नई दिल्ली : वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछली बार (2021-22) बजट पेश करते समय तीन महत्वपूर्ण कदमों की घोषणा की थी. पहली घोषणा बैंकों के एनपीए को सही करने को लेकर की गई थी. इसके लिए सरकार ने एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लि. और एसेट मैनेजमेंट कंपनी के गठन का ऐलान किया. दूसरा प्रमुख बिंदु था विनिवेश के जरिए 1.75 लाख करोड़ जुटाने का लक्ष्य और तीसरी घोषणा थी- डेवलपमेंट फाइनेंस इंस्टीट्यूट यानी विकास वित्त संस्थान की स्थापना. डीएफआई के जरिए बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं की सहायता करना था. आइए देखते हैं कि अब जबकि नया बजट पेश होने वाला है, सरकार ने इन घोषणाों पर कितना अमल किया है.
विनिवेश के लक्ष्य को पूरा करने में सरकार विफल
सबसे पहले विनिवेश का ही मुद्दा उठाते हैं. वित्त मंत्री ने बड़े जोर-शोर से विनिवेश के जरिए 1.75 लाख करोड़ रु. इकट्ठा करने का लक्ष्य निर्धारित किया था. इसे लेकर खूब ताली भी पीटी गई थी. लेकिन हकीकत का जब आपको अंदाजा होगा, तो आप चौंक जाएंगे. अभी तक मात्र 9,329 करोड़ ही सरकार जुटा पाई है. अब नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत होने में मात्र दो महीने बचे हैं. सरकार किस हद तक मैनेज कर सकती है, आप खुद ही अंदाजा लगाइए. वित्त मंत्री ने शिपिंग कॉर्प ऑफ इंडिया, एयर इंडिया, नीलांचल इस्पातल नि. लि., कंटेनर कॉर्प ऑफ इंडिया, आईडीबीआई, बीईएमएल लि. और पवन हंस के स्टेक को बेचने की घोषणा की थी. दो सरकारी बैंकों के निजीकरण की बात भी चल रही थी, पर इस पर कुछ भी जानकारी निकलकर नहीं आई.
बजट के जानकार और सरकार के समर्थकों का कहना है कि वित्त मंत्री के पास अभी भी एलआईसी जैसा तुरुप का पत्ता है. हो सकता है इस बजट के पेश होने के बाद एलआईसी के विनिवेश का पूरा खाका सामने आ जाए और इस लक्ष्य का बड़ा हिस्सा हासिल किया जा सकता है. इसके बावजूद इतना तो तय है कि सरकार पौने दो लाख करोड़ रु. की सीमा तो नहीं पार कर सकती है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बजट के बाद एलआईसी का आईपीओ बाजार में आ सकता है. चर्चा है कि यह देश का सबसे बड़ा आईपीओ होगा. अगर सरकार इसके 10 फीसदी हिस्से को भी बेचती है, तो 1.50 लाख करोड़ ही जुटा पाएगी.
आपको यहां पर यह भी जानकारी दे दें कि इससे पिछली बार यानी वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए भी सरकार ने 2.1 लाख करोड़ विनिवेश के जरिए पैसा जुटाने का टारगेट सेट किया था, पर वह भी पूरा नहीं हो पाया था. जाहिर है, सिर्फ घोषणा करना ही जरूरी नहीं होता है, उस पर अमल भी उतना ही जरूरी है. इस हिसाब से कहें तो वर्तमान सरकार यह समझ नहीं पा रही है कि उससे कहां चूक हो रही है.
हां, सरकार को एयर इंडिया की बिक्री में जरूर सफलता मिली. विवाद के बावजूद सरकार ने इस बिक्री को पूरा कर लिया है. टाटा ने एयर इंडिया को फिर से हासिल कर लिया है. बिक्री की आखिरी औपचारिकताएं पूरी होनी बाकी हैं.
अभी तक सरकार ने विनिवेश के जरिए मात्र 9,329 करोड़ हासिल किए हैं. इसमें मुख्य रूप से एनएमडीसी, हुडको, एचसीएल और आईपीसीएल के अलावा एक्सिस बैंक थ्रू सुट्टी शामिल है. यानी सरकार को अपने लक्ष्य का मात्र पांच फीसदी ही हासिल हुआ है. यह लगातार तीसरा साल होगा कि सरकार अपने लक्ष्य को पूरा नहीं करेगी.
विकास वित्त संस्थान भी नहीं हुआ सफल
पिछले बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने डेवलपमेंट फाइनेंस इंस्टीट्यूट यानी विकास वित्त संस्थान की स्थापना की घोषणा की थी. इसके लिए 197 अरब रुपये का एक नया फंड निर्धारित करने की घोषणा की गई थी. वित्त मंत्री ने कहा था कि इसका उद्देश्य बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं की सहायता करना है. इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं और उनके पूरे इको सिस्टम के लिए पूरे जीवन काल तक वित्त उपलब्ध करवाना उद्देश्य बताया गया.
दरअसल, डीएफआई कम ब्याज दर पर कर्ज उलब्ध करवाता है. यह आम बैंकों से मिलने वाले कर्ज से हटकर होता है. बैंकों की अपनी सीमाएं होती हैं. वे मुख्य रूप से अल्पकालिक और मध्यम अवधि के लोन में ज्यादा रुचि दिखाते हैं. सरकार ने डीएफआई को लेकर जो भी प्रस्ताव दिया है, उसकी जवाबदेही महती है. लेकिन एक बार फिर से वही सवाल उठता है, आप इसे कैसे लागू करेंगे और कहीं प्रक्रियाओं के उलझन में ही तो हर संस्थान सिमटकर नहीं रह जा रहा है. इस पर भी विचार करने की जरूरत है. क्योंकि डीएफआई कोई नया कॉन्सेप्ट नहीं है. अपने देश में 1948 से ही यह व्यवस्था चली आ रही है. ढांचागत क्षेत्र, इंडस्ट्री और एग्रीकल्चर में वित्त की जरूरत को पूरा करने के लिए पहले से ही कई डीएफआई चल रहे हैं. फिर नई घोषणाएं क्यों की गईं. क्या ये भी बाजीगरी है क्या. सरकार ने इस सवाल का जवाब आज तक नहीं दिया है.