नई दिल्ली :पूर्व आईपीएस अधिकारी और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (एनसीएम) के अध्यक्ष आईपीएस इकबाल सिंह लालपुरा ने पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान पर निशाना साधते हुए कहा है कि उन्हें धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. एनसीएम अध्यक्ष ने ईटीवी भारत से एक विशेष साक्षात्कार में समान नागरिक संहिता (यूसीसी), और पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की अल्पसंख्यक टिप्पणी, पंजाब में गुरबानी विवाद सहित कई मुद्दों पर बात की.
साक्षात्कार के अंश यहां पढ़ें...
प्रश्न: मेघालय जनजातीय परिषद, नागालैंड चर्च निकाय, झारखंड, शिलांग में आदिवासी संगठनों और अन्य ने आपत्ति जताई है और यूसीसी का विरोध किया है. जमीयत-उलेमा-ए-हिंद जैसे मुस्लिम निकायों ने भी यूसीसी का विरोध किया है. आप इसे किस प्रकार देखते हैं?
लालपुरा: यूसीसी की कल्पना भारतीय संविधान में 1949 में ही की गई थी. हालांकि, इसे लागू नहीं किया गया था. तब सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस कुलदीप सिंह ने सरला मुदगिल, राष्ट्रपति कल्याणी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य के मामले में आदेश पारित कर बताया कि इसमें देरी क्यों हुई. मुझे लगता है कि पिछले विधि आयोग में भी इसी पर चर्चा हुई थी, जिसने एक परिपत्र जारी कर नागरिकों से अपने सुझाव और आपत्तियां दर्ज करने का आग्रह किया था. मेरा मानना है कि यह एक सामान्य मुद्दा है. इस बारे में हर किसी को कुछ कहने का अधिकार है. जिन्हें कुछ कहना है उन्हें विधि आयोग के पास वापस जाना चाहिए. अल्पसंख्यक आयोग इस पर टिप्पणी करने के लिए सही संस्था नहीं है क्योंकि हमें टिप्पणी करने या सवाल उठाने के लिए आमंत्रित नहीं किया गया है.
प्रश्न: लेकिन अल्पसंख्यकों को लगता है कि उनके स्वायत्त अधिकार छीन लिये जायेंगे?
लालपुरा: यह बहुत प्रारंभिक चरण में है और विधि आयोग ने अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यकों दोनों के नागरिकों के विचार मांगे हैं. यदि उन्हें कोई आपत्ति है तो उन्हें विधि आयोग के पास वापस जाना चाहिए.
प्रश्न: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी हालिया अमेरिकी यात्रा में कहा कि भारत में किसी भी आधार पर कोई भेदभाव नहीं है. इसके बाद असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा का विवादास्पद 'हुसैन ओबामास' ट्वीट आया.आप इसे कैसे देखते हैं? क्या आपको नहीं लगता कि ऐसे बयानों से बचना चाहिए?
लालपुरा: मैं इस पर टिप्पणी करने के लिए यहां नहीं हूं. मुझे यकीन है कि भारत में किसी भी व्यक्ति, समुदाय के साथ कोई भेदभाव नहीं होता है. जो लोग इस मुद्दे पर भारत का विरोध करना चाहते हैं उन्हें पहले हमारा विकास देखना चाहिए. भारत में अल्पसंख्यकों की संख्या 1951 में 16 प्रतिशत से बढ़कर 21 प्रतिशत हो गयी है. तो, भेदभाव कहां है? राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और सेना के जनरल अल्पसंख्यक वर्ग से रहे हैं. देश में सिर्फ योग्यता की गिनती होती है. जब आप भेदभाव के मामलों की बात करते हैं, तो हमारी आबादी 140 करोड़ से अधिक है, यह नगण्य है और आधे प्रतिशत से भी कम है.
प्रश्न: लेकिन आपने असम के मुख्यमंत्री के ट्वीट पर कोई टिप्पणी नहीं की?
लालपुरा: मैं पहले ही कह चुका हूं कि मैं इस मुद्दे पर कुछ नहीं कहूंगा. पिछले साल की एफबीआई रिपोर्ट में संयुक्त राज्य अमेरिका में भेदभाव के 214 मामले थे. दो दिन पहले पाकिस्तान में एक सिख की हत्या कर दी गई थी. वहां की कुल आबादी 6,000 है. वहां अल्पसंख्यकों की स्थिति देखिए. ये लोग कहां गए? बांग्लादेश में भी स्थिति ऐसी ही है. 1965 का युद्ध लड़ने वाले अब्दुल हमीद को 'परमवीर चक्र' से सम्मानित किया गया और अंडमान निकोबार में एक द्वीप का नाम उनके नाम पर रखा गया. ऐसा सिर्फ भारत में ही हो सकता है.
प्रश्न: उत्तराखंड में सांप्रदायिक घटनाएं देखी गईं और नरसंहार की मांग उठ रही थी। तो इस कठिन समय में अल्पसंख्यक आयोग कैसे काम करता है क्योंकि आपको अधिक संख्या में शिकायतें मिल रही होंगी?
लालपुरा:हमें शिकायतें मिलती हैं और ऐसी चीजें होने पर हम नोटिस जारी करते हैं. किसी व्यक्तिगत अपराध को पूरी तरह नहीं रोका जा सकता. यह अनादिकाल से विद्यमान है. अगर कोई साजिश है तो हमें चिंता है. अब पंजाब में गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी, ज्यादातर अपराधी एक ही समुदाय से थे. किस चीज ने उन्हें प्रेरित किया, उनका मानस क्या है जिसे पहचानने की जरूरत है?
प्रश्न: कई रिपोर्टों में दावा किया गया है कि पंजाब में सीमावर्ती क्षेत्रों में और अन्य स्थानों पर पंजाबी दलित लोग ईसाई धर्म की ओर रुख कर रहे हैं. इस पर आपका क्या रुख है?
लालपुरा: मैंने आयोग में सिखों और ईसाइयों के साथ बैठकें आयोजित करने का प्रयास किया है. सवाल यह है कि सिख धर्म परिवर्तन क्यों कर रहे हैं? वे सिख धर्म का प्रचार क्यों नहीं कर रहे हैं? हमने पंजाब सरकार से रिपोर्ट मांगी है. हमने ऐसी रिपोर्टें सुनी हैं जिनमें कहा गया है कि पंजाब में चर्चों की संख्या में वृद्धि हुई है. हो सकता है कि रिपोर्ट आ गई हो लेकिन मैंने अभी तक इसे देखा नहीं है. इसका विश्लेषण करने और सही संदर्भ में देखने की जरूरत है. सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है कि धोखे से धर्म परिवर्तन नहीं होना चाहिए. मेरा मानना है कि हमें अपने धर्म के साथ ही रहना है. आप पाकिस्तान को देखिए. यूसुफ योहाना को पाकिस्तान की क्रिकेट टीम का कप्तान बनने के लिए इस्लाम अपनाने के लिए मजबूर किया गया था. अब, वह मोहम्मद यूनिस है. दानिश कनेरिया को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया गया था लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और बाद में उन्हें हटा दिया गया.