वैशाली:अंतिम संस्कार के लिए 3000 हजार रुपए मिले लेकिन 15 सौ रुपए नहीं होने के कारण महिला एंबुलेंस से इलाज के लिए नहीं जा सकी. सरकार गांव-गांव तक लोगों को मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा महैया कराने का दावा करती है. पर, इस दावे का सच यह है कि बिहार के वैशाली जिले में एक गर्भवती महिला की इलाज के अभाव में मौत हो गयी. अपने आखिरी क्षणों में वह महिला प्रसव पीड़ा से तड़पती रही. उसके जिंदा रहते मदद के लिए ना तो लोग आगे आए और ना ही सरकार. (Pregnant woman died In Vaishali) (Bad Health Facilities In Bihar)
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प्रसव पीड़ा से तड़प-तड़पकर महिला की मौत: महज 1500 रुपये के लिए प्रसव पीड़ा से उस महिला की जान चली गई. हद तो यह है कि मरने के बाद भी उसके परिजनों को शव ले जाने के लिए एम्बुलेंस नहीं मिला. जिस कारण ऑटो से शव को घर ले जाना पड़ा. इंसानियत और मानवता को शर्मसार करने वाली यह घटना वैशाली के लालगंज थाना क्षेत्र के वार्ड नंबर 23 की है. जहां जगन्नाथ राम की बेटी रंजू को संवेदनहीन समाज की संवेदनहीनता का खामियाजा जान देकर चुकानी पड़ी.
दर्द से तड़पती महिला रात भर भटकती रही: दरअसल, बीते रात रंजू को अचानक प्रसव पीड़ा उठा और उसकी तबीयत बिगड़ने लगी. उसके परिजन सबसे पहले उस महिला चिकित्सक के पास गए. जहां पहले से उसका इलाज चल रहा था. लेकिन वहां की महिला चिकित्सक और उसके कर्मियों ने इलाज करने से इंकार करते हुए वहां से भगा दिया.
गरीबी और अशिक्षा की मार झेल रहा परिवार अपनी बेटी को लेकर रात भर इलाज के लिए निजी क्लिनिक भटकता रहा. वे कई निजी अस्पताल के चक्कर काटते रहे, मगर किसी ने दर्द से तड़पती महिला पर दया नहीं दिखाई. काफी गुजारिश करने के बाद एक निजी अस्पताल ने उसे भर्ती किया. मगर वहां भी समुचित इलाज नहीं मिल पाया और आखिरकार उसकी जान चली गयी.
"रात में इनकी तबीयत ज्यादा खराब हो गई. जिसके बाद डॉक्टर के यहां गए. डॉक्टर ने क्या कहा, यह सब पता बाद में चला. हमको इन सब बातों की जानकारी पहले नहीं थी. यह पता ही नहीं चलता कि तबीयत खराब है. इनके गुजरने के बाद हमको पता चला है"-देवेंद्र राम, विकास मित्र.
महज 15 सौ रुपये के लिए गयी जान: इससे पहले की कहानी और भयानक है. प्रसव पीड़ा उठने के बाद एम्बुलेंस को कॉल किया गया. मौके पर एम्बुलेंस भी पहुंचा लेकिन तेल डलवाने के 15 सौ रुपए नहीं थे. ऐसे में एम्बुलेंस चालक पीड़िता को वही दर्द में तड़पता छोड़कर चला गया. जिसके बाद पीड़िता का परिवार निजी अस्पताल में इलाज कराने के लिए भटकता रहा. लेकिन समय पर इलाज नहीं मिल पाने के कारण उसकी मौत हो गयी. मृतका की दर्द भरी दास्तान अभी खत्म नहीं होती. मौत के बाद उसके शव को घर लाने के लिए जब एम्बुलेंस की तलाश की गई. फिर से पैसा के अभाव में एम्बुलेंस नहीं मिला और शव को ऑटो से ले जाना पड़ा.
"जहां इलाज चल रहा था, वहां पर लेकर के गए हैं. कंपाउंडर को बोले कि दम फूलने वाला इंजेक्शन दे दीजिए तो वहां से डांट करके बोला कि यहां से उठो, यहां से जाओ. एक और डॉक्टर के पास गए वहां भी कुछ नहीं हुआ. दो-तीन डॉक्टरों के यहां से होने के बाद रेपुरा में एक डॉक्टर को दिखाएं तब तक उनकी हालत खराब हो गई थी. वहां पर 5 सौ रुपया ले लिए और बोले कि एंबुलेंस में तेल डालने के लिए 15 सौ रुपए दो. बोले कि पैसा नही है तो एंबुलेंस से उतार दिया"- ललिता देवी, मृतका की भाभी.
अंतिम संस्कार के लिए मिले 3 हजार रुपये:घटना की जानकारी मिलने पर लालगंज नगर पंचायत के पूर्व अध्यक्ष समेत कई प्रतिनिधि महिला के घर पहुंचे. पूर्व अध्यक्ष नवीन कुमार ने महिला के अंतिम संस्कार के लिए 3000 रुपये की राशि दी. जिसके बाद उसका अंतिम संस्कार किया गया. मृतका के चार अबोध बच्चे हैं. उसका पति कर्नाटक रहकर मजदूरी करता है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल है कि रंजू की मौत के बाद जो मदद अब उसके परिवार को मिल रहा है वह पैसा किस काम का. एक सवाल यह भी है कि जब पंचायत से लेकर गांव-गांव तक सरकारी तंत्र से जुड़े लोग है, तो समय पर मदद क्यों नहीं मिलती.
"यहां के स्थानीय विकास मित्र देवेंद्र राम से बात हुई, तब पता चला कि जगरनाथ राम की बच्ची यहां आई हुई थी. कल रात में लालगंज लेकर के गया जितने भी निजी क्लीनिक है, किसी ने भी इलाज नहीं किया. अंत में एंबुलेंस वाला तैयार हुआ लेकिन इनके पास पैसा नहीं था. तेल डलवाने के लिए रुपए मांगा था, पैसे नहीं होने से वह भी लेकर नहीं गया और उसकी मौत हो गई. ये लोग ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं है. लोगों को जानकारी नहीं थी कि 102 पर फोन करके एम्बुलेंस बुलाना है"-नवीन कुमार, पूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष, लालगंज.