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गृहयुद्ध की ओर म्यांमार, लोकतंत्र समर्थकों ने तैयार किए लड़ाके

भारत का पूर्वी पड़ोसी देश म्यामांर में उथल-पुथल की स्थिति है क्योंकि वहां लोगों और विभिन्न जातीय समूहों के सशस्त्र लड़ाके सत्तारूढ़ म्यांमार के साथ लड़ाई के लिए तैयार हो गए हैं. इस संबंध में पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट.

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Published : Mar 19, 2021, 8:02 PM IST

नई दिल्ली : म्यांमार में लोकतंत्र समर्थक आंदोलन के लिए कमेटी रिप्रेसेनटिंग पाइयिंगुंग्सु ह्लुटाव (CRPH) के नेतृत्व में 'ततमादव' (म्यांमार सेना) को रोकने के लिए संघीय सेना का गठन किया है. इसके लिए समिति ने देश भर के प्रत्येक गांव से 10-20 सक्षम पुरुषों की सैन्य सेवाएं मांगी हैं.

मिजोरम से राज्यसभा सांसद के वनलालवेना ने ईटीवी भारत को फोन पर बताया कि संघीय सेना बनाने के लिए 10-20 युवाओं को तैयार करने के लिए हर गांव में एक संदेश भेजा गया है. म्यांमार निश्चित रूप से गृह युद्ध जैसी स्थिति का सामना कर रहा है.

उन्होंने कहा कि गुरुवार की रात CRPH द्वारा लोगों को एकत्रित करने लिए लोगों तक यह संदेश भेजा गया.

मिजो सांसद ने म्यांमार में CRPH के शीर्ष राजनीतिक नेताओं से बात करने के बाद कहा कि म्यांमार में लोकतंत्र-समर्थक आंदोलन में मदद करने के लिए दुनिया भर से धन सहित सभी प्रकार के समर्थन मिल रहे हैं. ततमादव संघीय सेना का एक महीने से अधिक मुकाबला नहीं कर पाएगा.

उल्लेखनीय है कि मिजोरम और मणिपुर के कुछ हिस्सों में म्यांमार के लोकतंत्र समर्थक आंदोलन को बहुत सहानुभूति और समर्थन मिल रहा है.

मिजोरम और दक्षिण मणिपुर के कई समुदायों के वंशज म्यांमार के चिन राज्य में मौजूद हैं. चिन में भारत और म्यांमार सीमा साझा करते हैं. नतीजन यहां के लोगों में मेल-जोल अंतरराष्ट्रीय सीमा द्वारा बंट गया है.म्यांमार के स्प्रिंग रिवोल्यूशन का मुख्य चेहरा डॉ सासा भी चिन समुदाय से हैं.

एक फरवरी को म्यांमार सेना द्वारा तख्तापलट के बाद उत्पीड़न के डर से सरकारी अधिकारियों सहित म्यांमार के सैकड़ों नागरिक सीमा पार कर भारत में आ गए हैं.

मीडिया ने कई ततमादव के सैनिकों, पुलिसकर्मियों, अग्निशमन कर्मियों और अन्य सरकारी अधिकारियों के बारे में बताया, जिन्होंने अपने ड्यूटी करने से इनकार कर दिया है और CRPH के सिविल डिसोबीडीअन्स को रेस्पोंस कर रहे हैं.

लोकप्रिय धारणा के विपरीत एक संघीय सेना को जल्दी से संगठित करना मुश्किल काम नहीं हो सकता है, क्योंकि म्यांमार पिछले सात दशकों से कई विद्रोहियों के लिए उपजाऊ जमीन रहा है. इन्हें आधिकारिक तौर पर एथनिक आर्म्ड ऑर्गेनाइजेशन (EAOs) कहा जाता है.

इन संगठनों को स्व-निर्धारण और पूर्ण स्वतंत्रता से लेकर स्वायत्तता तक की अपनी मांगों को लेकर जातीय लाइनों के साथ आयोजित किया जाता है.

वनलालवेना ने कहा कि यह पहली बार है कि सभी EAOs नागरिक सरकार और साथ ततमाधव के विरोध में खड़े हैं.

जबकि म्यांमार में राजनीतिक रूप से प्रमुख समुदाय बरमार (बर्मन) है. यह विद्रोही संगठन देश में सबसे अधिक पाए जाते हैं.

इसके अलावा विद्रोही समूहों में शनस, कायन्स, काचिन, रखाइन और चिन हैं जो हर समय सैन्य सेवा के लिए तैयार स्वयंसेवकों का एक समूह है.

CPRH के आंकड़ों के अनुसार, गुरुवार (18 मार्च) तक, 217 नागरिक प्रदर्शनकारियों को 1 फरवरी से जुंटा सेना द्वारा मार दिया गया है, जबकि 2191 प्रदर्शनकारियों को को गिरफ्तार किया गया है. साथ ही 1,872 लोगों को सक्रिय रूप से प्रताड़ित किया गया है.

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दिलचस्प बात यह है कि इस सप्ताह की शुरुआत में CRPH ने लोगों की ओर से आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन किया था.

CRPH ने कहा था कि वर्तमान आपराधिक प्रक्रियाओं (दंड संहिता) के अध्याय 4 के आत्मरक्षा के अधिकार के प्रावधानों के अनुसार गैर कानूनी सैन्य तख्तापलट होने पर उन्हें खुद का या दूसरों का बचाव करने का पूरा अधिकार है.

समिति यह घोषणा की है कि अगर कोई शख्स किसी व्यक्ति या वार्ड / ग्राम समुदाय समूह या समूहों द्वारा कानून के अनुसार आत्मरक्षा के लिए कोई कदम उठाता है, तो उसके आपराधिक कृत्यों अपराध नहीं माना जाएगा.

बता दें कि फरवरी में हुआ तख्तापलट चुनावी फैसले में निहित है, जिसने नवंबर 2020 में आंग सान सू की के नेतृत्व वाली नेशनल डेमोक्रेटिक लीग (एनएलडी) के पक्ष में भारी मतदान किया था.

चुनाव में एनएलडी को कुल 476 सीटों में से 396 सीटें मिलीं, जबकि जुंटा समर्थित यूनियन सॉलिडैरिटी एंड डेवलपमेंट पार्टी (यूएसडीपी) को सिर्फ 33 सीटें मिल सकी थीं.

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