रायपुर: छत्तीसगढ़ सरकार पर कर्ज का भार 84 हजार करोड़ से अधिक हो गया है. यह राज्य के कुल बजट का करीब 87 फीसद है. साढ़े तीन वर्ष पहले जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी, तब राज्य का कुल कर्जभार 41 हजार करोड़ था. वर्तमान में कर्ज के बदले में सरकार को हर माह करीब 400 करोड़ रुपये ब्याज देना पड़ रहा है. इस कर्ज का सरकार की सेहत पर क्या प्रभाव पड़ रहा है? प्रदेश की अर्थव्यवस्था इससे किस तरह प्रभावित है? कर्ज लेने की राज्यों की क्या सीमा है? अब तक कितना कर्ज छत्तीसगढ़ ले चुका है? इसे चुकाने के क्या उपाय हैं? यह कर्ज प्रदेश के लिए कितना घातक साबित हो सकता है? ऐसे कई सवाल प्रदेश की जनता के जेहन में घूम रहे हैं.
छत्तीसगढ़ सरकार पर बढ़ते कर्ज पर सियासत बढ़ रहा ब्याज का भार:प्रदेश सरकार ने बीते साढ़े तीन वर्षों में 51 हजार करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज लिया है. कर्ज के साथ राज्य पर ब्याज भार भी बढ़ रहा है. इस वक्त राज्य सरकार हर माह 400 करोड़ रुपये से ज्यादा ब्याज का भुगतान कर रही है. 2020 में यह राशि करीब 360 करोड़ रुपये थी. आंकड़ों के अनुसार दिसंबर 2018 से मार्च 19 तक सरकार ने 1771.94 करोड़ रुपये ब्याज जमा किया. अप्रैल 19 से मार्च 20 तक 4970.34 करोड़, अप्रैल 20 से मार्च 21 तक 5633.11 करोड़ और अप्रैल 21 से जनवरी 22 तक 3659.54 करोड़ रुपये ब्याज जमा कर चुकी है.
भाजपा शासित राज्यों की तुलना में कर्ज कम:हालांकि प्रदेश सरकार का कर्जभार भाजपा शासित राज्यों की तुलना में कम है. मार्च 2022 में हुए विधानसभा के बजट सत्र के दौरान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बताया था कि उत्तर प्रदेश का कर्जभार 92 प्रतिशत है. गुजरात 146, मध्य प्रदेश 125, हरियाणा 180 और कर्नाटक का कर्जभार 126 प्रतिशत है. कुछ समय पूर्व सीएम बघेल ने देश के दिवालियापन की ओर बढ़ने का बयान दिया था. उसके बाद विवाद शुरू हो गया था. भाजपा ने पलटवार कर प्रदेश सरकार के कर्ज के आंकड़े जारी किए थे. कांग्रेस ने भी इसका जवाब आकड़ों से दिया था.
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पहले से 2 गुना हो चुका है कर्ज: अर्थशास्त्री प्रोफेसर तपेश गुप्ता भी मानते हैं कि "जिस तेजी से प्रदेश कर्ज में डूबता जा रहा है. यह भविष्य के लिए उचित नहीं है. आगे इसके दुष्परिणाम भी भुगतने पड़ सकते हैं. सामाजिक कार्य किए जाने के बाद भी हमें वर्तमान में अन्य सामाजिक कार्य संचालित किए जाने की आवश्यकता थी. इसे ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने अपनी ओर से कुछ योजनाओं को पूर्ण करने के लिए कर्ज लिया है. पहले 41 हजार करोड़ का कर्ज लिया था. अब वह लगभग 84 हजार करोड़ का हो गया है, यानी यह कर्ज दोगुना से ज्यादा हो गया है. इसका निश्चित तौर पर नकारात्मक प्रभाव अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा. हमारे बजट का लगभग 85 से 87 फीसद भाग कर्ज का है. इस पर हमें ब्याज सहित मूलधन लौटाने के लिए प्रतिवर्ष लगभग 8 हजार करोड़ रुपए चाहिए."
अब धन उपार्जन के लिए भी सरकार को करना होगा काम:प्रोफेसर तपेश गुप्ता ने कहा कि "सरकार समाज कल्याण के अलावा पूंजीगत निवेश जारी रखें. निर्माण कार्य जारी रखे, जिससे सरकार को आय प्राप्त हो और इससे कर्ज की पूर्ति की जा सके. आज प्रदेश में रोजगार की स्थिति सफल है. उस स्थिति पर राज्य सरकार को चाहिए कि विकास निर्माण और पूंजी निवेश संबंधी काम करे, जिससे हम कुछ धन उपार्जन कर सकें."
