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Coal Crisis: कोयला आयात को लेकर राज्यों को केंद्र की एडवाइजरी पर उठे सवाल - AIPEF Chairman coal crisis

केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने बीत दिनों राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को बिजली की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए कोयला आयात करने का सुझाव दिया था. अब ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (AIPEF) ने इस पर सवाल उठाया. ईटीवी भारत संवादताता गौतम देबरॉय की रिपोर्ट...

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बिजली संकट कोयला आयात

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Published : May 5, 2022, 5:56 PM IST

नई दिल्ली :ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (AIPEF) ने ऊर्जा मंत्रालय के राज्य सरकारों के बिजली उत्पादन संयंत्रों और निजी क्षेत्र की बिजली कंपनियों को कोयला संकट से बचने के लिए कोयला आयात करने के निर्देश जारी करने पर गंभीर सवाल उठाया है. AIPEF केंद्र और राज्य सरकारों के बिजली कर्मियों का एक संगठन है. फेडरेशन ने सवाल किया कि अगर कोयला आयात करना ही समस्या का समाधान है तो आज के बिजली संकट में आयातित कोयले पर चलने वाले निजी कंपनियों के बड़े पावर प्लांट क्यों बंद हैं.

AIPEF का कहना है कि जब अभी घरेलू कोयले को बिजली संयंत्रों तक पहुंचाने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं हो पाई है, ऐसे में मंत्रालय का यह स्पष्ट करना चाहिए कि आयातित कोयला बंदरगाहों से थर्मल पावर प्लांट्स तक कैसे पहुंचेगा. बता दें, ऊर्जा मंत्रालय ने हाल ही में राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को लिखे एक पत्र में कहा था कि राज्यों में थर्मल पावर प्लांट्स के लिए 22.049 मिलियन टन और निजी बिजली क्षेत्र के ऊर्जा संयंत्रों को 15.936 मिलियन टन कोयला आयात करना चाहिए.

AIPEF के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा, 'एक ओर केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय राज्य सरकारों के थर्मल पावर प्लांट्स पर कोयला आयात करने का दबाव बना रहा है. दूसरी ओर, गुजरात के मुंद्रा में अडाणी के 4600 मेगावाट के थर्मल पावर प्लांट और टाटा के 4000 मेगावाट के थर्मल पावर प्लांट तथा कर्नाटक में अडाणी के 1200 मेगावाट के उडिपी थर्मल पावर प्लांट को उक्त पत्र में कोई निर्देश नहीं दिया गया है, जबकि ये प्लांट आयातित कोयले से चलते हैं. ऊर्जा मंत्रालय के पत्र में इन पावर प्लांट्स के नाम का भी जिक्र नहीं है, जबकि ये पावर प्लांट्स समुद्र के तट के पास हैं, उनके लिए आयातित कोयला प्राप्त करना आसान है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में आयातित कोयले की कीमत बढ़ने के बाद इन पावर प्लांट्स को बंद कर दिया गया है.'

उन्होंने कहा कि अडाणी पावर का हरियाणा के साथ 25 साल के लिए 1424 मेगावाट बिजली देने का समझौता है, लेकिन अडाणी पावर ने पिछले साल अगस्त से हरियाणा को बिजली देना बंद कर दिया है. पिछले साल की तुलना में कोल इंडिया के 15.6 प्रतिशत अधिक कोयले का उत्पादन करने के दावे का जिक्र करते हुए दुबे ने कहा कि रेलवे रेक की कमी के कारण यह उत्पादित कोयला थर्मल पावर प्लांट्स तक नहीं पहुंच रहा है. उन्होंने कहा, 'देशभर में यात्री ट्रेनें रद्द की जा रही हैं, फिर भी कोयला नहीं पहुंच रहा है. ऐसे में अगर कोयला आयात भी किया जाता है, तो आयातित कोयला बंदरगाहों पर आ जाएगा और बंदरगाहों से रेलवे रैक के अभाव में थर्मल पावर प्लांट्स तक कोयला कैसे पहुंचेगा यह एक बड़ा सवाल है.'

'देश में कोयला संकट बहुत गंभीर'
ऊर्जा मंत्रालय द्वारा जारी निर्देश के अनुसार, सभी थर्मल पावर प्लांट्स को 31 मई, 2022 तक आयातित कोयले की खरीद के ऑर्डर जारी करने होंगे और 30 जून 2022 तक 50 प्रतिशत डिलीवरी, 31 अगस्त 2022 तक 40 प्रतिशत और शेष 10 प्रतिशत डिलीवरी 31 अक्टूबर 2022 तक सुनिश्चित किया जाना है. दुबे ने कहा, 'मंत्रालय के निर्देशों से यह स्पष्ट है कि कोयला संकट बहुत गंभीर है और यह अभी कई महीनों तक जारी है.' उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत निगम के अनपरा थर्मल पावर प्लांट को 8,53,000 टन तथा ओबरा, हरदुआगंज एवं परीछा थर्मल पावर प्लांट्स को 12,86,000 टन कोयला आयात करने का लक्ष्य दिया गया है.

बिजली उत्पादन क्षमता में इजाफा कर रहा भारत
इस बीच, वर्ष 2016-17 से 2026-27 के लिए बिजली की मांग के अनुमान के साथ-साथ प्रत्येक राज्य के लिए वर्ष 2031-32 से 2036-37 के लिए बिजली की मांग के अनुमान को कवर करने वाली 19वीं इलेक्ट्रिक पावर सर्वे (ईपीएस) रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत अपनी बिजली उत्पादन क्षमता में इजाफा कर रहा है. केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, अखिल भारतीय स्थापित क्षमता (All India installed capacity) 28 फरवरी, 2022 को 3,95,607.86 मेगावाट की वर्तमान स्थापित क्षमता से बढ़कर 31 मार्च, 2030 तक 8,17,254 मेगावाट होने की संभावना है, जो 2030 तक बिजली की मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त होगा.

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इस वर्ष 28 फरवरी की स्थिति के अनुसार, देश में कुल लगभग 252.899 गीगावाट (GW) अक्षय ऊर्जा क्षमता (बड़े जलविद्युत सहित) स्थापित की जा चुकी है. गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित उत्पादन क्षमता (नवीकरणीय ऊर्जा सहित) वर्ष 2030 तक लगभग 500 मेगावाट होने की उम्मीद है.

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