कैंसर से पीड़ित थे. इसके बाद उनकी पत्नी करण कौर बराड़ ने उनकी राजनीतिक विरासत संभाली. वह 2012 में मुक्तसर विधानसभा से कांग्रेस के टिकट पर उतरीं. चुनाव परिणाम आने से बमुश्किल दो दिन पहले उनके पति कंवरजीत सिंह की कैंसर से मृत्यु हो गई. अजीब किस्मत का खेल था कि कंवरजीत सिंह इस दुनिया में नहीं रहे लेकिन मुक्तसर से करण कौर बराड़ चुनाव जीत गई. अब करण कौर बराड़ के छोटे बेटे करणबीर बराड़ बराड़ परिवार की राजनीतिक विरासत को संभाल रहे हैं.
मजीठिया परिवार
मजीठा अमृतसर जिले का एक इलाका है और यहीं से पंजाब की राजनीति में मजीठिया घराने का उदय हुआ. मजीठिया परिवार ने पंजाब को मुख्यमंत्री नहीं दिया लेकिन राज्य में उनकी स्थिति कम नहीं रही. यह परिवार सिखों की धार्मिक और राजनीतिक धारा को प्रभावित करने की क्षमता रखता है. मजीठिया परिवार पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह के दरबार का योद्धा बताता है. सुंदर सिंह मजीठिया शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पहले अध्यक्ष बने और विभाजन से पहले और बाद में संयुक्त पंजाब में सिख राजनीति पर प्रभाव डाला. सुंदर सिंह मजीठिया बिक्रम मजीठिया के दादा थे.