नई दिल्ली :सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कानून प्रवर्तन एजेंसी में नियुक्ति चाहने वाले किसी भी व्यक्ति पर लागू होने वाले सत्यनिष्ठा के मानक हमेशा उच्च और अधिक कठोर होने चाहिए, क्योंकि पुलिस सेवा जैसे संवेदनशील पद पर नियुक्ति के लिए उच्च नैतिक आचरण बुनियादी आवश्यकताओं में से एक है .
शीर्ष अदालत ने मामले में बरी होने के बावजूद पॉस्को-आरोपी को पुलिस कांस्टेबल के रूप में नियुक्त नहीं करने के मध्य प्रदेश पुलिस के फैसले को बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की (SC on POCSO accused constable appointment).
न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने कहा कि प्रतिवादी पर गंभीर प्रकृति के गैर-शमनीय अपराधों का आरोप लगाया गया था. कोर्ट ने कहा कि 'हमारा दृढ़ मत है कि ट्रायल कोर्ट के फैसले को साफ-सुथरा बरी नहीं माना जा सकता.'
पीठ ने कहा कि यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉस्को) अधिनियम में बरी किए जाने वाले मामले को तब साफ-सुथरा नहीं कहा जा सकता जब मुकदमे में गवाह मुकर गए हों और शिकायतकर्ता पुलिस को दिए गए बयान से मुकर गया हो. प्रतिवादी के साथ हुए समझौते की स्थिति हो.
शीर्ष अदालत ने कहा कि बताए गए तथ्यों से यह स्पष्ट है कि आरोप पत्र दायर होने के बाद, प्रतिवादी ने शिकायतकर्ता के साथ समझौता कर लिया था और सीआरपीसी की धारा 320 के तहत एक आवेदन दायर किया था, जिसके आधार पर आईपीसी की धारा 341 के तहत अपराध दर्ज किया गया. इसमें आगे कहा गया है कि शेष अपराध जिनके लिए प्रतिवादी पर आरोप लगाया गया था, यानी आईपीसी की धारा 354 (डी) और POCSO अधिनियम की धारा 11 (डी)/12, गैर-शमनयोग्य थे और इसलिए, मामले को सुनवाई के लिए ले जाया गया.
पीठ ने कहा कि प्रतिवादी को ट्रायल कोर्ट द्वारा मुख्य रूप से इस तथ्य के कारण बरी कर दिया गया था कि शिकायतकर्ता ने अभियोजन द्वारा स्थापित मामले का समर्थन नहीं किया था और अभियोजन पक्ष के अन्य गवाह मुकर गए थे. कहा गया कि 'ऐसी परिस्थितियों में प्रतिवादी की यह दलील कि उसे आपराधिक मामले में निर्दोष बरी कर दिया गया है, योग्यता से रहित पाई जाती है.'
प्रतिवादी ने कांस्टेबल के पद के लिए आवेदन करते समय उस आपराधिक मामले का स्पष्ट खुलासा किया है, जिसकी परिणति बरी होने के रूप में हुई थी. मध्य प्रदेश पुलिस ने आरोपी को नियुक्ति के लिए अयोग्य माना था, भले ही उसके खिलाफ दायर POCSO मामले में उसे बरी कर दिया गया था.
शीर्ष अदालत ने 20 सितंबर को पारित अपने फैसले में कहा, 'इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि मामले में नैतिक अधमता शामिल थी और प्रतिवादी पर गंभीर प्रकृति के गैर-शमनयोग्य अपराधों का आरोप लगाया गया था, हमारा दृढ़ विचार है कि ट्रायल कोर्ट के फैसले को निर्दोष बरी के रूप में नहीं माना जा सकता है.'