नई दिल्ली : चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कांग्रेस के प्रस्ताव को ठुकराने के बाद सोमवार सुबह एक ट्वीट से एक बार फिर देश के राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का बाजार गर्म कर दिया है. इस ट्वीट में उन्होंने संकेत दिए कि वह सक्रिय राजनीति में प्रवेश कर सकते हैं और इसकी शुरुआत वह बिहार से करेंगे. हालांकि अपने ट्वीट में उन्होंने ऐसी कोई बात नहीं कही कि वह राजनीतिक पार्टी लॉन्च करने जा रहे हैं लेकिन राजनीतिक पंडितों की मानें तो वह जन्मभूमि बिहार से ही पार्टी की शुरुआत कर सक्रिय राजनीति में प्रवेश करेंगे. सबसे पहली चुनौती वह सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने ही रखने वाले हैं.
बता दें कि प्रशांत किशोर एक समय में नीतीश के बेहद करीबी माने जाते थे. 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में उन्होंने न केवल नीतीश के लिए काम किया बल्कि आगे चल कर पार्टी में भी शामिल हुए. जद(यू) ने बाकायदा उनके लिए विशेष रूप से उपाध्यक्ष का पद बनाया. लेकिन उसके बाद उनके और नीतीश कुमार के संबंधों में खटास की खबरें आईं और अंततः पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में प्रशांत किशोर को जद (यू) ने पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया. हालांकि तब तक प्रशांत किशोर खुद पार्टी से दूरी बना चुके थे लेकिन अब जब प्रशांत किशोर ने अपनी पार्टी के साथ राजनीति में प्रवेश की ओर इशारा किया है तब एक बार फिर जद (यू) की चिंता बढ़ना लाज़मी है.
हालांकि जद (यू) नेता केसी त्यागी (jdu leader KC Tyagi) का कहना है कि बिहार में नीतीश और एनडीए के सुशासन का कोई अन्य विकल्प नहीं है और जनता को इसकी जरूरत भी नहीं है. 'ईटीवी भारत' से बातचीत करते हुए पार्टी के प्रधान महासचिव और राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कहा है कि प्रशांत किशोर का यह प्रयास सफल नहीं होगा. उनका कहना है कि चुनाव रणनीतिकार होना अलग बात है और सक्रिय राजनीति में आकर जनता का नेता बनना अलग बात. किसी को भी राजनीतिक पार्टी बनाने का लोकतांत्रिक अधिकार है. केसी त्यागी ने कहा कि एनडीए को 2005 में अटल, आडवाणी और जॉर्ज फ़र्नान्डिस ने लॉन्च किया था, नीतीश कुमार के नेतृत्व में उस समय जब बिहार में अंधेरा था, मिस-गवर्नेंस था, मिस-मैनेजमेंट था, डेवलपमेंट की कैजुअल्टी थी उसके बाद एनडीए ने नीतीश कुमार के नेतृत्व में तमाम विकास कार्य किए हैं. आज बिहार की जीडीपी का औसत राष्ट्रीय औसत से भी ज्यादा है. नीतीश कुमार एक बेदाग छवि के नेता हैं, वह गुड गवर्नेंस के लिए जाने जाते हैं. इस तरह से बिहार में किसी और क्षेत्रीय राजनीतिक दल की फिलहाल जरूरत नहीं जो नीतीश कुमार की जगह ले सके.