नई दिल्ली: अडाणी मुद्दे पर संसद में एकजुट विपक्ष लगातार हंगामा कर रहा है, वहीं राजनीतिक पंडितों की राय है कि ऐसी एकता केवल मौकी की नजाकत है. यहां तक कि प्रमुख विपक्षी दलों के कुछ नेताओं ने भी ईटीवी भारत से बात करते हुए चल रहे हंगामे को संसद में केवल 'विपक्ष के बीच अस्थायी एकता' करार दिया.
दरअसल विपक्षी नेता अगले साल होने वाले आम चुनाव से पहले अपनी एकता को लेकर आश्वस्त नहीं हैं. राजनीतिक विश्लेषक सिकंदर रिजवी (political analyst Sikandar Rizvi) का कहना है कि 'यह निश्चित रूप से मैरिज ऑफ़ कॉन्वेनिएंस है. आगामी लोकसभा चुनाव से पहले कोई भी विपक्षी दल एकजुट नहीं रहेगा. कई मौकों पर हमने कुछ समय के लिए ऐसी एकता देखी है, लेकिन आखिरकार यह टूट जाती है.'
यह कहते हुए कि विपक्षी दल अपना प्रचार कर रहे हैं, रिजवी ने कहा कि वे चुनाव से पहले जनता का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि विकास के मुद्दे, कनेक्टिविटी के साथ अंतिम मील तक पहुंचना और विकास की पहल प्रमुख कारक हैं जिन्होंने विपक्ष को चिंतित किया है.
हालांकि, विपक्षी नेताओं का एक वर्ग सदन की कार्यवाही में व्यवधान का समर्थन कर रहा है, जब तक कि सरकार अडाणी विवाद पर एक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की जांच नहीं करती है. कुछ नेताओं को लगता है कि राष्ट्रपति के भाषण और बजट पर चर्चा होनी चाहिए जहां वे कई मुद्दों पर राय रख सकते हैं.
तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के सांसद कल्याण बनर्जी ने इस संवाददाता से कहा, 'फिलहाल चर्चा की कोई गुंजाइश नहीं है. हालांकि, नियम के अनुसार राष्ट्रपति के भाषण और बजट पर चर्चा होनी चाहिए. यदि चर्चा होती है तो हम अडाणी सहित कई मुद्दों पर अपनी राय रख सकते हैं इसलिए, जब भी कोई चर्चा होगी, हम भाग लेंगे.'