नई दिल्ली :ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (AIPEF) ने ऊर्जा मंत्रालय के राज्य सरकारों के बिजली उत्पादन संयंत्रों और निजी क्षेत्र की बिजली कंपनियों को कोयला संकट से बचने के लिए कोयला आयात करने के निर्देश जारी करने पर गंभीर सवाल उठाया है. AIPEF केंद्र और राज्य सरकारों के बिजली कर्मियों का एक संगठन है. फेडरेशन ने सवाल किया कि अगर कोयला आयात करना ही समस्या का समाधान है तो आज के बिजली संकट में आयातित कोयले पर चलने वाले निजी कंपनियों के बड़े पावर प्लांट क्यों बंद हैं.
AIPEF का कहना है कि जब अभी घरेलू कोयले को बिजली संयंत्रों तक पहुंचाने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं हो पाई है, ऐसे में मंत्रालय का यह स्पष्ट करना चाहिए कि आयातित कोयला बंदरगाहों से थर्मल पावर प्लांट्स तक कैसे पहुंचेगा. बता दें, ऊर्जा मंत्रालय ने हाल ही में राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को लिखे एक पत्र में कहा था कि राज्यों में थर्मल पावर प्लांट्स के लिए 22.049 मिलियन टन और निजी बिजली क्षेत्र के ऊर्जा संयंत्रों को 15.936 मिलियन टन कोयला आयात करना चाहिए.
AIPEF के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा, 'एक ओर केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय राज्य सरकारों के थर्मल पावर प्लांट्स पर कोयला आयात करने का दबाव बना रहा है. दूसरी ओर, गुजरात के मुंद्रा में अडाणी के 4600 मेगावाट के थर्मल पावर प्लांट और टाटा के 4000 मेगावाट के थर्मल पावर प्लांट तथा कर्नाटक में अडाणी के 1200 मेगावाट के उडिपी थर्मल पावर प्लांट को उक्त पत्र में कोई निर्देश नहीं दिया गया है, जबकि ये प्लांट आयातित कोयले से चलते हैं. ऊर्जा मंत्रालय के पत्र में इन पावर प्लांट्स के नाम का भी जिक्र नहीं है, जबकि ये पावर प्लांट्स समुद्र के तट के पास हैं, उनके लिए आयातित कोयला प्राप्त करना आसान है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में आयातित कोयले की कीमत बढ़ने के बाद इन पावर प्लांट्स को बंद कर दिया गया है.'
उन्होंने कहा कि अडाणी पावर का हरियाणा के साथ 25 साल के लिए 1424 मेगावाट बिजली देने का समझौता है, लेकिन अडाणी पावर ने पिछले साल अगस्त से हरियाणा को बिजली देना बंद कर दिया है. पिछले साल की तुलना में कोल इंडिया के 15.6 प्रतिशत अधिक कोयले का उत्पादन करने के दावे का जिक्र करते हुए दुबे ने कहा कि रेलवे रेक की कमी के कारण यह उत्पादित कोयला थर्मल पावर प्लांट्स तक नहीं पहुंच रहा है. उन्होंने कहा, 'देशभर में यात्री ट्रेनें रद्द की जा रही हैं, फिर भी कोयला नहीं पहुंच रहा है. ऐसे में अगर कोयला आयात भी किया जाता है, तो आयातित कोयला बंदरगाहों पर आ जाएगा और बंदरगाहों से रेलवे रैक के अभाव में थर्मल पावर प्लांट्स तक कोयला कैसे पहुंचेगा यह एक बड़ा सवाल है.'