पटना: बिहार में 13 करोड़ से अधिक आबादी में 17.7 फीसदी मुस्लिम आबादी है. इनमें 4 प्रतिशत से कम अगड़ी मुस्लिम आबादी है शेष आबादी पिछड़ा और अति पिछड़ा मुस्लिम की है. इस वोट बैंक पर नीतीश कुमार की नजर है. ओवैसी की पार्टी की तरफ से मुसलमानों के लिए अलग से आरक्षण की मांग की जा रही है. राजद की तरफ से एमवाई समीकरण की बात कही जाती रही है. जदयू की नजर भी मुस्लिम वोट बैंक पर है. हाल ही में नीतीश कुमार ने एक बैठक की थी, जिसमें पिछड़ा और अति पिछड़ा मुसलमान पर फोकस करने का निर्देश दिया था. नीतीश कुमार ने बैठक में ओवैसी की पार्टी को बड़ी चुनौती माना था.
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इन राज्यों में है ये व्यवस्थाः कर्नाटक की आबादी करीब 6 करोड़ है, जिसमें लगभग 80 लाख मुस्लिम आबादी है. साढ़े तीन करोड़ की आबादी वाले तेलंगाना में 45 लाख मुसलमान रहते हैं. इसके अलावा आंध्र प्रदेश की कुल आबादी 4 करोड़ 90 लाख है, जिनमें 36 लाख मुसलमान हैं. केरल की आबादी 3 करोड़ 30 लाख है, जिनमें 90 लाख मुसलमान हैं. तमिलनाडु की कुल आबादी 7 करोड़ 20 लाख है, जिनमें 42 लाख मुसलमान हैं. इन राज्यों में मुस्लिम आरक्षण की व्यवस्था है. तेलंगाना के मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव लगातार अपने राज्य में मुसलमानों को मिलने वाले 4 प्रतिशत आरक्षण को बढ़ाकर 12 प्रतिशत करना चाहते हैं. इसके लिए तेलंगाना विधान सभा में एक प्रस्ताव भी पास करा चुके हैं. लेकिन केन्द्र सरकार ने इस प्रस्ताव को अपनी मंज़ूरी देने से इनकार कर दिया है.
धर्म-आधारित आरक्षण पहली बार केरल में लागूः उस समय त्रावणकोर-कोचीन राज्य था. 1956 में केरल के पुनर्गठन के बाद, आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाकर 50 कर दिया गया, जिसमें ओबीसी के लिए 40 फीसदी शामिल था. सरकार ने ओबीसी के अंदर एक उप-कोटा पेश किया जिसमें मुस्लिम हिस्सेदारी 10 प्रतिशत थी. वर्तमान में केरल की सरकारी नौकरियों में मुस्लिम हिस्सेदारी बढ़कर 12 प्रतिशत और व्यावसायिक शैक्षणिक संस्थानों में 8 प्रतिशत हो गई है. उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति के बावजूद, केरल में सभी मुसलमानों को ओबीसी के रूप में वर्गीकृत किया गया है.
कर्नाटक में चार प्रतिशत का कोटाः कर्नाटक में नौकरियों और शिक्षा में 16 पिछड़ी जातियों, जिनमें मुस्लिम भी शामिल थी के लिए आरक्षण फरवरी 1977 में पूर्व सीएम देवराज उर्स द्वारा पेश किया गया था. इसे अदालत में चुनौती दी गई, जिसने सरकार के फैसले को बरकरार रखा. लेकिन सरकारी नौकरियों और शिक्षा में 4 प्रतिशत का विशेष कोटा अक्टूबर 1986 में लागू हुआ जब रामकृष्ण हेगड़े मुख्यमंत्री थे. यह अभी भी लागू है.
ईसाइयों ने अपने हिस्से का कोटा छोड़ दियाः तमिलनाडु सरकार ने 2007 में एक अध्यादेश के माध्यम से मुसलमानों और ईसाइयों के लिए कोटा शुरू किया. बाद में मुसलमानों और ईसाइयों प्रत्येक के लिए 3.5 फीसदी कोटा तय किया. ईसाइयों ने अपने हिस्से का कोटा छोड़ दिया और उनका हिस्सा हिंदू पिछड़ों को दे दिया गया. रंगनाथ मिश्रा आयोग की सिफारिशों को आधार बनाते हुए पश्चिम बंगाल सरकार ने हाल ही में शिक्षा, व्यवसाय और आजीविका जैसे मापदंडों पर पिछड़े के रूप में वर्गीकृत मुसलमानों के लिए 10 फीसदी कोटा की घोषणा की. अब तक 42 समुदायों की पहचान की जा चुकी है.
पिछड़ी जातियों के कोटा में मिली है जगहः बिहार में 1970 के दशक से पिछड़ी जातियों के लिए कोटा है. जिन मुसलमानों को 'पिछड़ा' नामित किया गया था उनमें अंसारी, मंसूरी, इदरीसी, दफाली, धोबी, नालबंद शामिल है. उनमें से लगभग 3 प्रतिशत को नौकरी कोटा से लाभ हुआ है. पंचायत निकायों में भी, ईबीसी के लिए आरक्षित 20 फीसदी में मुस्लिम हैं. हालांकि बिहार में अब तक मुसलमानों के लिए अलग से कोटा निर्धारित नहीं है. अब उसी की मांग हो रही है.