हरिद्वार :उत्तराखंड में अगले कुछ महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. बीजेपी अपनी सत्ता को बरकरार रखने की जद्दोजहद कर रही है. वहीं, विपक्षी दलों ने धामी सरकार को सत्ता से बेदखल करने के लिए मोर्चा खोल दिया है. इन सबके बीच उत्तराखंड सहित अन्य पांच राज्यों के चुनाव अभियानों में साफ दिख रहा है कि ज्यादातर दलों और नेताओं को अब मंच से हिंदुत्व की बात करने से परहेज नहीं कर रहे हैं. आज हम आपको हिंदुत्व की अवधारणा के बारे में बताएंगे, आखिर ये शब्द पहली बार किसने इस्तेमाल किया, इस शब्द को लेकर विवाद क्यों जुड़े हैं. लेकिन, उससे पहले जानिए यह शब्द आखिर चर्चा में क्यों आया.
सलमान खुर्शीद की किताब पर बवाल
पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद (Former Union Minister Salman Khurshid) की किताब 'सनराइज ओवर अयोध्या' (Sunrise Over Ayodhya) को लेकर बवाल मचा हुआ है. दरअसल खुर्शीद ने इस किताब में हिंदुत्व की तुलना आतंकी संगठन ISIS और बोको हरम से की है. खुर्शीद की टिप्पणी के बाद उनके सर्मथन में कांग्रेस के कई नेता उतर आए हैं, यहां तक कि खुद कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हिंदू और हिंदुत्व पर टिप्पणी करके इस मुद्दे को हवा दे दी है. राहुल गांधी के इस बयान के बाद राजनीति गर्मा गई है. साथ ही राहुल गांधी भाजपा के निशाने पर आ गए हैं. जिसमें लोग अब हिंदू और हिंदुत्व को अपने-अपने तरीके से परिभाषित करते नजर आ रहे हैं.
हिंदुत्व की राजनीति तेज
2014 के बाद से भारत की राजनीति में बड़ा बदलाव देखा जा रहा है. जिसके बाद से यह लगभग तय हो गया है कि देश की सभी राजनीतिक पार्टियों को अपनी चुनावी राजनीति हिंदुत्व के धरातल पर ही करनी होगी. संघ हमेशा से ही भारत के हिंदु राष्ट्र की छवि को लेकर मुखर रहा है.
वहीं, आज हालात ऐसे बन चुके हैं कि स्वाधीनता आंदोलन की विरासत का दावा करने वाली पार्टी कांग्रेस को धर्मनिरपेक्षता की जगह हिंदुत्व का राग को अलापना पड़ रहा है, उसके शीर्ष नेता खुद को हिंदू साबित करने के लिए अपना जनेऊ दिखाने और मंदिरों का चक्कर लगाने को मजबूर हैं.
हिंदुत्व शब्द का क्या है इतिहास
इस शब्द का पहली बार साल 1892 में बंगाली साहित्यकार चंद्रनाथ बसु ने अपनी किताब 'हिंदुत्व' में इस्तेमाल किया था. 1892 में लिखी गई पुस्तक हिंदुओं को जागृत करने के उद्देश्य से लिखी गई थी. दरअसल हिंदुत्व शब्द को असल पहचान विनायक दामोदर सावरकर ने दिलाई, उन्होंने 1923 में हिंदुत्व पर पुस्तक लिखी थी. सावरकर ने प्रसिद्ध किताब 'हिंदुत्व' लिखी थी. 'हिंदुत्व' की विचारधारा ने ही हिंदू महासभा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को जन्म दिया था.
सावरकर की किताब में हिंदुत्व का जिक्र
अंडमान जेल से वापसी के बाद विनायक दामोदर सावरकर ने एक और किताब लिखी थी जिसका नाम है 'हिंदुत्व– हू इज हिंदू?'. इसमें उन्होंने पहली बार हिंदुत्व को एक राजनीतिक विचारधारा के तौर पर इस्तेमाल किया था. सावरकर का मानना था कि 'भारत के लोग मूलत: हिंदू हैं और इस देश का नागरिक वही हो सकता है, जिसकी पितृ भूमि, मातृ भूमि और पुण्य भूमि यही हो. पितृ और मातृ भूमि तो किसी की हो सकती है, लेकिन पुण्य भूमि तो सिर्फ हिंदुओं, सिखों, बौद्ध और जैनियों की हो सकती है. सावरकर ने लिखा था कि हिंदू बनकर ही इस पुण्यभूमि का हो सकते हैं.
राम मंदिर आंदोलन में हिंदुत्व
अयोध्या राम मंदिर मुद्दा भारत की राजनीति पर हमेशा हावी रहा और हिंदुत्व (Hindutva) की लहर का मुख्य कारण बनने के साथ ही, राजनीतिक पार्टी के तौर पर भाजपा के विकास की वजह भी रहा. आज जो पार्टी स्पष्ट बहुमत से देश का नेतृत्व कर रही है, उसकी यात्रा 1984 में दो सांसदों के साथ शुरू हुई थी. 1980 में ही जन संघ और जनता पार्टी के एक धड़े ने साथ आकर भारतीय जनता पार्टी की नींव रखी थी. तभी से हिंदुत्व के नज़रिये को लेकर पार्टी के बीते 41 साल बड़े घुमावदार रहे.