23 साल से बिना सैलरी वाले प्रोफेसर की मानसिक स्थिति हुई खराब छपरा: किसी कर्मचारी को एक-दो महीने तनख्वाह न मिले तो क्या होगा? आप इसके अंजाम से वाकिफ जरूर होंगे. लेकिन, सोचिए जिस वर्कर को एक दो महीने नहीं, एक दो साल नहीं, एक दो दशक नहीं बल्कि उससे भी ज्यादा सालों तक सैलरी न मिले तो उसकी मानसिक और आर्थिक दशा क्या होगी? छपरा के प्रोफेसर साहब की हालत देखकर इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.
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वेतन के इंतजार में बीत गए दो दशक : 23 साल से छपरा के राजेन्द्र कॉलेज के प्रोफेसर साहब का वेतन नहीं मिला है. लगातार शिकायत करने के बावजूद उनके वेतन का भुगतान नहीं हो रहा है. आजिज आकर उन्होंने खौफनाक कदम उठाया. उनके बैंक अकाउंट में 18 अप्रैल 2000 को आखिरी सैलरी क्रेडिट हुई थी. तब से उनके खाते में सन्नाटा है. मानसिक तनाव में आकर उन्होंने आत्मदाह की कोशिश भी की. पूछने पर तड़पकर रह गए. दिल में दर्द लिए कोसते हुए बोले- ''मेरा जीवन निकल गया, अब बच्चों का बर्बाद हो रहा है.''
नियुक्ति के तीन साल बाद से सैलरी बंद: मामला जय प्रकाश विश्वविद्यालय में राजेन्द्र कॉलेज छपरा के कॉमर्स विभाग का है, जहां एक दैनिक वेतन भोगी प्रोफेसर राजन राज ऊर्फ भोला श्रीवास्तव की तनख्वाह पिछले 23 साल से बंद है. 25 साल से वो राजेंद्र कॉलेज पटना में दैनिक वेतन भोगी प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं. लेकिन नियुक्ति के तीन साल बाद से ही उनकी सैलरी आनी बंद हो गई. इसके लिए उन्होंने राजभवन तक के चक्कर काटे, शिक्षा विभाग के सेकेट्री से भी मिले लेकिन नतीजा आज भी जस का तस है.
''18 अप्रैल 2000 से मुझे किसी भी प्रकार के वेतन का भुगतान नहीं किया गया है. इस विषय में जयप्रकाश विश्वविद्यालय के कुलपति ने प्रचार्य राजेंद्र कॉलेज को आदेश दिया कि मेरे वेतन का भुगतान कर दिया जाए. लेकिन उसके बाद भी मेरे वेतन का भुगतान नहीं किया गया.''- राजन राज, दैनिक वेतन भोगी प्रोफेसर, कॉमर्स विभाग, राजेन्द्र कॉलेज, छपरा
23 साल से सैलरी के लिए छटपटाता प्रोफेसर
घर में भुखमरी के हालात, की आत्मदाह की कोशिश : लंबे से दैनिक वेतन भुगतान न होने पर उनके परिवार की माली हालत बेहत चिंताजनक हो गई है. उन्होंने गिड़गिड़ाते हुए कहा कि उनके दो बच्चे हैं. दोनों का भविष्य चौपट हो रहा है. मेरी जिंदगी भी जैसे तैसे निकल गई. वेतन के अभाव में घर पर भुखमरी के हालात हो गए हैं. इस वजह से मानसिक अवसाद में आकर आत्मदाह की कोशिश की. गनीमत रही कि समय पर विश्वविद्यालय के सुरक्षा कर्मियों ने रोक लिया. नहीं तो अनहोनी हो जाती.
अव्यवस्था का जिम्मेदार कौन ?: इस घटना की जानकारी मिलने के बाद स्थानीय मुफस्सिल थाना क्षेत्र की पुलिस भी गई और उन्हें अपने साथ लेकर थाने गई. गौरतलब है कि जयप्रकाश विश्वविद्यालय में उसके स्थापना काल से ही कई ऐसे वेतन भोगी कर्मचारी हैं, जिनको आज तक परमानेंट नहीं किया गया है. हालांकि इन लोगों ने हाईकोर्ट की शरण भी ली, लेकिन अभी भी कोई फैसला इन लोग के पक्ष में नहीं आया है.
23 साल से बिना वेतन के प्रोफेसर साहब: इनकी इस दशा को देखते हुए इतना कहा जा सकता है कि सरकार को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए. 23 साल से अध्यापन कार्य कर रहे हैं तो उन्हें इसके एवज में वेतन भी मिलना चाहिए. देखने वाली बात ये है कि विश्वविद्यालय प्रशासन और कॉलेज प्रशासन अब अगला क्या कदम उठाता है?