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Pressure Politics in Bihar: एक नाव पर सवार मांझी-सहनी, डुबो सकते हैं UP में बीजेपी की नैया! - Pressure Politics in Bihar

पश्चिम बंगाल चुनाव हारने के बाद अब बीजेपी की नजर अगले साल होने वाले यूपी चुनाव (UP Election 2022) पर है. लेकिन यूपी के पड़ोसी राज्य बिहार से बीजेपी (​Pressure Politics in Bihar) के लिए बुरी खबर है, जहां मांझी और सहनी के तेवर बदले हुए हैं.

Pressure Politics in Biha
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Published : Jun 12, 2021, 2:31 AM IST

पटना:कहा जाता है दिल्ली का रास्ता यूपी से होकर जाता है. यही वजह है कि हर पार्टी यूपी का किला फतह (UP Election 2022) करना चाहती है. फिलहाल उत्तर प्रदेश में योगी सरकार (Yogi Aditya Nath) है. बीजेपी के शीर्षस्थ नेताओं का पूरा ध्यान यूपी पर है. लेकिन पड़ोसी राज्य बिहार ( Bihar ) से फिलहाल बीजेपी के लिए शुभ संकेत नहीं आ रहे हैं.

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बिहार में तेज हुई सियासत
बिहार, यूपी का पड़ोसी राज्य है और इसलिए यूपी चुनाव से पहले बिहार में भी सियासत तेज है. एनडीए के घटक दलों में वीआईपी पार्टी के मुकेश सहनी ने डेढ़ सौ सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है, इसे बीजेपी पर दबाव बनाने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है.

राजनीतिक विशेषज्ञ संजय कुमार का कहना है कि बीजेपी को पता है कि अगर मुस्लिम और दलित यूपी में एकजुट हो गए तो उनके लिए मुश्किल होगी और इसलिए बिहार बीजेपी के नेता लगातार इस मुद्दे को उठा रहे हैं.

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वहीं जीतन राम मांझी, बीजेपी के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोल चुके हैं. खासकर हाल के दिनों में अल्पसंख्यक समाज की ओर से दलितों पर आक्रमण को लेकर बीजेपी की ओर से सवाल उठाए जाने पर जीतन राम मांझी आक्रामक हैं और बीजेपी को एक तरह से दलित-मुस्लिम गठजोड़ का विरोधी बता रहे हैं.

इस संबंध में राजनीतिक विशेषज्ञ प्रोफेसर अजय झा का मानना है कि दलित के साथ सहनी वोट भी यूपी में काफी अधिक है और इसलिए मुकेश सहनी जिनका वहां कोई आधार नहीं है, बीजेपी पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं. यूपी में दलित और सहनी के कई बड़े नेता हैं ऐसे में जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी का कोई असर होने वाला नहीं है.

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बिहार ने बढ़ाई बीजेपी की मुश्किलें
बंगाल चुनाव के बाद अब सबकी नजर उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले चुनाव पर है. यूपी में बीजेपी की सरकार है और बीजेपी फिर से अपना परचम लहराना चाहती है. चुनाव यूपी में हो या फिर बिहार में दोनों पड़ोसी राज्यों के कई जिलों पर दोनों तरफ के दलों की नजर रहती है.

दलितों पर आक्रमण का मुद्दा
बिहार में इन दिनों दलितों पर आक्रमण बढ़ा है. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जयसवाल से लेकर बीजेपी के मंत्री तक इस मुद्दे को प्रमुखता से उठा रहे हैं, लेकिन वहीं दूसरी तरफ जीतन राम मांझी जो बिहार में अपने को दलितों का बड़ा नेता मानते हैं इसे दलित मुस्लिम गठजोड़ को तोड़ने वाला प्रयास मानते हैं.

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क्या कहना है बीजेपी का...
बीजेपी प्रवक्ता विनोद शर्मा का कहना है कि कहीं से कोई भी चुनाव लड़ सकता है. पहले भी कई दल चुनाव लड़े हैं क्या हश्र हुआ सब जानते हैं. बिहार में प्रदेश अध्यक्ष ने दलितों पर अत्याचार का मामला उठाया है. दलितों पर अत्याचार पूरे देश में हो रहे हैं लेकिन बीजेपी हमेशा दलितों के साथ खड़ी है.

आरजेडी ने साधा निशाना
वहीं मांझी-सहनी के बदले सुर पर आरजेडी, सरकार को घेर रही है. उसका साफ कहना है कि बीजेपी जिन मुद्दों को उठा रही है उसकी नजर यूपी चुनाव पर है.

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दलित मुस्लिम सियासत
बिहार में दलितों के लिए 40 सीट रिजर्व है तो वहीं 40 से अधिक सीट पर मुस्लिम का प्रभाव है यानी 80 सीटों पर दलित मुस्लिम एकता का असर पड़ता है. तो यूपी में इससे कहीं अधिक सीट प्रभावित होते हैं और दलित मुस्लिम सियासत का यह एक बड़ा कारण है.

मांझी हैं हमलावर
बिहार एनडीए में सरकार बनने के बाद से लगातार खटपट है. जीतन राम मांझी राजपाल कोटे से भरे जाने वाले 12 एमएलसी सीटों में से भी एक सीट की मांग कर रहे थे. सीट नहीं मिलने की नाराजगी अब भी है.

मुकेश सहनी कर रहे हमले
वहीं मुकेश सहनी भी सरकार में अधिक भागीदारी चाहते हैं. दोनों महत्वाकांक्षी नेता हैं. राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के जेल से बाहर आने के बाद गतिविधि और भी तेज हुई है. चर्चा यह भी है कि लालू प्रसाद यादव, जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी से लगातार संपर्क में हैं

बिहार में आरजेडी विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी है और महागठबंधन 110 सीट लाकर मजबूत स्थिति में है. ऐसे तो बहुमत एनडीए के पास है और अभी 127 सीट है. लेकिन जीतन राम मांझी के चार और मुकेश सहनी के चार सीट यानी कुल 8 सीट बिहार में नया खेला कर सकता है.

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ईटीवी भारत के सवाल
बिहार में जिस तरह के राजनीतिक हालात बने हुए हैं उससे साफ जाहिर है कि फिलहाल एनडीए के अंदर सबकुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है. ऐसे में ईटीवी भारत ने कुछ अहम सवाल उठाए हैं. जिसका जवाब शायद किसी के पास नहीं है. सबसे बड़ा सवाल ये कि क्या यूपी की पॉलिटिक्स में बिहार जरिया बन गया है.

दूसरा सवाल ये कि क्या मांझी-सहनी बिहार में प्रेशर डालकर यूपी में एंट्री करना चाहते हैं. एक और अहम सवाल है कि आखिर किसके इशारे पर मांझी-सहनी के सुर बदले हुए हैं. ये भी पूछा जा रहा है कि यूपी चुनाव से पहले क्या हम और वीआईपी पाला बदलेंगे. क्या बीजेपी के सामाजिक समीकरण में सेंध की कोशिश की जा रही है.

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