नई दिल्ली : पूरे मुद्दे पर सबसे बड़ा सवाल यही है कि भारत खाड़ी के देशों को लेकर इतना संवेदनशील क्यों है. वह कौन सी स्थिति है, जिसकी वजह से भारत ने आनन-फानन में डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की है. आइए जानते हैं इसकी पूरी वजह.
2020-21 का आंकड़ा देख लीजिए. भारत ने इन छह देशों से 110.73 बिलियन डॉलर का तेल आयात किया. इसी दौरान इन देशों में हमने 44 बिलियन डॉलर के सामानों का निर्यात किया. भारत के एनआरआई की संख्या करीब 3.2 करोड़ है. इनकी आधी आबादी खाड़ी देशों में ही रहती हैं. भारत को उनसे बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा मिलता है.
संयुक्त अरब अमीरात - यूएई 2021-22 में भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था. इसके साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार 2021-22 में बढ़कर 72.9 बिलियन डॉलर का हो गया, जबकि 2020-21 में यह 43.3 बिलियन डॉलर था.
इसके अलावा, भारत और संयुक्त अरब अमीरात ने 2030 तक द्विपक्षीय व्यापारिक व्यापार को 100 अरब डॉलर तक बढ़ाने का संकल्प लिया है. इस पर फरवरी 2022 में हस्ताक्षर भी हुए हैं. भारत पहले ही संयुक्त अरब अमीरात के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर कर चुका है. 2014 में सत्ता संभालने के बाद से पीएम मोदी कई बार संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा कर चुके हैं. अबू धाबी भी नई दिल्ली को प्राथमिकता दे रहा है.
2018 में पीएम मोदी अबू धाबी में स्थापित होने वाले पहले हिंदू मंदिर के शिलान्यास कार्यक्रम में शामिल हुए थे. यूएई ने पीएम मोदी को 2019 में वहां के सर्वोच्च सिविलियन अवार्ड ऑर्डर ऑप जायेद से सम्मानित भी किया है.
सउदी अरब - पिछले वित्तीय वर्ष में सऊदी अरब भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था. 2021-22 में कुल द्विपक्षीय व्यापार बढ़कर 43 अरब डॉलर का हो गया, जो उसके पिछले वित्त वर्ष में 22 अरब डॉलर था. भारत चावल, मांस, इलेक्ट्रिकल मशीनरी, व्हीकल आदि चीजों का सउदी को निर्यात करता है. जबकि हम उनसे तेल आयात करते हैं.
ओआरएफ की एक रिपोर्ट के अनुसार 2020-21 में भारत को सबसे ज्यादा तेल निर्यात करने वाला देश इराक था, उसके बाद सउदी का दूसरा स्थान रहा है. 2016 में सउदी अरब ने पीएम मोदी को सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, अब्दुलअज़ीज़ अल सऊद से सम्मानित किया. ओमान, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब के साथ भारत कई संयुक्त सैन्य अभ्यासों में भाग ले चुका है.
कतर- भारत कतर से सालाना 8.5 मिलियन टन एलएनजी का आयात करता है और अनाज से लेकर मांस, मछली, रसायन और प्लास्टिक तक के उत्पादों का निर्यात करता है. भारत और कतर के बीच दो तरफा वाणिज्य 2021-22 में बढ़कर 15 अरब डॉलर का हो गया, जो 2020-21 में 9.21 अरब डॉलर था. भारत के कुल प्राकृतिक गैस आयात का लगभग 41% हिस्सा कतर से आता है.
कुवैत- पिछले वित्त वर्ष में कुवैत भारत का 27वां सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था. पिछले वित्त वर्ष के 6.3 बिलियन डॉलर की तुलना में 2021-22 में द्विपक्षीय व्यापार बढ़कर 12.3 बिलियन डॉलर हो गया है. इसके अलावा, सबसे अधिक प्रवासी भारतीय भी यहीं पर रहते हैं.
ओमान- यह 2021-22 में भारत का 31वां सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था. इसके साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार 2020-21 में 5.5 अरब डॉलर की तुलना में 2021-22 में बढ़कर लगभग 10 अरब डॉलर हो गया है.
बहरीन - भारत के साथ दो-तरफा वाणिज्य 2021-22 में 1.65 अरब डॉलर का रहा, जबकि 2020-21 में यह एक अरब डॉलर का था. पीएम मोदी को 2019 में बहरीन के शीर्ष पुरस्कार, द किंग हमद ऑर्डर ऑफ द रेनेसां से सम्मानित किया जा चुका है.
