भोपाल।एमपी में माननीयों को पेंशन की नो टेंशन! एक तरफ एमपी में जहां माननीय मौज में हैं (mlas mps pension only one term) वहीं माननीयों की पेंशन की चिंता में पंजाब सरकार दुबली हुई जा रही है. पंजाब के नए सीएम भगवंत मान ने राज्य को घाटे से उबारने के लिए विधायकों की पेंशन को लेकर एक अहम फैसला लिया है. जिसमें तय किया गया है कि विधायकजी चाहे कितनी भी बार चुनाव जीतें लेकिन उन्हें पेंशन एक ही मिलेगी.जबकि मध्यप्रदेश सहित कई राज्यों में माननीयों का जो पेंशन सिस्टम है उसके मुताबिक तो माननीयों की बल्ले-बल्ले है. कोई एक बार विधायक चुना जाए और अगली बार वही सांसद चुन लिया जाए तो उसे ताउम्र दोनों पेंशन (विधायक+सांसद) मिलती रहेंगी.
मध्य प्रदेश में माननीयों की मौज मध्य प्रदेश में माननीयों की मौज यह है पंजाब सरकार का फैसला:पंजाब के नए सीएम भगवंत मान ने आदेश जारी कर दिया है. जिसके मुताबिक पंजाब के पूर्व विधायकों को सिर्फ एक पेंशन मिलेगी, चाहे वे कितनी भी बार चुनाव जीतें.(big announcement on MLA Pension) मान ने कहा है कि, चुनाव हारने वाले पूर्व विधायकों को 3 लाख रुपये से 5 लाख रुपये तक की पेंशन मिलती है, जिससे पंजाब के खजाने पर दबाव पड़ता है. इस वजह से यह फैसला लिया गया है कि जो भी विधायक एक या दो बार या फिर तीन बार भी चुनाव जीतेगा तब भी उसे एक टर्म की ही पेंशन दी जाएगी.
पंजाब पर है करोड़ों का कर्ज: पंजाब इस समय 3 लाख करोड़ रुपये के कर्ज में डूबा हुआ है. सीएम भगवंत मान ने पीएम नरेंद्र मोदी से भी आर्थिक मदद मांगी है. मान ने कहा है कि पीएम राज्य को 2 काल तक 50 हजार करोड़ की मदद मुहैया कराएं.
मध्य प्रदेश में माननीयों की मौज MP में माननीयों को पेंशन की नो टेंशन:पंजाब की तरह मध्य प्रदेश सरकार भी करोड़ों के कर्ज में डूबी हुई है. एक आंकड़े के मुताबिक यहां प्रत्येक व्यक्ति 51 हजार रुपए का कर्जदार है. बावजूद इसके माननीयों की पेंशन को लेकर सरकार को कोई टेंशन नहीं है. हाल ये हैं कि यहां आप अगर एक बार माननीय बन गए तो आप की पेंशन पक्की. यदि दूसरी बार आप सांसद बन गए तो दो पेंशन पक्की एक विधायक की और एक सांसद की. यानि माननीयों की पूरी तरह मौज है और जनता की गाढ़ी कमाई और राज्य के बजट का बड़ा हिस्सा सांसदों, विधायकों के वेतन भत्तों और पेंशन पर खर्च कर दिया जाता है.
मध्य प्रदेश में माननीयों की मौज माननीयों के दोनों हाथों में है लड्डू: भारत में सरकारी चपरासी से लेकर सुप्रीम कोर्ट के जज तक को 30 साल की नौकरी पूरी करने के बाद ही पेंशन का अधिकार है, लेकिन राजनीति से जुड़ा कोई भी शख्स अगर एक बार विधायक और सांसद चुन लिया गया तो ताउम्र के लिए उसकी पेंशन पक्की. माननीयों के लिए प्रावधान है कि आप विधायक के बाद सांसद भी चुन लिए गए तो आपको विधायक और सांसद दोनों की पेंशन मिलती रहेगी. इसी तरह राज्यसभा सांसद चुने जाने और केंद्रीय मंत्री बन जाने पर मंत्री का वेतन भत्ता, विधायक और सांसद की पेंशन भी मिलती रहती है. (mp and mla pension process)
पुराने ब्रिटिशकाल के सिस्टम से तय होती है पेंशन:भारत में आज भी सांसदों, विधायकों की पेंशन का निर्धारण ब्रिटिशकाल में अपनाए गए सिस्टम से ही होता है.
- ब्रिटेन में सांसदों के वेतन और पेंशन निर्धारित करने के लिए एक आयोग का गठन होता है.
- आयोग को स्थाई रूप से यह आदेश दिया गया है कि सांसदों को इतना वेतन और सुविधाएं न दी जाएं, जिससे लोग उसे अपना करियर बनाने का प्रयास न करें और न ही इतना कम वेतन दिया जाए, जिससे उनके कर्तव्य निर्वहन में बाधा पहुंचे.
- आयोग को यह निर्देश हैं कि सांसदों के वेतन, भत्ते निर्धारित करते समय राज्य/देश की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखा जाए.
- आयोग की सिफारिशों पर वहां का हाउस ऑफ कॉमंस (भारत में पार्लियामेंट) विचार करता है. जिसके बाद माननीयों के वेतन, भत्तों और पेंशन का निर्धारण कर दिया जाता है. (Britain pension system for parlament member)
विधायकों, सांसदों को ही नहीं आश्रितों को भी पेंशन:- मध्य प्रदेश शासन की सर्विस कंडिका 6-क के मुताबिक प्रत्येक ऐसे व्यक्ति को, जिसने पांच वर्ष की कालावधि तक, चाहे वह कालावधि लगातार हो या न हो, मध्यप्रदेश विधानसभा के सदस्य के रूप में कार्य किया हो, 20,000/- रू. प्रतिमाह पेंशन दी जाती है.
