महबूबाबाद (तेलंगाना): भारत में चुनाव आम तौर पर शत्रुता का पर्याय बन जाते हैं. यह न केवल चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के बीच बल्कि मतदाता एक उम्मीदवार के अनुयायियों को दूसरे के खिलाफ खड़ा करते हैं, जो कभी-कभी मारपीट में तब्दील हो जाते हैं. इससे इतर तेलंगाना के महबूबाबाद और नलगोंडा जिलों के दो गांव लोकतंत्र का प्रतीक बन गए हैं. इनमें जहां एक गांव में राजनीतिक प्रतीकों पर प्रतिबंध है, वहीं दूसरे गांव के मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए निकटतम मतदान केंद्र तक पहुंचने के लिए 8 किमी पैदल चलते हैं.
आमतौर पर जब चुनाव नजदीक आते हैं तो गांवों और कस्बों के मुख्य चौराहों पर राजनीतिक दलों के झंडे और पताकाएं नजर आने लगती हैं. लेकिन वे तेलंगाना के महबूबाबाद जिले के बय्याराम मंडल के मोतला थिम्मापुरम गांव में नहीं पाए जाते हैं. बय्याराम से 5 किलोमीटर दूर ऊंची पहाड़ियों के बीच इस गांव में सभी ग्रामीण आदिवासी हैं और यहां 447 मतदाता हैं. सभी परिवार अपनी संस्कृति और परंपराओं का पालन करते हैं और सामाजिक सद्भाव के प्रतीक के रूप में एक साथ खड़े हैं. वे किसी भी तरह के विवादों से दूर रहते हैं और कभी भी अपने विवादों को सुलझाने के लिए पुलिस स्टेशन नहीं गए हैं.
इतना ही नहीं माओवादी प्रभाव के चरम पर रहने के समय में भी जंगल के करीब होने के बावजूद माओवादियों को कभी भी ग्रामीणों पर हुक्म चलाने की इजाजत नहीं थी. स्थानीय लोगों का कहना है कि राजनीति के मामले में चाहे किसी की भी राय कुछ भी हो, लेकिन ग्रामीणों के बीच एकता न टूटे इसलिए पार्टियों के झंडे, बैनर नहीं लगाए जा रहे हैं. ऐसा कहने के बाद भी ग्रामीण लोकतांत्रिक प्रक्रिया के विरुद्ध नहीं हैं क्योंकि उम्मीदवारों को चुनाव के दौरान संबंधित पार्टियों के लिए प्रचार करने की अनुमति है. वहीं दूसरी तरफ नलगोंडा जिले के देवरकोंडा निर्वाचन क्षेत्र में स्थित अशेगट्टू अवासा गांव में ग्रामीण अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए दृढ़ हैं.
एक तरफ जहां शहरों और कस्बों में मतदान केंद्र के पास होने के बाद भी बहुत से लोग मतदान करने में रुचि नहीं रखते हैं. लेकिन अशेगट्टू गांव के स्थानीय लोग वोट डालने के लिए निकटतम मतदान केंद्र तक 8 किलोमीटर पैदल चलकर पहुंचते हैं. इतना ही नहीं गांव में केवल 137 मतदाता होने के बावजूद स्थानीय लोग इतनी लंबी दूरी तयकर पेडगट्टू में बने मतदान केंद्र तक पहुंचकर लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेते हैं. बता दें कि नागार्जुनसागर जलाशय में उनके गांव के डूबने के बाद 80 आदिवासी परिवार अशेगट्टू में बस गए थे और तब से यहीं रह रहे हैं.
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