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को तात्कालिक रूप से झटका लगेगा, लेकिन लंबे समय में कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा. ईटीवी भारत से बात करते हुए पूर्व राजनयिक तलमिज अहमद(सउदी अरब, यूएई और ओमान में भारत के पूर्व राजदूत रह चुके) ने कहा कि यह मामला खतरे की घंटी जैसा है. वे हमें भविष्य के भागीदार के रूप में देखते हैं. उनका साफ कहना है कि इस तरह की अनर्गल बातें जिससे असामंजस्य के पैदा होने का खतरा रहता है, इस पर रोक लगाई जानी चाहिए.
पूर्व राजदूत ने कहा कि खाड़ी के हर देश में भारतीय समुदायों की संख्या सबसे अधिक है. भारत को वहां पर एक आधुनिक, उदारवादी, धर्मनिरपेक्ष, बहुलतावादी और प्रजातांत्रिक देश के रूप में देखा जाता है. हमें वहां पर 'अराजनीतिक' (निष्पक्ष) रूप में देखा जाता है.
उन्होंने कहा कि मेरी पहली चिंता हमारे मूल्यों और साख के बारे में है क्योंकि इस तरह की घटनाएं हमारे लोगों के वहां जाने पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं और यह मेरी सबसे बड़ी चिंता है.
जब उनसे पूछा गया कि क्या इससे द्विपक्षीय संबंधों पर भी असर पड़ेगा, पूर्व राजदूत तलमिज अहमद ने कहा कि शायद नहीं. उन्होंने कहा कि व्यापारिक संबंध एक दूसरे पर पड़ने वाले आर्थिक हितों पर निर्भर रहते हैं. फायदा दोनों को होता है. हम उनसे ऊर्जा की जरूरतों को प्राप्त करते हैं, तो वे हमसे उपभोक्ता वस्तुओं का आयात करते हैं.
इसी मामले पर एक अन्य पूर्व राजदूत जेके त्रिपाठीने ईटीवी भारत के साथ विशेष बातचीत में बताया, 'इन मामलों से द्विपक्षीय संबंधों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है. ऐसी घटनाएं तात्कालिक असर डालती हैं. आम तौर पर किसी देश में अल्पसंख्यकों के साथ कुछ होता है, तो इसके लिए प्रोटोकॉल निर्धारित हैं. विरोध दर्ज कराने का अपना तरीका होता है. इस मामले में भी ऐसा ही हुआ है. यह बहुत ही आश्चर्य वाली बात नहीं है. वैसे भी ओआईसी तो भारत विरोधी रूख के लिए जाना जाता है.'
जेके त्रिपाठी ने बताया कि पूरे मामले का असर वहां पर रह रहे भारतीयों पर नहीं पड़ेगा. इसका प्रवासी भारतीयों से कोई लेना देना नहीं है. ऐसी घटनाएं होती हैं, जिनका असर एक-दो दिनों में खत्म हो जाएगा. द्विपक्षीय संबंधों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है.
यहां इसका भी उल्लेख जरूरी है कि मालदीव जैसे देश ने भी मुद्दा उठाया है. यहां पर तो हमारा चीन के साथ कंपिटिशन है. लंबे समय बाद भारत की स्थिति यहां पर अच्छी हुई है. भारत के पक्ष में माहौल बना है. मोहम्मद नशीद, जिन्होंने एंटी इंडियन रूख अपनाया था, अब वहां से जा चुके हैं.
पूर्व राजदूत अनिल त्रिगुणायत ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि इस तरह के गैर जिम्मेदार बयान से धार्मिक संवेदनाएं भड़कती हैं. ऐसी घटनाएं होनी ही नहीं चाहिए थीं. अधिकांश देशों ने अब भारत की आधिकारिक स्थिति को समझ लिया है. भाजपा ने भी इन्हें निलंबित कर दिया है. लेकिन जो संवेदनाएं जनता तक पहुंच चुकी हैं, उसे खत्म होने में समय लग जाता है. व्यक्तिगत और द्विपक्षीय लेवल पर प्रभाव नहीं पड़ने वाला है. हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आगे से किसी भी धर्म के खिलाफ इस तरह का कोई बयान न आए.
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