मुंबईः राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) की विशेष अदालत ने वर्ष 2016 में आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आईएसआईएस) में युवाओं को भर्ती के लिए प्रेरित करने के आरोप में इस्लामिक उपदेशक जाकिर नाइक के संगठन इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन (आईआरएफ) के गिरफ्तार किए गए एक कर्मी को बरी करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष का बयान आकर्षक हो सकता है, लेकिन यह 'सबूतों द्वारा' भी साबित होना चाहिए.
विशेष एनआईए अदालत के न्यायाधीश एएम पाटिल ने अब प्रतिबंधित आईआरएफ के लिए काम करने वाले अर्शी कुरैशी को सबूतों के अभाव में शुक्रवार को सभी आरोपों से बरी कर दिया. इस फैसले की विस्तृत प्रति शनिवार को उपलब्ध हुई. कुरैशी को वर्ष 2016 में आईएसआईएस के कथित सदस्य अशफाक मजीद के पिता की शिकायत पर गिरफ्तार किया गया था. शिकायत में अशफाक मजीद के पिता ने कहा कि उनका बेटा लापता है. उसने अपनी बहन को सूचित किया है कि वह आतंकवादी संगठन में शामिल हो गया है.
एनआईए ने कुरैशी पर कथित गैर कानूनी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाते हुए उसे गैर कानूनी गतिविधि (निवारण) अधिनियम (यूएपीए) की धाराओं के तहत आरोपी बनाया था. एजेंसी ने कुरैशी पर भारत के खिलाफ नफरत फैलाने और प्रतिबंधित संगठन आईएसआईएस की गतिविधियों को बढ़ाने में मदद करने का आरोप लगाया था. विशेष लोक अभियोजक सुनील गोंसाल्विज ने कहा कि केरल के कुछ कट्टरपंथी युवाओं और आईआरएफ सदस्यों द्वारा अशफाक मजीद और उसके सहयोगियों को कट्टरपंथी जिहादी विचारधारा में शामिल करने का यह मामला है, जिन्होंने अशफाक और उसके सहयोगियों को आईएसआईएस में शामिल होने के लिए प्रेरित किया.
उन्होंने कहा कि अन्य आरोपी अब्दुल राशिद अब्दुल्ला लापता युवकों के समूह के लिए अशफाक के घर पर कक्षाएं चलाता था. विशेष लोक अभियोजक ने अदालत को बताया कि वे (युवक) चर्चा करते थे कि भारत वह जमीन नहीं है जहां पर शरिया कानून लागू है. अच्छे मुस्लिम और धर्म के बेतहरीन अनुयायी होने के नाते, उन्हें ऐसी जमीन पर रहना चाहिए जहां पर शरिया कानून लागू है. अभियोजन पक्ष ने कहा कि अब्दुल्ला आईएसआईएस से जुड़े लोगों के संपर्क में था और ‘डार्क नेट ब्राउजर’ का इस्तेमाल उनसे संवाद के लिए करता था.