- 6-ख/ किसी ऐसे मृतक सदस्य या भूतपूर्व सदस्य के पति या पत्नी को, यदि कोई आश्रित हो, को, धारा 6-क की उपधारा (1) के अधीन पेंशन का हकदार था, उसकी मृत्यु की तारीख से ऐसी कालावधि के लिए 18,000/- रुपए प्रतिमास कुटुम्ब पेंशन दी जाती है.
- 6-ग/ प्रत्येक व्यक्ति, जो धारा 6-क के अधीन पेंशन का हकदार है, राज्य सरकार द्वारा चलाए जा रहे अस्पतालों में नि:शुल्क चिकित्सीय उपचार प्राप्त कचिकित्सीय भत्ता भी दिया जाएगा.
-सांसद या पूर्व सांसद की मृत्यु पर उनके पति, पत्नी या आश्रित को आजीवन आधी पेंशन भी मिलती है.
-पूर्व विधायक को को प्रमुख सचिव द्वारा यात्रा के कूपन दिए जाते हैं. इसके जरिए प्रथम श्रेणी या द्वितीय श्रेणी वातानुकूलित शयनयान में अकेले या द्वितीय श्रेणी वातानुकूलित शयनयान में पत्नी/अपने पति या एक परिचारक के साथ किसी भी रेल से यात्रा कर सकते हैं.
जानें MP में कब-कब बढ़े माननीयों के वेतन और भत्ते:1990 में मध्यप्रदेश के विधायकों का मासिक वेतन 1000 रुपए था, जो अब लगभग 35000 रुपए हो गया है.
- आरटीआई के तहत मिले आंकड़ों के मुताबिक, पिछले कुछ वर्षों में विधायकों के वेतन के मुकाबले उनके भत्ते साढ़े चार गुना से ज्यादा बढ़ाए जा चुके हैं.
- पिछ्ले 5 सालों में 230 विधानसभा सदस्यों के वेतन पर 35.03 करोड़ और उन्हें मिलने वाले भत्तों पर 121 करोड़ रुपए खर्च हुए.
- इसमें सबसे ज्यादा भुगतान माननीयों के यात्रा भत्ते के तौर पर लगभग 38.03 करोड़ रुपए का किया गया.
- इतना ही नहीं 1.70 लाख रुपये प्रतिमाह के वेतन दिए जाने के बावजूद शिवराज सरकार ने मंत्रियों का इनकम टैक्स भी भर रही है.
- एमपी सरकार लगभग 43 करोड़ रुपए मंत्रियों का इनकम टैक्स भरने पर खर्च कर रही है. (mla salary hike in shivraj government)
जाने विधायक और सांसदों का कितना है वेतन ,पेंशन
केंद्रीय मंत्री-हर महीने 2.32 लाख- 1 लाख वेतन, 70 हजार निर्वाचन क्षेत्र भत्ता, 60 हजार कार्यालय भत्ता, 2 हजार रोजना सत्कार भत्ता.
सांसद - हर महीने 2.05 लाख,1 लाख रुपए वेतन, 45 हजार रुपए निर्वाचन क्षेत्र भत्ता, 2 हजार रुपए राेजाना कार्यालय भत्ता यानी महीने के 60 हजार. 25 हजार महीना मिलती है पेंशन.
विधायक- हर महीने 1.10 लाख,35 हजार निर्वाचन क्षेत्र भत्ता, 10 हजार टेलीफोन भत्ता, 10 हजार चिकित्सा भत्ता, 15 हजार अर्दली-ऑपरेटर के, 10 हजार लेखन-डाक भत्ता, पेंशन 35 हजार महीना.
मध्यप्रदेश में CM का वेतन- 2 लाख रुपए महीना है.राज्य मंत्रियों का वेतन 1.50 लाख/ माह, कैबिनेट मंत्री 1.70 लाख , विधानसभा अध्यक्ष-1.85 लाख प्रतिमाह
सरकार के पास नहीं है पेंशन लेने वाले विधायकों सांसदों की सूची
लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा सचिवालय के साथ ही पेंशनर्स वेलफेयर डिपार्टमेंट से सूचना के अधिकार कानून के तहत सांसद और विधायकों के वेतन-भत्ते, पेंशन को लेकर जानकारी मांगी थी. जो जवाब मिला वह बेहद चौंकाने वाला था. सरकार के पास इस बात का कोई रिकॉर्ड नहीं है कि कोई नेता कितनी बार कौन सा चुनाव जीता और कितनी पेंशन ले रहा है. वहीं सियासी सुधारों के लिए काम करने वाली गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की संयोजक रोली शिवहरे ने मांग की कि विधायकों के वेतन भत्तों के निर्धारण और उसकी नियमित समीक्षा के लिए कोई स्वतंत्र और पारदर्शी निकाय बनाया जाना चाहिए. उनका कहना है कि लोगों को दो वक्त की रोटी के लिए दिन-रात पसीना बहाना पड़ता है. जनता के प्रतिनिधि विधायक वेतन भत्ता बढ़ाने के लिए विधानसभा में खुद ही विधेयक पास कर लेते हैं. इसके साथ ही माननीय तमाम तरह की सुविधाओं का लाभ उठाते हैं.