देहरादून: यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे युद्ध (RUSSIA UKRAINE WAR) ने वैश्विक बाजारों को अस्त-व्यस्त कर दिया है. ये जंग भले ही 2 देशों के बीच हो, लेकिन इसका व्यापक असर दुनियाभर पर पड़ रहा है. भारत भी इसके असर से अछूता नहीं है. हालात ये हैं कि देश के छोटे से राज्य उत्तराखंड को भी इस अंतरराष्ट्रीय समस्या का सामना करना पड़ रहा है. प्रदेश के लाखों घर अंधेरे में डूबने की तरफ बढ़ रहे हैं. संकट ऊर्जा का है. लिहाजा कोई भी विकल्प ढूंढने से भी नहीं मिल रहा है.
उत्तराखंड में बिजली संकट: उत्तराखंड के सामने एक बड़ा बिजली संकट खड़ा हो गया है. राज्य में फिलहाल इसकी चर्चाएं कुछ खास नहीं हैं, लेकिन ऊर्जा निगम से जुड़े अधिकारी बताते हैं कि हकीकत में राज्य कितनी बड़ी समस्या से गुजर रहा है. स्थिति यह है कि तमाम कोशिशों के बावजूद भी प्रदेश में 3 घंटे की बिजली कटौती शुरू कर दी गई है. वैसे तो राज्य में गढ़वाल और कुमाऊं के सभी क्षेत्रों में बिजली कटौती को बराबर किया जा रहा है, लेकिन सबसे ज्यादा कटौती ग्रामीण क्षेत्रों में ही देखने को मिल रही है. राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो उत्तराखंड में यह बिजली कटौती कुछ खास नहीं है, लेकिन ऊर्जा प्रदेश के नाते राज्य के लिए यह खतरे की घंटी है. अब जानिए कि मौजूदा ऊर्जा संकट को हम क्यों बड़ा खतरा कह रहे हैं.
2200 मेगावाट हर दिन है खपत:दरअसल, उत्तराखंड इस समय बिजली की मांग अचानक बढ़ने और आपूर्ति पूरी न होने की समस्या से जूझ रहा है. प्रदेश में करीब 2200 मेगावाट बिजली की हर दिन जरूरत पड़ रही है. इसके सापेक्ष राज्य को करीब 1900 मेगावाट बिजली की ही आपूर्ति हो पा रही है. वैसे बिजली की जरूरत और आपूर्ति हर दिन बदलती रहती है, लेकिन औसतन देखें तो करीब 300 मेगावाट हर दिन बिजली कम पड़ रही है. राज्य में फिलहाल 538 मेगावाट बिजली का हर दिन उत्पादन हो रहा है, जबकि केंद्रीय पूल से करीब 1400 मेगावाट बिजली मिल रही है.