लखनऊ : 'अस्थमा में सांस की नलियों में जलन, सिकुड़न या सूजन की स्थिति और उनमें ज़्यादा बलगम बनना, जिससे सांस लेने में कठिनाई होती है. दमा मामूली हो सकता है या इसके होने पर रोज़मर्रा के (Problem Of Asthma Patients) काम करने में समस्या आ सकती है. कुछ मामलों में, इसकी वजह से जानलेवा दौरा भी पड़ सकता है, वहीं मौजूदा समय में पर्यावरण में प्रदूषण होने के कारण भी दमा के मरीजों को खास दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. सर्दियों में प्रदूषण का स्तर इतना बढ़ जाता है कि अस्थमा का मरीज जब बाहर निकलता है तो उसकी हालत गंभीर हो जाती है.' यह बातें ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान सिविल अस्पताल के सीएमएस व वरिष्ठ कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. राजेश कुमार श्रीवास्तव ने कहीं.
सीएमएस व वरिष्ठ कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. राजेश कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि 'मौसम भी परिवर्तन हो रहा है. अब मौसम बरसात से सर्दी की तरफ रुख कर रहा है. इस मौसम में वायु प्रदूषण भी बढ़ता है और साथ ही फॉग भी होता है. वायु प्रदूषण के कारण अस्थमा के मरीजों को काफी दिक्कत परेशानी होती है क्योंकि अस्थमा जिन मरीजों को है, वह ज्यादा समय तक ऐसी जगह पर नहीं रह सकते. जहां पर उन्हें बहुत अधिक धूल, फॉग या दूषित वातावरण हो. दूषित वातावरण में मरीज की समस्या और भी ज्यादा बढ़ जाती है. इस समय अस्पताल की चेस्ट फिजिशियन की ओपीडी में रोजाना 150 से 200 मरीज इलाज के लिए आ रहे हैं. अस्थमा बहुत ही बड़ी बीमारी है. अस्थमा के मरीजों को कुछ बातों का ख्याल रखने की आवश्यकता होती है. ओपीडी में जितने भी मरीज अस्थमा के आते हैं वह इस समय धूल या बाहर निकलने में दिक्कत होने की शिकायत लेकर आते हैं कि जब वह बाहर निकलते हैं तो उन्हें सांस लेने में दिक्कत होती है. उन्होंने कहा कि अस्थमा की मरीज को दूषित वातावरण में सांस लेने में दिक्कत होती है, इसलिए उन्हें अपने चेहरे पर मास्क लगाकर रखना चाहिए, ताकि दूषित हवा या धूल उनके शरीर में न प्रवेश करें.'
उन्होंने कहा कि 'प्रदूषण तो अस्थमा का एक कारक है ही लेकिन इसके अलावा मॉस्किटो कॉइल और स्मोकिंग भी बड़ा कारक है. मॉस्किटो कॉइल से निकलने वाला धुआं सौ सिगरेट के धुएं के बराबर होता है, इसलिए देखा गया है कि जिन घरों में मॉस्किटो कॉइल जलाया जाता है उस घर के किसी न किसी सदस्य को अस्थमा जरूर होता है. इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में चूल्हे के सामने बैठकर खाना बनाने वाली महिलाओं को भी अस्थमा होता है. उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी समस्या यही है कि जिन लोगों को अस्थमा है उन्हें इस बात की खबर ही नहीं है अगर समय पर समुचित इलाज मिल जाए तो इन मरीजों को अस्थमा से मुक्ति मिल सकती है. इसके अलावा घर में अगर कोई व्यक्ति धूम्रपान करता है तो धूम्रपान के जरिए निकलने वाले धुएं से महिलाएं व बच्चे व बुजुर्ग अधिक प्रभावित होते हैं.'
अस्थमा के कारण |
- मौसम परिवर्तन. |
- धूल, पेड़ या घास के पराग के संपर्क में आना. |
- धुआं या व्यावसायिक धूल का जोखिम. |
- तेज गंध के संपर्क में आना, जैसे कि परफ्यूम और अरोमा कंपाउंड्स. |
- धुआं या व्यावसायिक धूल का जोखिम. |
- तनाव. |
- शराब, सिगरेट या ड्रग्स का दुरुपयोग. |
- विषाणु संक्रमण. |
केजीएमयू के पल्मोनरी एवं क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. वेद प्रकाश ने आंकड़ों पर बात करते हुए बताया कि 'अस्थमा से हर वर्ष अनुमानित रूप से 2.5 लाख लोगों की मृत्यु होती है. पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अस्थमा अधिक पाया जाता है. अस्थमा मुख्य रूप से बच्चों में होता है और दुनिया भर में अनुमानित 14 प्रतिशत बच्चे इस बीमारी से प्रभावित हैं. हर वर्ष अस्थमा के चलते कई बच्चों का स्कूल छूटता है. अस्थमा की बीमारी से पड़ने वाला आर्थिक बोझ बहुत महत्वपूर्ण है, वर्ष 2021 में एक अनुमान के हिसाब से पूरे विश्व में लगभग 6 लाख करोड़ रुपये अस्थमा की बीमारी से निपटने के लिये खर्च हुए हैं.'