फिरोजपुर : पंजाब में चुनावी माहौल दिन पर दिन गर्म होता जा रहा है. तमाम राजनीतिक दल, लोगों को रिझाने के लिए अलग-अलग एजेंडा लेकर लोगों के बीच जा रहे हैं. कोई 11 सूत्री कार्यक्रम लेकर आ रहा है तो कोई पंजाब मॉडल की बात कर रहा है लेकिन इन सबके बीच पंजाब में बसे लाखों गांवों का क्या हाल है, किसी से छिपा नहीं है. ऐसे ही एक गांव में ईटीवी भारत पहुंचा जिसके एक तरफ पाकिस्तान है, तीन तरफ नदी से घिरा हुआ है. यहां से शहर तक पहुंचने का एकमात्र रास्ता नाव है. देश की आजादी के बाद भी यहां पुल नहीं बन सका. जिससे इन गांवों के निवासियों को सैकड़ों समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. आइए विस्तार से बताते हैं पंजाब के फिरोजपुर में बसे गांव कालूवाल की कहानी है.
बेशक, देश को स्वतंत्र हुए सात दशक से अधिक समय बीत चुका है लेकिन आज भी कुछ सीमावर्ती गांवों में जनजीवन मुश्किलों से भरा है. फिरोजपुर की सीमा पर कालूवाला गांव जो 3 तरफ सतलुज नदी से और एक तरफ पाकिस्तान की सीमा से लगा हुआ है. इस गांव के लोगों को अपनी जरूरत का सामान लेने के लिए नावों का सहारा लेना पड़ता है. इस गांव में कोई अस्पताल, डिस्पेंसरी या दुकान नहीं है. पिछले साल एक सरकारी स्कूल बनाया गया था लेकिन इसमें कोई शिक्षक नहीं है. लोगों को अपनी छोटी-छोटी जरूरतों के लिए नाव से नदी पार करनी पड़ती है. बीएसएफ भी शाम 7 बजे से सुबह 8 बजे तक मार्ग बंद कर देती है और लोग उस समय भारत से खुद को कटा हुआ महसूस करते हैं और किसी आपात स्थिति के लिए देर रात नदी पार करने के लिए लोगों को बीएसएफ से विशेष मंजूरी लेनी पड़ती है.
फिरोजपुर पाकिस्तान सीमा से सटा एक गांव है और तीन तरफ से सतलुज नदी से घिरा हुआ है, जहां 70 परिवार बसे हुए हैं. चौथी तरफ पाक सीमा लगती है. आबादी महज चार सौ है. सात दशक से शिक्षा से वंचित इस गांव में सिर्फ पांच लोग ही 12वीं पास हैं. बिजली की आपूर्ति होती है, लेकिन जब सावन में नदी में बाढ़ आती है तो बिजली चली जाती है. एक-दो महीने भी नहीं आती. मामला फिरोजपुर शहरी विधानसभा क्षेत्र के कालू वाला (द्वीप) गांव का है.
गांव के परमजीत सिंह ने साझा किया दुख
सीमावर्ती गांवों में रहने वाले लोगों की क्या स्थिति है, उन्हें किस तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है? यह सब पता लगाने के लिए ईटीवी भारत की टीम फिरोजपुर जिले के सीमावर्ती गांव कालूवाला में पहुंची. यहां गांव के लोगों से बातचीत कर उनकी समस्याएं जानीं. गांव निवासी परमजीत सिंह से बात करते हुए उन्होंने कहा कि इस गांव में स्कूल खोलने के लिए उन्हें सरकार को कई पत्र लिखने पड़े. यहां का पानी गंदा है और गांव के गरीब लोगों के कारण बड़े बोर भी नहीं हो पाते हैं. 20 से 25 फीट पर ही पानी लिया जाता है, जिससे बीमारियों का डर बना रहता है. उन्होंने कहा कि इस गांव से 10 किलोमीटर दूर दुलची के गांव में एक डिस्पेंसरी है और छोटे बच्चों को भी इंजेक्शन के लिए 10 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. उन्होंने कहा कि प्राइवेट डॉक्टर हैं. गांव में आने वालों को दवा दी जाती है और मोटी फीस ली जाती है. अगर कोई रात में बीमार हो जाता है तो यह सड़क सीमा से होकर गुजरती है.
राजनेता तो चुनाव के समय ही आते हैं: दर्शन सिंह
हमारे रिपोर्टर ने गांव निवासी दर्शन सिंह से बात की तो उन्होंने कहा कि नेता भी चुनाव के दौरान ही आते हैं, बड़े-बड़े वादे करके दोबारा नहीं आते. शहर से कनेक्शन को लेकर दर्शन सिंह का कहना है कि जब नदी में पानी आता है तो शहर से कनेक्शन टूट जाता है, आने-जाने में काफी दिक्कत होती है. बीमार व्यक्ति को भी उसे ले जाने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. यह पूछे जाने पर कि उन्होंने जो फसल बोई है, उसे शहर के अरहतों में ले जाया जाता है और उसकी कटाई कैसे की जाती है. उन्होंने कहा कि इन फसलों को ट्रॉलियों में लादकर नाव से कारीगरों के पास ले जाया जाता है, जिसमें लगभग पार करने के लिए 200/300 रुपये ट्राली और अगर 10 दिनों तक फसल नहीं बिकती है तो आपको बाजार में बैठना होगा. गांव में गरीबी अधिक होने के कारण दुकान नहीं है, बैंक भी नहीं है. ग्रामीणों का कहना है कि गांव में लाइट चली गई तो कई दिनों तक बिजली नहीं रहेगी. शिकायत करने के बाद भी कोई बिजली मिस्त्री नहीं आता.