जीएसटी सहित अन्य राशि मिल रही समय पर:प्रोफेसर तपेश गुप्ता ने कहा कि "जीएसटी की राशि समय पर देने का निर्णय हुआ है. आज रेत गिट्टी पर जीएसटी लिया जा रहा है. श्मशान घाट में बनने वाले रेत गिट्टी पर भी जीएसटी लगाया जा रहा है. इसके लिए केंद्र और राज्य नहीं बल्कि, जो जीएसटी समिति से अप्रूव कर रही है, वह जिम्मेदार है. जीएसटी की राशि राज्य सरकार को समय पर मिल रही है. आयकर की राशि भी समय पर मिल रही है. अब पहले जैसी स्थिति जीएसटी को लेकर नहीं है."
क्या फील्ड पर जाकर सीएम बघेल करेंगे काम:प्रोफेसर तपेश गुप्ता ने कहा कि "नरवा गरवा घुरवा बारी एक अद्भुत योजना लाई गई है. यह पर्यावरण के साथ अर्थव्यवस्था की पूरी बुनियाद को सदृढ़ कर देगी. लेकिन अकेले क्या मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, जिन्होंने योजना बनाई है वो फील्ड पर जाकर काम करेंगे? उनके द्वारा बनाई गई योजनाओं को साकार करने का काम अधिकारियों और कर्मचारियों को दिया गया है. लेकिन वह कार, मोटरसाइकिल में घूम रहे हैं. वे योजना के मूल बिंदु तक नहीं पहुंच रहे हैं. गौठान खोले जाने और रोका छेका के बाद भी आज गाय सड़कों पर घूम रही है, खेतों में जा रही हैं. सरकार अकेले कुछ नहीं कर सकती. इसके लिए जनता का सहयोग और अधिकारियों कर्मचारियों का दायित्व महत्वपूर्ण होता है.
कर्ज लेकर घी पी रही बघेल सरकार: छत्तीसगढ़ पर लगातार बढ़ रहे कर्ज को लेकर पूर्व मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ विधायक बृजमोहन अग्रवाल ने राज्य की भूपेश सरकार पर तंज कसा है. बृजमोहन अग्रवाल का कहना है कि ''ये सरकार कर्ज लेकर घी पी रही है. जितना ज्यादा यह सरकार कर्ज लेगी, उतना ज्यादा ठेका टेंडर किए जाएंगे. उतनी ज्यादा इनकी जेब गर्म होगी. आप तो साढ़े 3 साल में सिर्फ 51 हजार करोड़ कर्ज की बात कर रहे हैं, जबकि बीजेपी ने 15 साल में महज 36 हजार करोड़ कर्ज लिया. यदि पब्लिक अंडरटेकिंग का कर्जा देखा जाए तो एक लाख 39 हजार करोड़ का कर्ज है. जितना छत्तीसगढ़ का बजट है, उसका दुगना यह सरकार कर्ज ले चुकी है.''
श्रीलंका जैसे हो सकते हैं हालात:कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम का कहना है कि "भारतीय जनता पार्टी को अपने आपको देखना चाहिए. केंद्र में बैठी भाजपा की मोदी सरकार लगातार कर्ज ले रही है. आज ऐसी स्थिति आ गई है कि पड़ोसी देश श्रीलंका के राष्ट्रपति झोला लेकर भाग गए हैं. भाजपा की मोदी सरकार की स्थिति भी वही निर्मित हो रही है." मरकाम ने यह भी कहा कि "यदि छत्तीसगढ़ की बात की जाए तो सत्ता पर काबिज होने के बाद हमको विरासत में 42 हजार करोड़ कर्ज के रूप में मिला था. उसी कर्ज का ब्याज पटाने के लिए हमें लगभग 10 हजार करोड़ ब्याज लग रहा है. हमारे द्वारा किसानों की भलाई, छत्तीसगढ़ के विकास और उन्नति के लिए कर्ज लिया गया है. हमारी सरकार छत्तीसगढ़ की प्रगति के लिए कर्ज ले रही है. ऐसे में भाजपा के नेताओं को पेट में दर्द नहीं होना चाहिए."