बेंगलुरु : केंद्र सरकार के बजट में आईडीबीआई बैंक (IDBI Bank) और दो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण जैसे सुधार उपायों समेत कई घोषणाएं की गईं. इसके अलावा बीमा क्षेत्र में 74 प्रतिशत तक एफडीआई की अनुमति दी गई. राष्ट्रीय बैंक संघ के कर्नाटक संयोजक एस.के. श्रीनिवास ने कहा, ये सभी उपाय प्रतिगामी हैं और इनका विरोध करने की आवश्यकता है.
ईटीवी भारत से बात करते हुए एस.के. श्रीनिवास ने बताया 19 जुलाई 1969 में 14 वाणिज्यिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया. जिसके लिए बैंक राष्ट्रीयकरण दिवस मनाया जाता है. 15 मार्च 1980 को छह और बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थापना 1975 में हुई थी. कुल मिलाकर इसका उद्देश्य जमाकर्ताओं के एक व्यापक समूह से बचत जुटाना और उत्पादकों के बड़े हिस्से तक साख को पहुंचाना था.
पूर्व में भी बैंकों की विफलता बहुत सामान्य बात थी. 1947 से 1969 तक 550 निजी बैंक विफल रहे हैं. इस दौरान जमाकर्ताओं की बचत पर पानी फिर गया.
1969 के बाद ग्लोबल ट्रस्ट बैंक, सेंचुरियन बैंक, टाइम्स बैंक, बैंक ऑफ पंजाब, लक्ष्मी विलास बैंक सहित 38 निजी बैंक असफल रहे. उल्लेखनीय है कि उस समय सार्वजनिक क्षेत्र के किसी भी बैंक का पतन नहीं हुआ, बल्कि उन्होंने असफल निजी बैंकों पर कब्जा करके जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा की है.
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श्रीनिवास (जो एसबीआई में एक अधिकारी भी हैं) बताते हैं कि 2008 के वैश्विक बैंकिंग पतन के दौरान भारतीय बैंकिंग प्रणाली अप्रभावित रही. इससे पहले 1980 के दशक में जापानी बैंक, 1990 के दशक में कोरियाई बैंक और 2017 में इतालवी बैंक भी इसी तरह से प्रभावित हुए.
जून 1969 में 8,961 बैंक शाखाएं थीं, जो 1980 में बढ़कर 32,417 हो गईं, फिर 1991 में 60,220 और अब 2020 के मध्य में 1,46,904 हो चुकी हैं.